केंद्र सरकार यूजीसी और एआईसीटीई की जगह भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (एचईसीआई) का गठन करने जा रही है। एचईसीआई में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) का विलय हो जाएगा। उसे ज्यादा पावर दी जाएगी और उसे पांच करोड़ तक का जुर्माना लगाने का अधिकार दिया जाएगा। यह जानकारी रविवार को इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में दी है।
केंद्र सरकार 2018 से इस तरह की केंद्रीय संस्था बनाने की कोशिश में जुटी हुई थी। 2018 में देश के तमाम शिक्षाविदों ने ऐसी कोशिश का विरोध करते हुए कहा था कि सरकार शिक्षा को नियंत्रित करने के लिए ऐसा कदम उठा रही है। लेकिन जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बता रही है, सरकार फिर से उसी तरह की कवायद में जुटी हुई है। मोदी सरकार ने कई संवैधानिक संस्थाओं का स्वरूप बदलने में पहले ही कई सारी कामयाबियां पा ली हैं। अब यूजीसी और एआईसीटीई की जगह नया आयोग उसी कड़ी का हिस्सा है।
अभी यूजीसी सबसे बड़ी रेगुलेटरी अथॉरिटी है, जिसका गठन 1956 में हुआ था। यूजीसी के पास फर्जी यूनिवर्सिटी खोलने वालों पर अधिकतम 1,000 रुपये का जुर्माने का अधिकार है।
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक संसद के शीतकालीन सत्र में एचईसीआई का बिल शिक्षा मंत्रालय पेश कर सकता है। इस बिल में भारी जुर्माना लगाने का अधिकार भी एचईसीआई को दिया जाएगा। सरकार इस नई अथॉरिटी में कम से 15 सदस्य रखेगी, जिसमें कम से कम एक राज्य विश्वविद्यालय के कुलपति और राज्य उच्च शिक्षा परिषदों के दो प्रोफेसर हो सकते हैं।अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के अलावा अन्य सदस्यों में एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी का वीसी, उच्च शिक्षा सचिव, वित्त सचिव, एक कानूनी विशेषज्ञ और इंडस्ट्री से एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हो सकता है।
सरकार एचईसीआई का गठन 2018 से करने की कोशिश कर रही है। लेकिन उस समय इसका भारी विरोध हुआ था और सरकार को पीछे हटना पड़ा था। तमाम शिक्षाविदों ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि यह सब शिक्षा पर केंद्र का शिकंजा कसने के लिए किया जा रहा है। अब नए सिरे से एचईसीआई बिल लाने से क्या वो खतरे कम हो गए हैं, यह सवाल बना हुआ है। देखना है कि शिक्षाविद अब इस पर किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं।
सरकार 2018 में जिस तरह का एचईसीआई बनाना चाहती थी, उसमें राज्यों के प्रतिनिधित्व का कोई प्रावधान नहीं था। उसमें केंद्र सरकार को यह पावर भी दी गई थी कि वो आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष या किसी अन्य सदस्य को हटा सकती थी। सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि - नए बिल में उस हिस्से को बरकरार रखा गया है, लेकिन उसमें यह शर्त जोड़ी गई है कि सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा जज द्वारा जांच के बाद ही उस निष्कासन को प्रभावी माना जाएगा।
नए आयोग को यह पावर होगी कि वो अपराधों, दंड और निर्णय की प्रकृति के आधार पर जुर्माना लगा सकेगा। यदि उल्लंघन मामूली हैं, तो आयोग नोटिस जारी कर सकता है और स्पष्टीकरण मांग सकता है। हालांकि, अगर मुद्दों का समाधान नहीं किया जाता है, तो उल्लंघन करने वालों पर न्यूनतम 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है। “गंभीर उल्लंघनों” के लिए, जुर्माना 5 करोड़ रुपये तक हो सकता है, जिसमें पांच साल तक की जेल हो सकती है। इसके अलावा, किसी भी उच्च शिक्षा संस्थान द्वारा किए गए उल्लंघनों के लिए, संस्थान के "कार्यकारी प्रमुख" को उत्तरदायी बनाने का प्रस्ताव है।