‘हिंदी’ पर बवाल के बाद अमित शाह ने दी सफ़ाई

06:42 pm Sep 18, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

हिंदी दिवस के मौक़े पर पूरे देश की एक भाषा होने का ट्वीट करने पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सफाई दी है। शाह के इस बयान का बीजेपी में ही विरोध हुआ था। दक्षिण के कुछ विपक्षी दलों के नेताओं ने शाह के इस ट्वीट का पुरजोर विरोध किया था और कहा था कि शाह उनके राज्यों में हिंदी को थोपने की कोशिश न करें। 

शाह ने कहा है कि उन्होंने कभी भी क्षेत्रीय भाषाओं पर हिंदी को थोपने की बात नहीं की। शाह ने कहा कि उन्होंने सिर्फ़ इतना अनुरोध किया था कि अपनी मातृ भाषा के बाद हिंदी को दूसरी भाषा के रूप में सीखें। शाह ने कहा कि वह ख़ुद ग़ैर हिंदी भाषी राज्य से आते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कुछ लोग इस पर राजनीति करना चाहते हैं तो वे कर सकते हैं। 

अमित शाह ने अपने ट्वीट में कहा था कि आज देश को एकता की डोर में बाँधने का काम अगर कोई एक भाषा कर सकती है तो वह सर्वाधिक बोले जाने वाली हिंदी भाषा ही है। हालाँकि शाह ने यह भी कहा कि भारत विभिन्न भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है। शाह के इस ट्वीट के बाद से ही दक्षिणी राज्यों सहित पश्चिम बंगाल में भी बहस छिड़ गई थी। 

तमिलनाडु में विपक्ष के नेता एमके स्टालिन ने अमित शाह के बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि यह इंडिया है हिंडिया नहीं। स्टालिन ने कहा था, ‘गृह मंत्री के विचार भारत की एकता के लिए ख़तरा हैं और बेहद दुखद और निंदनीय भी हैं।’ स्‍टालिन ने कहा था, ‘हम हमेशा से अपने ऊपर हिंदी को थोपने का विरोध करते रहे हैं। अमित शाह के के बयान से हमें झटका लगा है। यह देश की एकता को प्रभावित करेगा, हम मांग करते हैं कि वह अपने बयान को वापस लें।’

एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी शाह के हिंदी को एकता की डोर में बांधने वाली भाषा बताने पर निंदा की थी। ओवैसी ने कहा था, ‘हिंदी सभी भारतीयों की मातृभाषा नहीं है। संविधान का अनुच्छेद 29 सभी भारतीयों को भाषा, लिपि और संस्कृति का अधिकार देता है।’ ओवैसी ने तंज कसते हुए कहा था कि भारत हिंदी, हिंदू और हिंदुत्व से बहुत बड़ा है।

शाह के ट्वीट के बाद दक्षिण के संगठनों ने हिंदी थोपे जाने का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया था।

बीजेपी के अंदर कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने इस मामले में आवाज़ उठाई थी। येदियुरप्पा ने ट्वीट कर कहा था, ‘देश में सभी आधिकारिक भाषाएँ समान हैं लेकिन जहाँ तक कर्नाटक की बात है, कन्नड़ यहाँ की प्रधान भाषा है और हम कभी भी इसकी अहमियत से कोई समझौता नहीं करेंगे।’