कृषि क़ानून 2020 के ख़िलाफ़ चल रहे किसान आन्दोलन की जगह टिकरी बॉर्डर के पास पंजाब के एक वकील ने रविवार को कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। उनके कथित आत्महत्या नोट में कहा गया है कि 'प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों की बातें सुननी चाहिए।'
एनडीटीवी के अनुसार, पंजाब के फ़ाज़िल्का ज़िले के जलालाबाद के रहने वाले अमरजीत सिंह ने कथित तौर पर ज़हर खा लिया, उन्हें रोहतक के एक अस्पताल में दाखिल कराया गया, जहाँ उनकी मौत हो गई।
सुसाइड नोट में मोदी से अपील
उन्होंने कथित तौर पर एक सुसाइड नोट छोड़ा, जिसमें लिखा था कि वे 'किसान आन्दोलन के समर्थन में अपनी जान की क़ुर्बानी दे रहे हैं ताकि सरकार किसानों की बातें सुने।'
इस कथित सुसाइड नोट में लिखा गया है, "कृपा करके किसानों, मजदूरों और आम जनता की रोजी-रोटी मत छीनिए और उन्हें ज़हर खाने के लिए मजबूर न कीजिए। सामाजिक तौर पर आपने जनता और राजनीतिक तौर पर आपने अकाली दल जैसे सहयोगी दलों को धोखा दिया है। लेकिन जनता की आवाज़ भगवान की आवाज़ होती है। कहा जा रहा है कि आपको गोधरा जैसा बलिदान चाहिए, इस वैश्विक आंदोलन के जरिये आपकी अंतरात्मा तक आवाज पहुँचाने के लिए मैं अपनी कुर्बानी दे रहा हूँ।"
इस कथित सुसाइड नोट में कहा गया है कि 'काले कृषि क़ानूनों की वजह से किसान और मज़दूर ठगे गए हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लोगों की बात सुननी चाहिए।'
पुलिस कर रही है जाँच
इस नोट पर 18 दिसंबर की तारीख़ है। पुलिस ने कहा है कि वह इस नोट की सत्यता की जाँच कर रही है।
एनडीटीवी के मुताबिक़, हरियाणा की झझ्झर पुलिस ने कहा, "हमने मृतक के रिश्तेदारों को मामले की जानकारी दे दी है, उनके आते ही हम उनका बयान दर्ज करेंगे और आगे की कार्रवाई करेंगे।"
याद दिला दें कि इसके पहले एक महीने में किसान आन्दोलन से जुड़ी दो आत्महत्याएं हो चुकी हैं। सिख धर्म गुरु संत राम सिंह ने सिंघू बॉर्डर पर कथित तौर पर आत्महत्या कर ली। उसके कुछ दिनों के बाद दिल्ली बॉर्डर से लौट रहे एक किसान ने पंजाब के बठिंडा में कथित तौर पर ख़ुदकुशी कर ली।
बता दें कि तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हज़ारों किसान दिल्ली की सीमा पर महीने भर से धरने पर बैठे हैं और इन क़ानूनों को रद्द करने की माँग कर रहे हैं। सरकार के साथ उनकी कई दौर की बातचीत नाकाम रही है, सरकार क़ानूनों में संशोधन करने को तैयार पर है, पर उन्हें रद्द करने से साफ इनकार कर रही है। दूसरी ओर, किसान इस पर अड़े हैं कि क़ानून हर हाल में रद्द किए जाने चाहिए। अगली बातचीत मंगलवार को है, जिसे लेकर भी किसानों को बहुत उम्मीदें नहीं हैं।