भारत ने किया जापान से सैन्य समझौता; चीन की घेरेबंदी को क़रारा जवाब?

02:28 pm Sep 11, 2020 | अमित कुमार सिंह - सत्य हिन्दी

भारत चीन सीमा तनाव के बीच भारत और जापान के बीच सैन्य समझौता हुआ है। जापान ऐसा छठा देश हो गया है जिसके साथ भारत ने सेना के स्तर पर लॉजिस्टिक सपोर्ट और युद्धपोत साझा करने का समझौता किया है। इससे पहले भारत अमेरिका, फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर के साथ ऐसा समझौता कर चुका है। इंग्लैंड और रूस से भी इस बारे में बातचीत चल रही है। इसे एक तरह से चीन की घेरेबंदी की रणनीतिक चाल के रूप में देखा जा सकता है। इसमें अधिकतर वे देश हैं जो या तो चीन के पड़ोसी हैं या फिर जिनका दक्षिणी चीन सागर में चीनी हस्तक्षेप को लेकर आपत्ति रहती है। इसमें वे भी देश हैं जिनके पास सामरिक रूप से काफ़ी अहम नौसैनिक अड्डे हैं। 

चीन अपनी विस्तारवादी नीति के तहत दक्षिणी चीन सागर में आसपास के कई देशों की आपत्ति के बावजूद हस्तक्षेप करते रहा है। भारत के पड़ोसी देशों के साथ चीन रिश्ते मज़बूत करने में जुटा हुआ है। इसमें पाकिस्तान तो उसका साथी है ही, श्रीलंका, मालदीव, के बाद अब नेपाल और बांग्लादेश में भी वह हस्तक्षेप करने की स्थिति में पहुँचने लगा है। इसी बीच चीन ने भारत के लद्दाख क्षेत्र में घुसपैठ कर एक मोर्चा खोल दिया है। ऐसे में भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन के विस्तार की इसी नीति का मुक़ाबला करने के लिए दोस्ताना देशों के साथ हिंद महासागर और उससे आगे बढ़कर भी अपनी रणनीतिक पहुँच बढ़ाने के लिए काम कर रहा है।

जापान के साथ भारत का ताज़ा समझौता चीन की घेरेबंदी का जवाब है मालूम पड़ता है। दोनों देशों ने रक्षा सहयोग पर सहमति जताई है। भारत के रक्षा सचिव अजय कुमार और जापानी राजदूत सुजुकी सातोशी ने भारतीय सशस्त्र बलों और जापानी आत्म-रक्षा बलों के बीच 'आपूर्ति और सेवाओं के पारस्परिक प्रावधान' के समझौते पर हस्ताक्षर किए।

हालाँकि भारत और जापान के बीच दोस्ताना संबंध लंबे समय से रहे हैं। लेकिन इस संबंध में दोनों देशों के बीच अक्टूबर 2018 में समझौते में संबंधों को और प्रगाढ़ करने पर सहमति बनी थी। तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके समकक्ष शिंजो आबे ने इसको आगे बढ़ाया था।

यह सहमति हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और सुरक्षा को लेकर थी। इसमें तय हुआ था कि इसके लिए दोनों देश आपसी सहयोग करेंगे और रक्षा सहयोग को और बढ़ाएँगे। यह समझौता 10 साल के लिए है। इसके बाद यह समझौता अपने आप अगले दस साल के लिए तब तक बढ़ जाएगा जब तक कि दोनों में से किसी देश अपने हाथ नहीं खींच लेते हैं। 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर चीन की नज़र

हाल के वर्षों में हिंद-प्रशांत क्षेत्र कई देशों के लिए चिंता का सबब इसलिए बन गया है कि चीन की इस क्षेत्र पर नज़र है। चीन के इस रवैये से सबसे ज़्यादा प्रभावित अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, भारत और आसियान देश होते हैं। इस क्षेत्र में चीन इसलिए आँखें गड़ाए हुए है और नियमों का उल्लंघन करता रहा है क्योंकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र वैश्विक व्यापार के नज़रिए से तो अहम है ही, सामरिक दृष्टि से भी काफ़ी महत्वपूर्ण है। यदि चीन ने इस क्षेत्र पर ज़बरन क़ब्ज़ा कर लिया तो इससे कई देश काफ़ी ज़्यादा प्रभावित होंगे और एक तरह से उन्हें चीन की दया पर निर्भर रहना पड़ेगा। अब ज़ाहिर है ऐसा कोई भी देश नहीं चाहेगा। भारत तो बिल्कुल भी नहीं। 

यही कारण है कि पिछले हफ़्ते ही चीफ़ ऑफ़ डिफ़ेंस स्टाफ़ यानी सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नेविगेशन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए एक 'अच्छे तंत्र' के रूप में क्वाड (Quad) का जोरदार समर्थन किया।

Quad यानी चतुर्भुज सुरक्षा संवाद भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान का एक समूह है जिसे निर्विवाद समुद्री व्यापार और सुरक्षा के साझा हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। भारत इस साल के अंत में क्वाड की बैठक की मेजबानी करने वाला है। 

ये देश इसलिए भी एकजुट हो रहे हैं कि चीन नेवी में दुनिया में सबसे ताक़तवर है। इसके पास 350 से ज़्यादा युद्धपोत और पनडुब्बियाँ हैं। अगस्त 2017 में जिबूती में अपनी पहली विदेशी सैन्य सुविधा के बाद चीन अधिक लॉजिस्टिक्स बेस स्थापित करना चाह रहा है। चीन की पाकिस्तान में कराची और ग्वादर बंदरगाहों तक भी पहुँच है और वहाँ इसकी पनडुब्बियों और युद्धपोतों के लिए सुविधाएँ हैं।

भारत की ऐसी तैयारी इसलिए भी अहम है कि चीन हाल के वर्षों में भारत के ख़िलाफ़ आक्रामक रूप से पेश आता रहा है। तीन महीने से ज़्यादा समय से लद्दाख क्षेत्र के पैंगोंग त्सो क्षेत्र में चीनी घुसपैठ उसकी आक्रमकता और उसके विस्तारवाद का ही नतीजा है। हालाँकि ऐसा लगता है कि चीन सीधे-सीधे भारत से युद्ध नहीं चाहता और भारत को सीमा विवाद में उलझाए रखना चाहता है। इसके साथ ही वह भारत की घेराबंदी भी जारी रखे हुए है। ऐसे में भारत का जापान जैसे देशों से आपसी सहयोग का समझौता और चीन की घेरेबंदी की नीति काफ़ी अहम है।