अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने देश के छह राज्यों को श्रम क़ानूनों को निलंबित किए जाने पर हिदायत दी है। इसने कहा है कि श्रम क़ानून में जो भी बदलाव हो वो आपसी सहमति से और अंतरराष्ट्रीय श्रम के मानकों के आधार पर ही हो। इसने राज्यों से कहा है कि वे इस पर विचार करें।
देश में अब तक छह राज्यों ने या तो श्रम क़ानूनों को बदला है या फिर इसकी घोषणा की है। उत्तर प्रदेश और गुजरात की बीजेपी सरकारों ने कहा है कि वे मज़दूरी से लेकर काम के घंटे तक को लेकर क़ानूनों को निलंबित करेंगी। उनका तर्क है कि इससे फ़ैक्ट्रियाँ और उद्योग संबंधित राज्य में आएँगे और इससे उन्हें लॉकडाउन की वजह से ख़राब हुई आर्थिक स्थिति से उबरने में मदद मिलेगी।
संयुक्त राष्ट्र के अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने गुरुवार को एक बयान में कहा कि भारत के कुछ राज्य अर्थव्यवस्था को कोविड-19 के प्रभाव से पुनर्जीवित करने के उद्देश्य से श्रम क़ानूनों को शिथिल करने की दिशा में बढ़ रहे हैं।
इसने आगे कहा, 'इस तरह के संशोधनों को सरकार, श्रमिकों और नियोक्ता संगठनों से जुड़े त्रिपक्षीय परामर्श से होना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय श्रम मानकों के अनुरूप होना चाहिए।'
बता दें कि बीजेपी शासित राज्यों द्वारा श्रम क़ानूनों को निलंबित किए जाने पर काफ़ी विवाद हुआ है। इस पर श्रमिक संगठनों ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई है और कहा है कि इससे श्रमिकों का दोहन बढ़ जाएगा। विरोध करने वाले संगठनों में बीजेपी और आरएसएस से जुड़ा भारतीय मज़दूर संघ भी शामिल है।