एक ओर देश में कृषि क़ानूनों को लेकर घमासान मचा हुआ है और किसान इन क़ानूनों को अपने लिए डेथ वारंट बता रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ़ ने इन क़ानूनों को बेहतर बताया है। आईएमएफ़ ने कहा है कि ये क़ानून कृषि क्षेत्र में सुधारों की दिशा में एक अहम क़दम हैं।
आईएमएफ़ ने यह भी कहा है कि हालांकि जो लोग नए कृषि क़ानूनों से प्रभावित होंगे उन्हें उतनी ही मदद भी दी जानी चाहिए।
पीटीआई के मुताबिक़, आईएमएफ़ के कम्युनिकेशन विभाग के निदेशक गैरी राइस ने गुरूवार को वाशिंगटन में पत्रकारों से यह बात कही।
नहीं टूट रहा गतिरोध
मोदी सरकार पिछले चार महीने से लगातार इसी बात का बखान कर रही है कि नए कृषि क़ानून किसानों को बिचौलियों से आज़ादी दिलाने वाले हैं और ये किसानों की तरक़्की के नए द्वार खोलते हैं। लेकिन किसानों का कहना है कि इन क़ानूनों के लागू होने के बाद मंडियों की व्यवस्था ख़त्म हो जाएगी और उनकी ज़मीन पर कॉरपोरेट्स का कब्जा हो जाएगा। ऐसे में किसानों और सरकार के बीच लगातार गतिरोध बना हुआ है।
राइस ने आगे कहा, ‘कृषि सुधारों को लेकर उठाए गए ये क़दम किसानों को सीधे विक्रेता तक पहुंच या संपर्क बनाने का मौक़ा देंगे, बिचौलियों की भूमिका ख़त्म होने से किसानों को मुनाफा होगा।’ उन्होंने कहा कि इन क़दमों से कार्यक्षमता बढ़ेगी और ग्रामीण विकास भी होगा।
राइस ने कहा कि यह भी अहम है कि नई व्यवस्था के लागू होने के दौरान जिन लोगों पर इसका विपरीत प्रभाव होगा उनकी सहायता किए जाने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि इन कृषि सुधारों से जो लोग प्रभावित होंगे उन्हें रोज़गार देकर उनकी मदद की जा सकती है।
आईएमएफ़ की राय से विपरीत भारत में इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे किसानों की बहुत सारी आशंकाएं हैं। कई दौर की बातचीत में सरकार इन क़ानूनों में संशोधन के लिए तैयार भी हो चुकी है लेकिन किसान चाहते हैं कि इन क़ानूनों को रद्द कर दिया जाए। इसके अलावा एमएसपी पर गांरटी का क़ानून बनाने की भी उनकी मांग है।
किसानों के अपनी मांग पर लगातार अड़े रहने के कारण सरकार क़ानूनों के हर क्लॉज पर चर्चा करने के लिए भी तैयार हो चुकी है। लेकिन किसानों का कहना है कि ये क़ानून चर्चा लायक नहीं हैं और सरकार को इन्हें रद्द कर देना चाहिए। दूसरी ओर सरकार भी अड़ी है और वह क़ानूनों को रद्द करने के लिए तैयार नहीं है।
किसान आंदोलन और कमेटी पर देखिए वीडियो-
कमेटी को लेकर एतराज
दिल्ली की जबरदस्त सर्दी और बारिश के बीच भी जारी किसानों के आंदोलन में अब तक 60 से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। किसानों का कहना है कि बिना अपनी मांगों के पूरे हुए वे दिल्ली के बॉर्डर्स से वापस नहीं जाएंगे। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को हल करने के लिए चार सदस्यों की कमेटी का गठन किया लेकिन इस कमेटी को लेकर भी किसानों को एतराज है।
किसान संगठनों ने कमेटी के सामने पेश होने और उससे बात करने से साफ इनकार कर दिया है। किसानों का कहना है कि कमेटी में शामिल लोग कृषि क़ानूनों का समर्थन कर चुके हैं, ऐसे में वे आख़िर क्यों इन कमेटियों के सामने पेश होंगे।
किसानों के दबाव के कारण ही कमेटी में शामिल भूपिंदर सिंह मान ने गुरूवार को ख़ुद को इससे अलग कर लिया। मान भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं और ऑल इंडिया किसान को-ऑर्डिनेशन कमेटी के प्रमुख भी हैं। मान ने कहा है कि वह पंजाब और देश के किसानों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं करेंगे। ऐसे में कमेटी के गठन पर ही सवाल खड़े हो गए हैं कि कमेटी में शामिल सदस्यों से पहले उनकी राय क्यों नहीं ली गई।
मुश्किल में मोदी सरकार
सिंघु और टिकरी बॉर्डर पर चल रहा किसानों का आंदोलन भारत बंद, भूख हड़ताल, टोल प्लाज़ा फ्री कराने के बाद अब 26 जनवरी को होने वाली किसान ट्रैक्टर परेड तक पहुंचने वाला है। इसके लिए हरियाणा और पंजाब से जोरदार तैयारियां की जा रही हैं। सरकार को यह समझ नहीं आ रहा है कि आख़िर वह कैसे इस मसले का हल निकाले क्योंकि किसान संगठन लंबी लड़ाई के लिए तैयार होने की बात दोहराते हैं।