संघ के मंच से क्या बोले और क्यों बोले पूर्व सीईसी सुनील अरोड़ा

01:55 pm Apr 16, 2022 | सत्य ब्यूरो

भारत के पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा शुक्रवार को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के मंच पर दिखे। एबीवीपी आरएसएस से जुड़ा छात्र संगठन है। अरोड़ा 2019 में चुनाव आयोग के मुखिया थे। उन पर बीजेपी सरकार की मदद करने के आरोप उस समय लगे। लेकिन शुक्रवार को एबीवीपी के कार्यक्रम में अपने भाषण के दौरान उन्होंने एक पुराने विवाद पर सफाई देने की कोशिश की, जिसमें उन पर पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह का फेवर करने के आरोप लगे थे। सुनील अरोड़ा ने जिस तरह से एबीवीपी का मंच साझा किया, उससे उनके आरएसएस और बीजेपी से पूर्व के रिश्तों की भी पुष्टि हो गई। पिछला आम चुनाव 2019 में हुआ था। उस समय बतौर सीईसी सुनील अरोड़ा के कई फैसले विवादास्पद बने।अम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर में शुक्रवार को आयोजित कार्यक्रम में एबीवीपी के इतिहास पर एक किताब का विमोचन करने के बाद अरोड़ा विस्तार से बोले। द टेलीग्राफ अखबार ने इस कार्यक्रम की रिपोर्ट शनिवार को प्रकाशित की है। चुनाव के फौरन बाद कई रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट्स द्वारा लिखे गए पत्र का जिक्र करते हुए, अरोड़ा ने कहा: उन लोगों ने खुद को लोकतंत्र का संरक्षक कहा…। लेकिन दूसरे पैराग्राफ में ही उन लोगों ने लिखा कि लोकतंत्र के इतिहास में यह निष्पक्ष चुनाव नहीं था।...यह बोलने के बाद सुनील अरोड़ा ने सवाल किया, क्या इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ हो सकता है?

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा: इसके बाद मैंने एक रिटायर्ड सीईसी से फोन पर पूछा कि मुझे उन लोगों को जवाब देने में आपके मार्गदर्शन की जरूरत है। मिली जुली हिंदी और पंजाबी जबान में उन्होंने कहा: मैं समझा तू सयाना मुंडा सी (मैंने सोचा था कि तुम एक स्मार्ट लड़के हो)। अगर तुम उन्हें जवाब दोगे तो वे इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में बैठकर तुमको एक और पत्र भेजेंगे… गिल साहब ने जो कहा, उसका सार यही था, जो मैंने आप लोगों को बताया।

बता दें कि एमएस गिल 1996 से 2001 तक भारत के सीईसी थे। उस दौरान कांग्रेस समर्थित या बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार केंद्र की सत्ता में रही हैं। 2008 में तत्कालीन कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने एमएस गिल को केंद्र में मंत्री बनाया था।

एबीवीपी के मंच पर पुस्तक विमोचन में सुनील अरोड़ा मौजूद थे। फोटो एबीवीपी सोशल मीडिया

सुनील अरोड़ा के विवादास्पद फैसलों के खिलाफ लिखे गए उस पत्र पर जवाहर सरकार ने भी हस्ताक्षर किए थे। जवाहर सरकार पूर्व केंद्रीय संस्कृति सचिव रह चुके हैं और अब राज्यसभा में तृणमूल सांसद हैं। जवाहर ने शुक्रवार रात एक सवाल के जवाब में द टेलीग्राफ को बताया, ''अच्छा हुआ जो सुनील अरोड़ा आखिरकार अपने असली राजनीतिक रंग में आ गए... उन्होंने सत्तारूढ़ सरकार के हित में काम किया…”

एबीवीपी के मंच पर सुनील अरोड़ा के बयान से उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा तो साफ हो गई लेकिन उनके करीबी सूत्र ने इस बात से इनकार किया कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा है। उसने कहा कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए इसलिए राजी हुए थे क्योंकि उन्हें सिर्फ पुस्तक विमोचन के लिए कुछ अकादमिक दोस्तों द्वारा आमंत्रित किया गया था।

सुनील अरोड़ा राजस्थान काडर के एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं, जो 2021 में सीईसी पद से रिटायर हुए। उन्हें बीजेपी का पक्ष लेने के लिए तमाम आरोपों का सामना करना पड़ा था। उनके ही समय में चुनाव आयोग ने प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को 2019 के चुनाव अभियान के दौरान अभद्र टिप्पणी करने के बावजूद क्लीन चिट दी थी। .

क्लीन चिट देने पर उस समय चुनाव आयोग के कमिश्नर अशोक लवासा ने आपत्ति जताई थी। इसके बाद लवासा और उनकी ब्यूरोक्रेट बेटी का उत्पीड़न हुआ। लवासा ने परेशान होकर चुनाव आयोग छोड़ दिया। लवासा एशियाई विकास बैंक में नौकरी करने चले गए। बहरहाल, शुक्रवार के कार्यक्रम में सुनील अरोड़ा एबीवीपी को सलाह देने से भी नहीं चूके। अरोड़ा ने एबीवीपी से कहा: आप लोग बहुत जल्दी भावुक हो जाते हैं और ऐसे काम करते हैं जो आपको नहीं करना चाहिए। ध्येय यात्रा किताब के विमोचन पर, अरोड़ा ने बलबीर सिंह और गोपाल शर्मा द्वारा लिखित स्वतंत्रता सेनानी महावीर सिंह राठौर की जीवनी (विकट विप्लवी) को कोट किया।

लेखकों में से एक के बारे में बोलते हुए, अरोड़ा ने कहा: “वह हमारे राजस्थान के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं, जो आरएसएस से जुड़े थे। मुझे नहीं पता कि वह अभी भी हैं या नहीं। अयोध्या में भी वो आगे तक पहुंच गए थे। निदेशक, जनसंपर्क के रूप में, मैंने अपने उन्हें अपना बैच मेट बताकर उनके लिए पास (अंदर जाने की अनुमति) बना दिया था। अरोड़ा की इस टिप्पणी पर दर्शकों ने तालियां बजाई। जो शायद यह समझ रहे थे कि सुनील अरोड़ा 1992 में बाबरी मस्जिद के गिराने का जिक्र कर रहे थे। अरोड़ा ने कहा कि पिछले साल बंगाल के चुनावों के दौरान, पत्रकारों ने उनसे बंगाल की अस्थिरता पर टिप्पणी करने के लिए कहा था। जवाब देने से पहले मैं डर गया कि कहीं मीडिया कॉन्फ्रेंस के दौरान उन पर जूता ना फेंक दिया जाए। फिर भी मैंने जवाब दिया कि बंगाल में हमेशा अस्थिरता रही है। यही वजह है कि देश के किसी अन्य हिस्से की तुलना में वहां सामाजिक सुधार सबसे पहले हुए और बंगाल ने इतने सारे क्रांतिकारियों को जन्म दिया। वही अस्थिरता अब भी है, उसे ठीक नहीं किया गया। यही वजह है कि आप मुझसे यह सवाल पूछ रहे हैं।