पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी दिल्ली पहुँच गयी हैं। यहाँ वह कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी समेत विपक्षी दलों के तमाम नेताओं से मुलाक़ात करेंगी। ममता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मिलेंगी। टीएमसी प्रमुख अगले तीन दिन तक राजधानी में रहेंगी और गुरुवार को कोलकाता लौटेंगी।
कांग्रेस पार्टी छोड़ने और पश्चिम बंगाल में इसमें व्यापक तोड़फोड़ कर इसे लगभग मिट्टी में मिला देने की रणनीति और उसमें कामयाबी के बावजूद ममता बनर्जी के सोनिया गांधी से रिश्ते कभी खराब नहीं हुए।
ममता का सारा ज़ोर पश्चिम बंगाल कांग्रेस पर रहा और वह निशाने पर उन्हें ही लेती रहीं, लेकिन कभी भी सोनिया के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा।
ग़ैर- बीजेपी गठबंधन
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ममता बनर्जी के इस दौरे का मुख्य लक्ष्य लोकसभा चुनाव 2024 में ग़ैर- बीजेपी गठबंधन पर काम करना है। वह पश्चिम बंगााल में कांग्रेस व तृणमूल गठजोड़ की संभावनाओं पर बात कर सकती हैं। इसके अलावा नरेंद्र मोदी को चुनौती देने वाले नेता के रूप में किसे पेश किया जाए, इस पर भी विचार विमर्श की शुरुआत कर सकती हैं।
इस बार के पश्चिम बंगााल विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने जिस तरह बीजेपी के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाला और एक बार फिर जीत हासिल की, उससे उनका और पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल सातवें आसमान पर रहना स्वाभाविक है।
तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पार्टी के विस्तार और ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री पद के भावी उम्मीदवार के रूप में पेश करने की योजना के ही तहत असम, त्रिपुरा और गोवा ही नहीं, उत्तर प्रदेश में भी पैर पसारने की योजना पर काम कर रही है।
टीएमसी की दिक्क़त
लेकिन तृणमूल कांग्रेस के साथ एक बड़ी दिक्कत यह है कि वह राहुल गांधी को कैसे रोके या उनके ख़िलाफ़ ममता बनर्जी की उम्मीदवारी पर कैसे बात करे। तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुदीप बंद्योपाध्याय यह कह चुके हैं कि उनकी पार्टी राहुल गांधी को स्वीकार नहीं कर पाएगी। इसी तरह पार्टी के नेता बीच बीच में इस आशय के बयान देते रहते हैं।
कांग्रेस की दिक्क़त
जाहिर है, कांग्रेस इससे नाराज होगी और ममता बनर्जी के साथ किसी तरह के गठबंधन से परहेज करेगी। लेकिन कांग्रेस के साथ दिक्क़त यह है कि उसके सामने शरद पवार, मायावती और अखिलेश यादव जैसे नेताओं की चुनौती भी है।
मायावती की बहुजन समाज पार्टी भले ही कमज़ोर हो चुकी हो, एक दलित नेता के रूप में उनकी पहचान और पकड़ को इनकार नहीं किया जा सकता है। इसी तरह अखिलेश यादव के पास ओबीसी समर्थन का आधार है। यदि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बीएसपी ने अच्छा प्रदर्शन कर लिया तो उनकी दावेदारी बढ़ जाएगी।
शरद पवार का आधार किसानों के बीच है और उनकी पार्टी महाराष्ट्र में सत्ता में है।
कांग्रेस की यह सोच हो सकती है कि मायावती, अखिलेश और शरद पवार जैसे दिग्गजों को रोकने के लिए ममता बनर्जी का इस्तेमाल किया जाए।
सोनिया गांधी के साथ बैठक की यह खास अहमियत है।
ममता बनर्जी ने इसके पहले भी दिल्ली आकर सोनिया गांधी, राहुल गांधी ही नहीं, लालू प्रसााद यादव, अखिलेश यादव और शरद पवार से मुलाक़त की थी। बाद में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा था कि विपक्ष का चेहरा बनने के लिए वह मैदान में नहीं है, यह तो जनता तय करेगी, पर बीजेपी को रोकना ज़रूरी है और उनका ज़ोर इस पर है, पर सब जानते हैं कि राजनीति में इस तरह की बातें कही जाती हैं।