बोलने की आज़ादी पर अंकुश लगाने और असहमति की आवाज़ को देश के ख़िलाफ़ बताने की कोशिशों के बीच लोकतांत्रिक देशों की सूची में भारत फिसल गया है। अमेरिकी सरकार के एक एनजीओ फ्रीडम हाउस ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में कुछ गंभीर बातों का जिक्र किया है।
‘2021 में विश्व में आज़ादी- लोकतंत्र की घेरेबंदी’ शीर्षक से जारी की गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा लगता है कि भारत ने वैश्विक लोकतांत्रिक नेता के रूप में नेतृत्व करने की क्षमता को त्याग दिया है और भारत के इस सूची में नीचे जाने से दुनिया भर के लोकतांत्रिक मापदंडों पर ख़राब असर हो सकता है। भारत की ओर से अभी तक इस बारे में कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।
यह एनजीओ दुनिया भर के देशों में आज़ादी का क्या स्तर है, इसकी पड़ताल करता है और इसके बाद इन्हें ‘आज़ाद’, ‘आंशिक आज़ाद’ और ‘आज़ाद नहीं’ की रैंक देता है।
इस एनजीओ ने 2018, 2019 और 2020 में भारत को ‘आज़ाद’ देशों की सूची में रखा था हालांकि तब भी भारत 77 से गिरकर 71 अंक पर आ गया था लेकिन ताज़ा रिपोर्ट में भारत 100 में से 67 अंक ही हासिल कर सका है और इसे ‘आंशिक आज़ाद’ देश की रैंक दी गई है।
दिशा रवि के मामले में देखिए चर्चा-
एनजीओ ने रिपोर्ट में कहा है कि 2014 के बाद से ही भारत में राजनीतिक अधिकारों और लोगों की आज़ादी के मामले में स्थिति ख़राब हुई है। इसके पीछे मानवाधिकार संगठनों पर बढ़ता दबाव, पढ़े-लिखे लोगों और पत्रकारों को धमकियां मिलने और मुसलमानों पर धार्मिक कट्टरता वाले हमलों की बढ़ती घटनाओं को कारण बताया गया है। इसके अलावा सीएए का विरोध करने वाले प्रदर्शनकारियों और आलोचना करने वाले पत्रकारों को निशाना बनाने को भी इसका कारण बताया गया है।
मोदी सरकार पर लगातार यह आरोप लगता रहा है कि वह विरोध या असहमति की आवाज़ को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं है और आवाज़ को कुचलने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों का बेजा इस्तेमाल कर रही है।
अधिनायकवाद की ओर जा रहा देश
कहा गया है कि 2019 में यह गिरावट और तेज़ हुई और केंद्र सरकार और राज्यों में इसके सहयोगी अपने आलोचकों पर टूट पड़े। भारत में लगाए गए लॉकडाउन को बेहूदा बताते हुए कहा गया है कि इसकी वजह से लाखों प्रवासी मजदूरों को बिना किसी योजना के विस्थापित होना पड़ा। रिपोर्ट कहती है कि भारत की सरकार और सत्तारूढ़ दल देश को अधिनायकवाद की ओर ले जा रहे हैं।
न्यायिक आज़ादी पर दबाव
रिपोर्ट कहती है कि भारत में न्यायिक आज़ादी पर भी दबाव है और दिल्ली दंगों के एक मामले में तो पुलिस को डांटने पर एक जज का तुरंत ट्रांसफ़र कर दिया गया। कहा गया है कि दिल्ली दंगों में 50 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई और इसमें अधिकतर मुसलमान थे।
भारत सरकार की नीतियों को भेदभाव करने वाला बताते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्रकारों, ग़ैर सरकारी संगठनों और सरकार की आलोचना करने वालों का उत्पीड़न बढ़ा है।
हालांकि इस एनजीओ ने भारत को आज़ाद और निष्पक्ष चुनाव कराने को लेकर सबसे ज़्यादा अंक दिए हैं लेकिन राजनीतिक दलों को मिलने वाले पैसे को लेकर अस्पष्टता होने पर चिंता जाहिर की है। रिपोर्ट में चीन को दुनिया का सबसे ज़्यादा तानाशाह देश बताया गया है।
यह रिपोर्ट ऐसे वक़्त में और भी अहम है जब देश में केंद्र सरकार की इस बात को लेकर आलोचना हो रही है कि वह एक टूलकिट से ही डर गई और और दिल्ली पुलिस ने 22 साल की लड़की को टूलकिट को बनाने के आरोप में गिरफ़्तार कर लिया। इसके अलावा पत्रकार मनदीप पूनिया और दलित कार्यकर्ता नवदीप कौर की गिरफ़्तारी को लेकर पुलिस और सरकार की खासी आलोचना हुई।