यूरोपीय संघ के 25 सांसदों का एक प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को जम्मू-कश्मीर जाएगा। वह वहाँ की स्थिति का जायजा लेगा और विशेष दर्जा ख़त्म होने के बाद की स्थिति का अध्ययन करेगा। इस प्रतिनिधिमंडल ने इसके पहले सोमवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल से मुलाक़ात की। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म किए जाने के बाद यह पहला मौका है जब कोई विदेशी दल राज्य का दौरा करने जा रहा है।
यूरोपीय संसद के सदस्य बी. एन. डन ने पत्रकारों से इसकी पुष्टि करते हुए कहा, 'प्रधानमंत्री ने हमें अनुच्छेद 370 के बारे में बताया, पर हम लोग उस जगह ख़ुद जाकर देखना चाहते हैं और लोगों से मिलना चाहते हैं।'
इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि प्रधानमंत्री ने प्रतिनिधिमंडल से मुलाक़ात के दौरान कश्मीर घाटी में हुए आतंकवादी हमलों की चर्चा की और कहा कि आतंकवाद को किसी सूरत में कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस मामले में भारत सरकार की 'ज़ीरो टॉलरेंस' की नीति है।
इस अख़बार ने यूएनआई को हवाले से कहा, 'मोदी ने प्रतिनिधिमंडल से साफ़ शब्दों में कहा कि आतंकवाद का समर्थन करने वालों या मदद करने वालों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। उन लोगों के ख़िलाफ़ भी कार्रवाई होनी चाहिए जो राज्य की नीति के रूप में आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं।'
लेकिन यूरोपीय संसद के प्रतिनिधिमंडल के इस प्रस्तावित दौरे पर कई तरह के सवाल उठने लगे हैं। पूर्व मुख्य मंत्री महबूबा मुफ़्ती के ट्विटर हैंडल से उनकी बेटी इल्तिज़ा ने ट्वीट कर कहा, 'मुझे उम्मीद है कि उन्हें स्थानीय लोगों, स्थानीय मीडिया, डॉक्टरों और सिविल सोसाइटी के लोगों से मिलने दिया जाएगा। कश्मीर और शेष दुनिया के बीच की अपारदर्शिता ख़त्म होनी चाहिए और जम्मू-कश्मीर की बदहाली के लिए भारत सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।'
इंडियन एक्सप्रेस ने ख़बर दी है कि अमेरिकी सीनेटर क्रिस वॉन हॉलन ने इसके पहले जम्मू-कश्मीर जाने की अनुमति भारत सरकार से माँगी थी, उन्हें अनुमति नहीं दी गई थी। उन्होंने इस अंग्रेजी अख़बार से कहा, 'मैं कश्मीर जाकर खुद देखना चाहता था कि वहाँ क्या हो रहा है। पर मुझे इसकी इजाज़त नहीं दी गई।'