RSS से जुड़ सकते हैं अब सरकारी कर्मचारी, कांग्रेस ने पूछा- क्या निक्कर पहन कर आएंगे

12:09 pm Jul 22, 2024 | सत्य ब्यूरो

बजट सत्र शुरू होते ही सोमवार को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों की भागीदारी पर पहले के प्रतिबंध को रद्द करने वाले एक सरकारी आदेश ने सत्तारूढ़ भाजपा और विपक्षी कांग्रेस के बीच एक नया मोर्चा खोल दिया है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग का 9 जुलाई का आदेश पिछले तीन आदेशों के संदर्भ में आया है। इन आदेशों में सरकारी कर्मचारियों को भाजपा के वैचारिक संगठन, आरएसएस के कार्यक्रमों में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया गया था। ये आदेश 30 नवंबर, 1966, 25 जुलाई, 1970 और 28 अक्टूबर, 1980 को दिए गए थे। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर संसद में उठाने की योजना बनाई है। भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने सोमवार को एक्स पर कहा कि दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया मूल प्रतिबंध आदेश असंवैधानिक था।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद जयराम रमेश ने कहा-  फरवरी 1948 में गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटाया गया। इसके बाद भी RSS ने नागपुर में कभी तिरंगा नहीं फहराया। 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश है। 

जयराम रमेश ने कहा कि 4 जून 2024 के बाद, स्वयंभू नॉन-बायोलॉजिकल प्रधानमंत्री और RSS के बीच संबंधों में कड़वाहट आई है। 9 जुलाई 2024 को, 58 साल का प्रतिबंध हटा दिया गया जो अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री के कार्यकाल के दौरान भी लागू था। मेरा मानना है कि नौकरशाही अब निक्कर में भी आ सकती है।

'भारत की एकता, अखंडता के खिलाफ है फैसला'

एआईएमआईएम प्रमुख और हैदराबाद से लोकसभा सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने अपने बयान में तीखा प्रतिक्रिया देते हुए कहा- इस कार्यालय ज्ञापन से कथित तौर पर पता चलता है कि सरकार ने आरएसएस की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर से प्रतिबंध हटा दिया है। यदि यह सत्य है तो यह भारत की अखंडता और एकता के विरुद्ध है। आरएसएस पर प्रतिबंध इसलिए है क्योंकि उसने मूल रूप से संविधान, राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। प्रत्येक आरएसएस सदस्य शपथ लेता है कि वह हिंदुत्व को राष्ट्र से ऊपर रखता है। कोई भी सिविल सेवक यदि आरएसएस का सदस्य है तो वह राष्ट्र के प्रति वफादार नहीं हो सकता।

भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया कि हिंदुत्व समर्थक संगठन पर प्रतिबंध कथित तौर पर 7 नवंबर, 1966 को संसद के बाहर हुए गोहत्या विरोधी विरोध प्रदर्शन के कारण लगाया गया था। उन्होंने आगे कहा कि पुलिस फायरिंग में लाखों प्रदर्शनकारियों की मौत हो गई> मालवीय ने लिखा, "30 नवंबर 1966 को, आरएसएस-जनसंघ के दबदबे से आहत होकर, इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया।" हालांकि अमित मालवीय के इस दावे का खंडन सिर्फ इसी बात से हो जाता है कि आरएसएस पर पहला प्रतिबंध तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री सरदार पटेल ने गांधी जी की हत्या के बाद लगाया था। पटेल का यह मानना था कि गांधी की हत्या में आरएसएस का हाथ है। आरएसएस पर उस समय भारत-पाकिस्तान बंटवारे का लाभ उठाकर दंगे भड़काने का भी आरोप था। यानी आरएसएस पर देश की आजादी के समय से ही साम्प्रदायिक माहौल बिगाड़ने का आरोप रहा है। आरएसएस संस्थापक अंग्रेजों की नीतियों का समर्थन करते रहे हैं।