किसान आन्दोलन : विनाश काले विपरीत बुद्धि

01:08 pm Jan 31, 2021 | जस्टिस मार्कंडेय काटजू - सत्य हिन्दी

कृषि क़ानूनों के वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ कर लोगों को एकजुट कर दिया है। इसके अलावा, इन्होंने राजनेताओं को इस मामले से दूरी बनाये रखने के लिए कहा है।

दिल्ली के ग़ाज़ीपुर, टीकरी और सिंघु बॉर्डर पर इंटरनेट और टेलीफ़ोन सेवाओं को अधिकारियों ने बंद कर दिया है। वे शायद समझते हैं कि ऐसा कर किसान आन्दोलन को दबा देंगे। लेकिन मेरी राय में यह केवल स्थिति को और भयावह बनाएगा और बिगाड़ेगा।

किंग कैन्यूट की तरह व्यवहार कर रही है सरकार?

अधिकारीगण इंग्लैंड के किंग कैन्यूट की तरह व्यवहार कर रहे हैं, जिन्होंने ज्वार की लहरों को चले जाने के लिए कहा था। सत्ता प्रतिष्ठान के लोग अपने गोएबेल्सियन प्रचार द्वारा (जो बेशर्म ‘गोदी मीडिया के माध्यम से फैलाई गया) किसानों को खालिस्तानी, पाकिस्तानी, माओवादी, देशद्रोही आदि के रूप में चित्रित करने की कोशिश की, लेकिन इसका विश्वास किसी ने नहीं किया। 

क्या सोचते हैं पुलिसकर्मी?

उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर इकट्ठे हुए किसानों पर हमला करने के लिए गुंडे भेजे, लेकिन किसानों ने उनका सामना कर उन्हें वहाँ से भगा दिया। पुलिसकर्मियों को उन्हें तितर-बितर करने के लिए भी भेजा गया, लेकिन मुझे एक युवा मित्र ने सूचित किया, जो नियमित रूप से किसानों के पास जाते हैं और उन्हें भोजन, पानी की बोतलें आदि की आपूर्ति करते हैं, कि कई पुलिसकर्मियों ने किसानों को गले लगाया और रोए।

उन पुलिसकर्मियों ने उनसे अनुरोध किया कि वे इसका वीडियो न बनाएं ताकि उन्हें पीड़ित न किया जाए। आखिरकार, अधिकांश पुलिसकर्मी (और सेना के जवान) किसानों के बेटे हैं, और उनके दिल में उनके प्रति सहानुभूति होगी ही।

इतिहास से सीखेगी सरकार?

यह घटना हमें 25 जुलाई 1830 में फ्रांसीसी राजा चार्ल्स द्वारा जारी किये गए सेंट क्लाउड ऑर्डिनेंस की याद दिलाती हैं। यह ऑर्डिनेंस प्रेस की स्वतंत्रता को दबाने के लिए जारी किया गया था, जिसका परिणाम हुआ 1830 की जुलाई क्रांति, जिसने 3 दिनों की बैरिकेड लड़ाई के बाद राजा को पद से हटा दिया था। 

फ़रवरी 1917 में रूसी सैनिकों को प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया गया था, जिससे उनमें उल्टा प्रदर्शनकारियों के साथ अपनेपन का एहसास जगा, और परिणामस्वरूप फ़रवरी क्रान्ति जिससे ज़ारशाही का अंत हो गया।

उठ रहा है ज्वार!

भारत के किसान संख्या में लगभग 75 करोड़ हैं, जो एक बहुत बड़ी ताक़त है, और जो अब एक ज्वार की लहर के भाँति उठ खड़ी हो गयी है। नेपोलियन ने चीनी लोगों के बारे में कहा था कि "सोने वाले विशाल जीव को सोने दो, क्योंकि जब वह जागेगा तो दुनिया  हिल जाएगी"। आज भारतीय किसानों के बारे में भी यही कहा जा सकता है। 

भारत अब तक प्रगति नहीं कर सका क्योंकि हम जाति और धर्म के आधार पर विभाजित थे, और आपस में लड़ रहे थे, और इस कमज़ोरी का उपयोग हमारे स्वार्थी राजनेताओं ने समाज के ध्रुवीकरण और जाति और सांप्रदायिक घृणा और  हिंसा को उकसाकर वोट बैंक बनाने के लिए किया।

वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन ने जाति और धर्म की बाधाओं को तोड़ कर लोगों को एकजुट कर दिया है, जो एक महान ऐतिहासिक उपलब्धि है। इसके अलावा, इन्होंने राजनेताओं को इस मामले से दूरी बनाये रखने के लिए कहा है।

यह आंदोलन, जो वर्तमान में केवल आर्थिक माँगों के लिए है, जैसे कृषि उपज के लिए उचित मूल्य आदि, बाद में  भारतीय जनता के एक विशाल राजनैतिक और सामाजिक  जनसंघर्ष में विकसित होगा जो 10-15 वर्षों तक चल सकता है।

लेकिन  अंततोगत्वा इसका परिणाम होगा एक राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था बनाना जिसके तहत भारत तेज़ी  से औद्योगिकीकरण करेगा और भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाएगा और  भारतीय जनता को उच्च जीवन स्तर और सभ्य जीवन भी देगा।