सीसीडी मालिक की आत्महत्या के मामले में फँसेंगे आयकर महानिदेशक?

03:51 pm Jul 31, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

क्या कैफ़े कॉफ़ी डे (सीसीडी) के प्रमुख वी. जी. सिद्धार्थ को आत्महत्या करने के लिए उकसाने वाले इनकम टैक्स विभाग के आला अफ़सर को बचाने की कोशिश की जा रही है क्या आत्महत्या करने से पहले लिखे गए सिद्धार्थ के ख़त को इसीलिए फ़र्जी साबित करने की कोशिश की जा रही है ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि इस मामले में आयकर विभाग के कामकाज के तरीके पर सवाल उठ रहे हैं। पहले से ख़राब चल रही अर्थव्यवस्था को सुधारने की दिशा में कुछ तो नहीं ही किया जा रहा है, बची खुची साख भी ख़राब हो रही है। इस घटना से कॉरपोरेट जगत में दुख और गुस्सा है। यह भारत की फिसलती अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा तो नहीं ही कहा जा सकता है। यह घटना ऐसे समय हुई है जब सरकार देश की अर्थव्यवस्था को 5 खरब डॉलर तक ले जाने की बात कह रही है। 

क्या कहना है आयकर विभाग का 

आयकर विभाग का दावा है कि ख़ुद सिद्धार्थ ने यह स्वीकार किया था कि उनके पास 480 करोड़ रुपए की निजी जायदाद थी, जिसका कोई हिसाब किताब नहीं था। इस मामले में ही उनसे सवाल पूछे गए थे। कर्नाटक और गोवा के आयकर विभाग के मुख्य आयुक्त ने एक बयान जारी कर कहा है कि सिद्धार्थ के नोट पर किया गया हस्ताक्षर उनकी कंपनी की सालाना रिपोर्ट पर किए गए हस्ताक्षर से मेल नहीं खाता है। विभाग ने उस नोट की सत्यता और प्रमाणिकता पर भी सवाल उठाए हैं। 

सिद्धार्थ ने अपने नोट में किसी का नाम नहीं लिया है। पर जिस अफ़सर ने सीसीडी के शेयर जब्त कर लेने का आदेश दिया था, वह बी. आर. बालकृष्ण हैं। वह फ़िलहाल आयकर विभाग (जाँच विभाग) के महानिदेशक हैं और बुधवार यानी आज ही रिटायर होने वाले हैं। 

आयकर विभाग का कहना है कि उसके अफ़सरों ने कर्नाटक के एक राजनेता के यहाँ छापा मारा था, उस मामले की जाँच पड़ताल में उन्हें यह यकायक पता चला कि सीसीडी के साथ कोई ग़ैरक़ानूनी लेनदेन किया गया है। एक फ़ोन नंबर मिला, जिसकी जाँच से पता चला कि सिद्धार्थ हवाला कारोबार में शामिल थे। लेकिन सिद्धार्थ ने नोट में इसकी उलट बातें लिखीं। उन्होंने बताया है कि किस तरह आयकर विभाग उन्हें परेशान करता रहा है। 

आयकर विभाग के पूर्व डीजी ने मुझ पर बहुत ही अधिक दबाव डाला। उन्होंने दो अलग-अलग मौकों पर कंपनी के शेयर जब्त कर लिए, माइन्डट्री के साथ कारोबार पर रोक लगा दी, हालाँकि हमने कंपनी का संशोधित रिटर्न जमा किया था। यह ग़लत था और इससे कंपनी का नकदी संकट बढ़ गया।


वी. जी. सिद्धार्थ के नोट का अंश

सिद्धार्थ ने नोट में लिखा है कि किस तरह वह बहुत ही ज़बरदस्त दबाव में थे। वह बताते हैं कि उन्हें जानबूझ कर ग़लत तरीके से परेशान किया गया, आयकर विभाग के एक महानिदेशक ने भी उन्हें परेशान किया। लेकिन वह उस व्यक्ति का नाम नहीं लेते। इस नोट में सिद्धार्थ ख़ुद को ज़िम्मेदार मानते हैं और कहते हैं कि किसी दूसरे को परेशान न किया जाए न ही उसे दोषी माना जाए। वह कहते हैं कि उनका मक़सद कभी भी किसी को धोखा देना नहीं था, पर वह अच्छा उद्यमी नहीं बन सके। 

