मोदी के साथ भी काम किया है, गोयल के हमले के बाद बोले अभिजीत

03:35 pm Oct 20, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

आज भले ही भारतीय जनता पार्टी के नेता और नरेंद्र मोदी सरकार के मंत्री नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी को कोसें और उनके विचारों को 'जनता से खारिज' क़रार दें, एक समय ख़ुद नरेंद्र मोदी ने उनके साथ काम किया था। ख़ुद बनर्जी ने इसका खुलासा किया है।

बनर्जी ने एनडीटीवी से एक ख़ास बातचीत में कहा, ‘जिस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, मैंने गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के साथ काम किया था और मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा था।’ अभिजीत बनर्जी ने कहा : 

मैं अपनी आर्थिक सोच में किसी एक विचारधारा या पार्टी का नहीं हूँ। हमने कई सरकारों के साथ काम किया है, जिनमें कई तो बीजेपी की सरकारें रही हैं। हमने गुजरात प्रदूषण (नियंत्रण) बोर्ड के साथ काम तब किया था, जब वह नरेंद्र मोदी के अधीन था और हमारा अनुभव मोटे तौर पर बहुत ही अच्छा रहा। मैं तो यह कहूँगा कि उन्होंने हमारे साक्ष्यों पर काम किया और उन नीतियों को लागू किया।


अभिजीत बनर्जी, अर्थशास्त्री

बता दें कि बनर्जी ने इसके पहले कई बार मोदी सरकार के आर्थिक फ़ैसलों की आलोचना की थी। लेकिन जेएनयू से एमए करने वाले बनर्जी नोबेल पुरस्कारों की घोषणा होने के बाद यकायक सुर्खियों में छा गए। उसके बाद बीजेपी के लोगों ने उन पर ज़बरदस्त हमला बोल दिया। उनकी नीतियों की तीखी आलोचना की गई और उनकी निजी जिंदगी पर भी हमला किया गया। कई बार अशालीन भाषा का भी प्रयोग किया गया।

याद दिला दें कि राहुल गाँधी ने लोकसभा चुनाव के दौरान 'न्याय' स्कीम का एलान किया था, जिसके तहत ग़रीबी रेखा से नीचे रहने वाले हर परिवार को महीने में 6 हज़ार यानी सालाना 72 हज़ार रुपये देने की बात कही गई थी। रेल मंत्री पीयूष गोयल ने इसी ओर इशारा करते हुए कहा था कि जनता ने बनर्जी की नीतियों को नकार दिया है। उन्होंने इसके बाद यह भी जोड़ा था कि 'ऐसे में हम बनर्जी की नीतियों को क्यों मानें'

लेकिन नोबेल की घोषणा होने के बाद अभिजीत बनर्जी ने एनडीटीवी से बातचीत में कहा : 

यूपीए के अंतिम दिनों में संस्थान काफ़ी आक्रामक हो गए थे। लंबी अवधि के लिए यह ठीक हो सकता है, पर तात्कालिक प्रभाव यह हुआ था कि उद्योग व्यापार जगत के कई लोग इससे परेशान हो गए थे। अब यह हाल है कि संस्थान अस्तित्व में तो हैं, पर अब वे फ़ैसले लेना पसंद नहीं करते।


अभिजीत बनर्जी, अर्थशास्त्री

बनर्जी ने यह भी कहा कि 'आज संस्थानों को जोम्बी में तब्दील कर दिया गया है।' बता दें कि 'जोम्बी' काल्पनिक चरित्र होते हैं, जिनका प्रयोग हॉरर सिनेमा में किया जाता है। इसमें एनीमेशन के ज़रिए मुर्दा को जिंदा कर दिया जाता है और वह तरह-तरह के करतब करता रहता है, जो रोमांचक होता है और डरावना भी।

कोलकाता के प्रेसीडेन्सी कॉलेज से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने वाले नोबेल पुरस्कार विजेता ने यह भी कहा कि वह भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर अपने आकलन पर कायम हैं। उन्होंने भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक बार फिर चिंता जताई और कहा कि खपत कम हुई है।

बनर्जी ने कहा, 'आपको इसे गंभीरता से मानना होगा कि अर्थव्यवस्था संकट में है। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे का जो आँकड़ा एकदम से उछल कर मेरे सामने आ जाता है, वह है औसत खपत। इस मामले में हम 2014-15 में जहाँ थे, आज उससे थोड़ा नीचे ही हैं।'

अभिजीत बनर्जी का यह कहना कि उन्होंने मोदी के साथ भी काम किया है और उनका अनुभव बेहद अच्छा रहा है, कई मामले में अहम है। इसका राजनीतिक पहलू भी है। पूरी दुनिया यह कह रही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में है, फिसल रही है, सुस्त हो चुकी है और मंदी की ओर बढ़ रही है। आईएमएफ़, विश्व बैंक, मूडीज़, दूसरे कई शोध संस्थानों ने अलग-अलग समय में आँकड़े देकर कहा है कि किस तरह भारत की अर्थव्यवस्था बुरे दौर में हैं। यहाँ तक कि रिज़र्व बैंक ने भी सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की अनुमानित दर को कम कर दिया है।

पर सरकार इन तमाम बातों को सिरे से खारिज करते हुए कहती है कि अर्थव्यवस्था बिल्कुल ठीक है, अभिजीत की मातृभाषा बांग्ला में मोदी जी ने कहा ही है, 'सब खूब भालो' यानी 'सबकुछ बहुत अच्छा है।' प्रधानमंत्री ने तो अर्थव्यवस्था पर सवाल उठाने वालों को 'पेशेवर निराशावादी' तक क़रार दिया है। ऐसे में नोबेल पुरस्कार पाने वाले आदमी का यह कहना कि सबकुछ ठीक नहीं है और अर्थव्यवस्था संकट में है, मोदी के मंत्रियों को परेशान करेगा, यह स्वाभाविक है।

जिस व्यक्ति ने मोदी के नोटबंदी के फ़ैसले की आलोचना करते हुए कहा था कि इसका बुरा नतीजा अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा और वैसा ही हुआ, उस व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार मिलने पर भला सत्तारूढ़ दल को कैसे खुशी होगी और वह आदमी इसके बाद भी सरकार की आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए तो पीयूष गोयल जैसे रेल मंत्री का तिलमिलाना जायज़ है। यह बात दीगर है कि ख़ुद गोयल के मंत्रालय का यह हाल है कि 3 लाख कर्मचारियों की छंटनी की योजना बन रही है और आईआरसीटीसी के निजीकरण का विज्ञापन तक अख़बारों में छप चुका है।