महिला पहलवानों के साथ व्यवहार से 1983 क्रिकेट वर्ल्ड कप विजेता टीम व्यथित

04:47 pm Jun 02, 2023 | सत्य ब्यूरो

1983 क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम ने महिला पहलवानों के विरोध को लेकर बयान जारी किया है। इसने कहा है, 'हम अपने चैंपियन पहलवानों के साथ मारपीट के अशोभनीय दृश्यों से व्यथित और परेशान हैं। हमें सबसे अधिक चिंता इस बात की भी है कि वे अपनी कड़ी मेहनत की कमाई को गंगा नदी में बहाने की सोच रहे हैं।'

पूर्व क्रिकेटरों ने बयान में कहा है, 'उन पदकों में वर्षों का प्रयास, बलिदान, संकल्प और धैर्य शामिल है और वे न केवल उनके अपने बल्कि देश के गौरव हैं। हम उनसे आग्रह करते हैं कि वे इस मामले में जल्दबाजी में कोई निर्णय न लें और यह भी आशा करते हैं कि उनकी शिकायतों को सुना जाएगा और जल्दी से हल किया जाएगा। देश में कानून अपना काम करे।'

पूर्व क्रिकेटरों का यह बयान तब आया है जब आज ही एक अख़बार में महिला पहलवानों द्वारा उनके ऊपर लगाए गए आरोपों की लंबी फेहरिस्त सामने आई है और सोशल मीडिया पर इस पर तीखी प्रतिक्रियाएँ हो रही हैं। पूर्व क्रिकेटरों के बयान में पहलवानों द्वारा उठाए गए कड़े फ़ैसलों का ज़िक्र किया गया है। एक महीने से अधिक समय तक जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के बाद भारत के शीर्ष पहलवान विनेश फोगट, साक्षी मलिक और बजरंग पुनिया अपने ओलंपिक मेडल 30 मई को गंगा में विसर्जित करने हरिद्वार पहुँचे थे। किसान नेता नरेश टिकैत और अन्य खाप चौधरियों के समझाने पर पहलवानों ने नदी में बिना मेडल बहाये वापस लौट गए।

पहलवानों ने यह कड़ा फ़ैसला तब लिया था जब पहलवानों पर पुलिस ने कुछ ज़्यादा ही सख्ती की थी। दरअसल, पहलवानों ने रविवार को नए संसद भवन की ओर मार्च करने की कोशिश की थी। इसी दिन नये संसद भवन का उद्घाटन किया गया था। 

दिल्ली पुलिस ने पहलवानों को रोक दिया था और उन्हें हिरासत में लेने की कोशिश की। इस दौरान भारत के शीर्ष पहलवानों को पुलिस बलों द्वारा घसीटा गया और हिरासत में ले लिया गया था। उन पर दंगा करने, ग़ैर-क़ानूनी रूप से इकट्ठा होने और एक लोक सेवक को उसकी ड्यूटी करने से रोकने का आरोप लगाया गया। उन पर एफ़आईआर भी दर्ज की गई। 

दिल्ली पुलिस ने जंतर-मंतर पर पहलवानों के धरना स्थल से टेंट, गद्दे और अन्य हर सामान को हटा दिया। इन घटनाक्रमों के बाद पहलवानों ने मेडल को गंगा नदी में फेंकने का फ़ैसला किया था।

1983 विश्व कप विजेता क्रिकेट टीम के सदस्य चिंतित हैं कि विरोध करने वाले पहलवान अपने पदकों को पवित्र गंगा नदी में विसर्जित करने का चरम कदम उठा सकते हैं। समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार पूर्व क्रिकेटरों ने शुक्रवार को एलीट एथलीटों से जल्दबाजी में फ़ैसला नहीं लेने का आग्रह किया और उम्मीद जताई कि उनकी शिकायतों को सुना जाएगा और उनका समाधान किया जाएगा।

रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा है कि हम अपने चैंपियन पहलवानों के साथ बदसलूकी के अशोभनीय दृश्यों से व्यथित और परेशान हैं। हम इस बात से भी सबसे ज्यादा चिंतित हैं कि वे अपनी गाढ़ी कमाई को गंगा नदी में बहाने के बारे में सोच रहे हैं।'

बता दें कि कपिल देव के नेतृत्व में भारतीय क्रिकेट टीम ने शक्तिशाली क्लाइव लॉयड के नेतृत्व वाली वेस्ट इंडीज को हराकर देश की पहली विश्व कप ट्रॉफी जीती थी। सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ, के श्रीकांत, सैयद किरमानी, यशपाल शर्मा, मदन लाल, बलविंदर सिंह संधू, संदीप पाटिल, कीर्ति आज़ाद और रोजर बिन्नी उस विजेता टीम में शामिल थे। 

1983 क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम के सदस्य, मदन लाल ने एएनआई से कहा, 'दिल दहला देने वाला है कि उन्होंने अपने पदक फेंकने का फ़ैसला किया। हम उनके पदक फेंकने के पक्ष में नहीं हैं क्योंकि पदक अर्जित करना आसान नहीं है और हम सरकार से इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाने का आग्रह करते हैं'।

इन पूर्व क्रिकेटरों का बयान तब आया है जब महिला पहलवानों द्वारा बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ दायर प्राथमिकी में सूचीबद्ध गंभीर आरोपों का विवरण सामने आया है।

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ बृजभूषण शरण सिंह पर आरोप लगाने वाली सातों खिलाड़ियों द्वारा लगाए गए आरोप अब सामने आ गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार यौन उत्पीड़न और दुराचार की कई घटनाओं में पेशेवर सहायता के बदले शारीरिक संबंध बनाने की मांग, छेड़छाड़, ग़लत तरीक़े से छूना और शारीरिक संपर्क शामिल हैं। आरोप लगाया गया है कि इस तरह के यौन उत्पीड़न टूर्नामेंट के दौरान, वार्म-अप और यहाँ तक ​​कि नई दिल्ली में रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया यानी डब्ल्यूएफआई के कार्यालय में भी किया गया।

रिपोर्ट में कहा गया है कि पेशेवर सहायता के बदले शारीरिक संबंध की मांग करने के कम से कम दो मामले; यौन उत्पीड़न की कम से कम 15 घटनाएँ हैं जिनमें ग़लत तरीक़े से छूना शामिल हैं, छेड़छाड़ जिसमें छाती पर हाथ रखना, नाभि को छूना शामिल है। इसके अलावा डराने-धमकाने के कई उदाहरण हैं जिनमें पीछा करना भी शामिल है। सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद बृजभूषण सिंह के ख़िलाफ़ 28 अप्रैल को दिल्ली में दर्ज की गईं दो एफ़आईआर में ये प्रमुख आरोप हैं।

पहली एफ़आईआर में छह वयस्क पहलवानों के आरोप शामिल हैं। दूसरी एफ़आईआर एक नाबालिग के पिता की शिकायत पर आधारित है। इसमें पॉक्सो अधिनियम की धारा 10 भी लागू होती है जिसमें पाँच से सात साल की कैद होती है। इन एफ़आईआर में जिन घटनाओं का उल्लेख किया गया है वे कथित तौर पर 2012 से 2022 तक भारत और विदेशों में हुईं।