'बुल्ली बाई', 'सुल्ली डील' जैसी ऐप से मुसलिम महिलाओं को निशाना बनाने वाले कौन हैं? इसमें क्या सिर्फ वे पाँच लोग ही हैं जिन्हें गिरफ़्तार किया गया है? और क्या ये सिर्फ़ मुसलिम महिलाएँ हैं जिन्हें निशाना बनाया जाता है? सोशल मीडिया पर मुखर रहने वाली दूसरी महिलाएँ, महिला पत्रकार और महिला एक्टिविस्टों को क्या कम निशाना बनाया जाता है? दलितों को निशाना बनाने वाले लोग कौन हैं? क्या इन सभी को निशाना बनाने वाले एक ही विचारधारा के लोग हैं? इन सवालों के जवाब सुल्ली डील ऐप मामले में गिरफ़्तार आरोपी से मिल सकते हैं।
दिल्ली पुलिस ने रविवार को 'सुल्ली डील' मामले में 25 वर्षीय ओंकारेश्वर ठाकुर की गिरफ्तारी की घोषणा करते हुए कहा कि वह ऑनलाइन 'ट्राड' (Trad) समूहों का हिस्सा था। यह व्यक्तियों का एक समूह है जो टेलीग्राम, रेडिट, 4chan और डिस्कॉर्ड पर सक्रिय है। इससे दलितों, मुसलमानों और महिलाओं को निशाना बनाया जाता रहा है।
दिल्ली पुलिस ने सुल्ली डील के मामले में मुख्य आरोपी ओंकारेश्वर ठाकुर को मध्य प्रदेश के इंदौर से गिरफ्तार किया है। पुलिस ने कहा कि ठाकुर ने गिटहब पर सुल्ली डील के लिए कोड विकसित किया और ऐप को ट्विटर पर साझा किया।
ओंकारेश्वर से पुलिस पूछताछ कर रही है। द इंडियन एक्सप्रेस ने एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है कि ओंकारेश्वर ठाकुर ने उन्हें बताया कि वह ट्विटर और टेलीग्राम पर 'ट्राड' समूहों का सदस्य है। कुछ शोध से पता चला कि ये कुछ पारंपरिक और रूढ़िवादी समूह हैं। पुलिस अधिकारी ने कहा, 'मैंने उन्हें देखा… जाति व्यवस्था से लेकर महिला सशक्तिकरण तक पर इसके सदस्यों के घोर दकियानूसी विचार हैं। वे हमारे आस-पास समाज में हो रहे बदलाओं की निंदा करते हैं और अक्सर आपत्तिजनक मीम्स या शास्त्रों के उद्धरण साझा करते हैं।'
पुलिस के अनुसार, ओंकारेश्वर जिस समूह का हिस्सा था उसे 'ट्राडमहासभा' कहा जाता था। वह जनवरी 2020 में ट्विटर पर मुसलिम महिलाओं को ट्रोल करने के विचार से इसमें शामिल हुआ था। उसके द्वारा संचालित ट्विटर खातों में से एक का नाम 'सिग्माट्राड' था।
पुलिस अधिकारी कहते हैं कि 23 वर्षीय छात्र ओंकारेश्वर ऐसे कई समूहों का सदस्य है। उन्होंने कहा, 'अधिकांश सदस्य उच्च जाति के हैं... अच्छी तरह से पढ़े-लिखे हैं... और सिर्फ़ ऑनलाइन काम करते और बातचीत करते हैं। वार्ता अक्सर शास्त्रों, 'सनातन धर्म', ब्राह्मणवादी वर्चस्व के इर्द-गिर्द ही रहती है।'
ऐसे अधिकांश प्लेटफॉर्मों पर जातिवादी गालियों का इस्तेमाल किया जाता है, गालियाँ आम्बेडकर को भी दी जाती हैं और संविधान को मनुस्मृति से बदलने की बात की जाती है। ऐसे समूहों में इसलामोफोबिया भी देखा जाता है।
'ट्राड' पर साझा किए गए कई मीम्स, जैसे 'पेपे द फ्रॉग', और इस्तेमाल की जाने वाली भाषा अमेरिका के घोर दक्षिणपंथियों से बहुत अधिक आकर्षित है। इसमें 'ट्राड' शब्द भी शामिल है।
अमेरिका में घोर दक्षिणपंथी समूहों में गोरे नस्लवादी हैं जो दूसरे लोगों को नफ़रत की नज़र से देखते हैं। उनके ख़िलाफ़ हिंसक घटनाएँ भी करते हैं। वे इसी तरह के ऑनलाइन अभियान चलाते हैं। दरअसल, पूरी दुनिया में ही कट्टरपंथ उभार पर है। फिर चाहे अमेरिका और जर्मनी जैसे पश्चिमी देश हों, जहाँ नस्लवादी और नियो-नाज़ी आंदोलन ज़ोर पकड़ रहा है या फिर भारत-पाकिस्तान जैसे देश जहाँ हिंदू-मुसलिम समुदायों में कट्टरपंथ की तरफ़ झुकाव बढ़ रहा है।
मुसलिम युवाओं का एक वर्ग इन दिनों कट्टरपंथी सलाफी सोच की तरफ़ खिंचा जा रहा है। इसलाम में सलाफी विचारधारा को बहुत रूढ़ीवादी माना जाता है। समझा जाता है कि ये कुरान की बातों के हर शब्द को अमल में लाना चाहते हैं। ये मानते हैं कि वे अकेले 'शाश्वत और सच्चे इसलाम' का पालन करने वाले हैं, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद के जमाने में होता था।
अब भारत में भी जो ट्राड जैसे समूह सामने आ रहे हैं उसके सदस्य जड़ों की ओर लौटने की बात कहते हैं। वे जीवन के हर क्षेत्र को शास्त्रों से जोड़कर देखते हैं। सनातन धर्म की महानता का बखान करते हैं और इसमें भी वह शुद्धतावादी होने की बात करते हैं। ब्राह्मणवादी वर्चस्व लाने की बात करते हैं और मनुस्मृति की वकालत करते हैं। इन समूहों से जुड़े लोग बदलती दुनिया में सुधार का विरोध करते हैं और उनका विरोध का तरीक़ा भी जातिवादी गालियों, नस्लवादी व धार्मिक नफ़रत फैलाने वाला होता है।
तो सवाल है कि यह नफ़रत क्या सिर्फ़ व्यक्तिगत स्तर तक सीमित है? क्या यह इतने बड़े स्तर पर स्वत:स्फूर्त है? या फिर इसके पीछे कोई बड़ी ताक़त है? क्या यह पढ़े-लिखे युवाओं और समाज को कट्टरपंथी बनाने की बड़ी साज़िश है?