चुनावी बांड की वैधता के खिलाफ याचिका दायर करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) ने इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के आदेशों को "नहीं मानने" पर भारतीय स्टेट बैंक के खिलाफ गुरुवार को अवमानना याचिका दायर की है।
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जाने-माने वकील प्रशांत भूषण ने इस मामले का उल्लेख चीफ जस्टिस के सामने किया। चीफ जस्टिस गुरुवार 7 मार्च को इस संबंध में आदेश दे सकते हैं।
लाइव लॉ के मुताबिक एडीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि "एसबीआई ने जानबूझकर माननीय सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ द्वारा पारित फैसले का उल्लंघन किया है, और यह न केवल नागरिकों के सूचना के अधिकार को नकारता है, बल्कि जानबूझकर इस माननीय अदालत के अधिकार को भी कमजोर करता है।"
यह घटनाक्रम एसबीआई द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दायर करने के बाद आया है, जिसमें उसने कहा कि वो 30 जून, 2024 तक चुनावी बांड के विवरण पेश कर सकता है, इसलिए समय बढ़ाया जाए। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 15 फरवरी के आदेश में एसबीआई और सरकार को निर्देश दिया था कि 6 मार्च तक केंद्रीय चुनाव आयोग (ईसीआई) को दानदाताओं और राजनीतिक दलों का विवरण भेजा जाए। जिसे चुनाव आयोग अपनी वेबसाइट पर 13 मार्च तक प्रकाशित कर देगा।
इस मामले का उल्लेख चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के सामने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने किया। उन्होंने बताया कि 6 मार्च की समय सीमा बढ़ाने की मांग करने वाला एसबीआई का आवेदन सोमवार को सूचीबद्ध होने की संभावना है और उन्होंने एसबीआई की याचिका के साथ एडीआर की अवमानना याचिका को भी सूचीबद्ध करने की मांग की। इस संबंध में सीजेआई का आदेश आज आने की उम्मीद है।
क्या है एडीआर की याचिका
15 फरवरी के अपने आदेश में, सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक को 12 अप्रैल, 2019 से खरीदे गए चुनावी बांड का विवरण 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था। हालांकि, 4 मार्च को, एसबीआई ने एक अर्जी दायर किया। उसने सुप्रीम कोर्ट में व्यावहारिक कठिनाइयों का हवाला देते हुए और इन बांडों की बिक्री से डेटा को डिकोड करने और संकलित करने की जटिलता का हवाला देते हुए जानकारी पेश करने की समय सीमा 6 मार्च से 30 जून, 2024 तक बढ़ाने की मांग की।
एडीआर के आवेदन के अनुसार, एसबीआई का अनुरोध "दुर्भावनापूर्ण" है और अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले चुनावी पारदर्शिता लाने के प्रयासों को नाकाम करने का एक प्रयास है। एडीआर का तर्क है कि चुनावी बांड के प्रबंधन के लिए डिज़ाइन किया गया एसबीआई का आईटी सिस्टम पहले से ही मौजूद है और हर बांड को दिए गए यूनीक नंबरों के आधार पर आसानी से रिपोर्ट तैयार कर सकता है।
याचिका में कहा गया है कि मतदाताओं को चुनावी बांड के जरिए राजनीतिक दलों को दी गई बड़ी रकम के बारे में जानने का मौलिक अधिकार है। याचिका में तर्क दिया गया है कि पारदर्शिता की कमी संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) में निहित लोकतंत्र के खिलाफ है।
यहां यह बताना जरूरी है कि एसबीआई के डेटा बेस के अलावा यही सूचना आयकर विभाग के पास भी मौजूद है। क्योंकि राजनीतिक चंदा देने वालों को आयकर अधिनियम के तहत छूट मिलती है। ऐसे कंपनियों या अन्य को यह छूट हासिल करने के लिए आयकर विभाग को बताना पड़ता है कि उसने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया है। अब आयकर विभाग इसमें गोपनीयता की बात कहे तो फिर क्या किया जा सकता है। आयकर विभाग के जरिए यही डेटा भारत सरकार यानी मोदी सरकार के वित्त मंत्रालय के पास भी है। अगर मोदी सरकार चाहे तो पारदर्शिता लाने के लिए खुद पहल कर यह डेटा चुनाव आयोग को दे सकती है। यह डेटा उन सभी राजनीतिक दलों के पास भी है, जिन्होंने चुनावी बांड प्राप्त किये और उन्हें भुनाया। चुनाव आयोग इन सभी राजनीतिक दलों से वो डेटा मांग कर प्रकाशित कर सकता है। कहने का आशय यह है कि चुनावी चंदे का डेटा आसानी से उपलब्ध हो सकता है, बशर्ते नीयत साफ हो।