किसी भी व्यक्ति के मरते समय के बयान को अदालत में प्रमाणिक साक्ष्य माना जाता है। इससे यह साफ़ है कि सिद्धार्थ का यह बयान ग़लत या झूठ नहीं है। उनके इस बयान को अदालत में प्रमाणिक मानेगा। यदि आयकर विभाग उनके हस्ताक्षर पर संदेह करने पर अड़ा रहता है तो इसकी जाँच कराई जा सकती है। हस्ताक्षर विशेषज्ञ या फ़ोरेंसिक विशेषज्ञ की मदद ली जा सकती है। यदि यह हस्ताक्षर सही पाया जाता है तो बालकृष्ण पर आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लग सकता है। 

क्या कहता है क़ानून

भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी को आत्महत्या करने के लिए उकसाने का  दोषी पाया जाता है तो उसे अधिकतम 10 साल तक की जेल की सज़ा दी जा सकती है। इसके साथ ही उस पर ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है। इसी धारा में यह कहा गया है कि किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का दोषी कैसे माना जा सकता है। कौन है दोषी। जो किसी को आत्महत्या करने के लिए उकसाए, किसी को आत्महत्या करने के लिए साजिश रचने वालों में शामिल हो या आत्महत्या करने में जानबूझ कर मदद करे। 

'टैक्स आतंकवाद'

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने सिद्धार्थ की मौत को कर आतंकवाद क़रार दिया है। उन्होंने कहा है कि केंद्र सरकार कुछ चुने हुए उद्योगपतियों पर विशेष रूप से मेहरबान है। सिद्धार्थ की चिट्ठी राजनीति से प्रेरित संस्थानों का कुरूप चेहरा सामने लाती है। मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने भी सिद्धार्थ की मौत पर दुख जताया है।

क्या हुआ 'ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस' का

लेकिन इस आत्महत्या के गंभीर आर्थिक मायने हैं। इसके कई पहलू हैं। इस आत्महत्या से यह संकेत जाता है कि भारत में 'ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस' यानी व्यापार करने में सहूलियत नहीं है, सरकार चाहे जो दावा कर ले। नरेंद्र मोदी सरकार ने कुछ दिन पहले ही यह दावा किया था कि 'ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस' में सुधार हुआ है। पर यदि 1.2 अरब डॉलर यानी 8,200 करोड़ रुपये के नेटवर्थ का आदमी ख़ुदकुशी करता है, तो कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है। 

दूसरा सवाल उठता है आयकर विभाग के कामकाज के तरीकों के लेकर। विभाग का कहना है कि उसके महानिदेशक ने नियम के मुताबिक़ ही काम किया और सिद्धार्थ ने हवाला कारोबार किया था। लेकिन कंपनी का दावा है कि उसके शेयर ग़लत तरीके से जब्त किए गए थे। महानिदेशक ने सिद्धार्थ को फँसाने के लिए परेशान किया था। यह अभी भी जाँच का विषय है। पर यह तो साफ़ है कि आयकर विभाग की वजह से यदि कोई व्यापारी आत्महत्या करता है तो पूरे कामकाज के तौर तरीकों की समीक्षा होनी चाहिए ताकि ऐसी घटना दुबारा  न हो। 

तीसरा और सबसे अहम पहलू है अर्थव्यवस्था का। सिद्धार्थ ने आत्महत्या नोट में लिखा था कि उन्होंने 20 हज़ार लोगों को रोजगार दिया था। यह ऐसे समय हुआ है जब देश में रोज़गार के मौके लगातार कम हो रहे हैं। सवाल उठता है कि ऐसे में क्या उद्योग जगत को बुरा संदेश नहीं जाएगा और क्या रोज़गार सृजन पर उसका असर नहीं पड़ेगा।