चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर का अगला क़दम क्या होगा, इसे लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हैं। प्रशांत किशोर राजनीतिक दलों के लिए कितने अहम हैं, शायद यह बताने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के अलावा भी कई अन्य दल उनकी सेवाएं ले चुके हैं।
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर प्रशांत किशोर के हालिया बयानों से जेडी (यू) प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ख़ासे बेचैन हैं। शनिवार रात को किशोर नीतीश कुमार से मिलने पहुंचे और ख़बरों के मुताबिक़, उन्होंने पार्टी से इस्तीफ़ा देने की पेशकश की लेकिन नीतीश कुमार ने उन्हें इस्तीफ़ा देने से मना किया है।
इधर, किशोर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के लिए काम करने जा रहे हैं। कहा यह भी जाता है कि महाराष्ट्र में शिवसेना को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर अड़ने का सुझाव भी उन्होंने ही दिया था। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे से उनकी मुलाक़ात हुई थी और चुनाव रणनीति को लेकर किशोर ने उन्हें कुछ ज़रूरी बातें बताई थीं।
किशोर की कंपनी I-PAC (आई-पैक) चुनाव प्रचार की रणनीति बनाती है। नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए गुजरात के चर्चित कार्यक्रम 'वाइब्रैंट गुजरात' से लेकर 2014 के लोकसभा चुनावों में 'चाय पर चर्चा' वाले कार्यक्रम आई-पैक ने ही कराये थे।
‘अमित शाह के कहने पर दिया पद’
किशोर की अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नीतीश कुमार ने उन्हें जब अपनी पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया था, तब कहा था कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने उन्हें किशोर को पार्टी में शामिल करने के लिए कहा था। उपाध्यक्ष बनाए जाने के बाद यह कहा जा रहा था कि जेडी (यू) में नीतीश के बाद किशोर का ही नंबर है और वह नीतीश के राजनीतिक उत्तराधिकारी हो सकते हैं।
लेकिन अचानक न जाने किशोर को क्या हुआ है। उन्होंने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के लिए काम करने की बात कही है। बंगाल में ममता को हटाना बीजेपी ने अपना सियासी लक्ष्य बना लिया है और किशोर अगर ममता के लिए काम करेंगे तो फिर वह एनडीए में शामिल जेडी (यू) के लिए कैसे काम करेंगे। इसके अलावा बिहार में अगले साल नवंबर में विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में वह कैसे जेडी (यू) को समय दे पायेंगे, इसे लेकर पार्टी के भीतर सवाल भी उठ चुके हैं।
किशोर के ख़िलाफ़ उठे स्वर
नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर जब किशोर ने अपना विरोध दर्ज कराया तो जेडी (यू) में भी उनके ख़िलाफ़ विरोध के स्वर उठे हैं। किशोर लगातार इस क़ानून के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे हैं जबकि जेडी (यू) ने संसद के दोनों सदनों में इस क़ानून का समर्थन किया है। इस पर नीतीश कुमार के क़रीबी माने जाने वाले जेडी (यू) नेता आरसीपी सिंह ने साफ़ कहा कि अगर प्रशांत किशोर पार्टी छोड़कर जाना चाहते हैं तो वह जा सकते हैं। आरसीपी सिंह ने तंज कसते हुए कहा है कि वैसे भी प्रशांत किशोर को अनुकंपा के आधार पर पार्टी में शामिल किया गया था। इस बयान का मतलब साफ है कि कहीं न कहीं नीतीश कुमार और प्रशांत किशोर के रिश्तों में खटास आ चुकी है। हालाँकि किशोर ने कहा कि नीतीश कुमार ने उनसे ऐसे बयानों पर ध्यान नहीं देने के लिए कहा है लेकिन फिर भी जेडी (यू) में नीतीश की मर्जी के बिना किशोर के ख़िलाफ़ इतना बड़ा बयान कोई दे सकता है, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती।
बिहार की सियासत में इस बात की जोरदार चर्चा है कि जेडी (यू) के अंदर एक लॉबी है जो किशोर के बढ़ते क़द से परेशान है और वह उनके ख़िलाफ़ नीतीश के कान भरती है। चर्चा यह भी है कि किशोर लंबे समय से पार्टी में उपेक्षित महसूस कर रहे हैं और इससे बाहर निकलना चाहते हैं और शायद वह मौक़ा आ गया है।
महत्वाकांक्षी हैं प्रशांत किशोर
चुनावी जीत दिलाने में किशोर का ट्रैक रिकॉर्ड शानदार रहा है लेकिन अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते शायद वह एक जगह नहीं रुक पाते। बताया जाता है कि किशोर राज्यसभा जाना चाहते हैं और इस आस में वह बीजेपी, कांग्रेस, जेडी (यू) से लेकर ममता बनर्जी और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस तक से ‘जुगाड़’ भिड़ा चुके हैं लेकिन बात नहीं बन रही है और इस आस में अब वह अरविंद केजरीवाल के पास पहुंचे हैं।
नीतीश कुमार के साथ प्रशांत किशोर।
हालाँकि किशोर ने नागरिकता क़ानून को लेकर कड़ा स्टैंड लिया है और इसे देश के संविधान के ख़िलाफ़ बताते हुए इसकी जमकर मजम्मत भी की है। लेकिन अगर वह जेडी (यू) छोड़ दें तो भी वह विरोध कर सकते हैं लेकिन वह केजरीवाल के लिए काम करेंगे तो उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा को लेकर सवाल तो खड़े होते हैं।
जेडी (यू) के लिए काम करने तक किशोर के साथ सब ठीक था क्योंकि जेडी (यू) एनडीए का हिस्सा है और आंध्र में वाईएसआर कांग्रेस के लिए काम करने से बीजेपी और जेडी (यू) को कोई ख़ास नुक़सान नहीं होता है। इसलिए ये दोनों दल चुप थे लेकिन किशोर के ममता बनर्जी के लिए काम करने से ही बीजेपी और जेडी (यू) की नज़र उन पर टेढ़ी होने लगी है और शायद किशोर भी इस बात को भांप चुके हैं और उन्होंने समय रहते ममता के बाद केजरीवाल का हाथ पकड़ लिया है। वैसे भी ममता और केजरीवाल की आपस में अच्छी राजनीतिक समझ है।
नीतीश को किशोर की ज़रूरत!
ख़ैर, जब अरविंद केजरीवाल ने अपने ट्विटर हैंडल पर इस बात का एलान कर दिया है कि किशोर उनके लिए काम करेंगे और किशोर भी नीतीश को अपना इस्तीफ़ा दे आए हैं तो यह माना जाना चाहिए कि आज नहीं तो कल किशोर जेडी (यू) का साथ छोड़ देंगे। लेकिन अगर केजरीवाल फिर से दिल्ली में जीत जाते हैं और किशोर जेडी (यू) छोड़ देते हैं तो इससे नीतीश की मुश्किलें कई गुना बढ़नी तय हैं क्योंकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में नीतीश को किशोर की काफ़ी ज़रूरत है। यहां याद दिलाना ज़रूरी होगा कि किशोर ने 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू के लिए काम किया था और बीजेपी से अलग होने के बाद भी जेडीयू-आरजेडी गठबंधन को जीत दिलाई थी।
दिल्ली में केजरीवाल के जीतने से किशोर का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड और बेहतर होगा और फिर वह ममता के लिए काम करके बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाएंगे। कुल मिलाकर किशोर ने इन सारे दलों को उलझा दिया है वरना नीतीश उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर लेते। वैसे, नीतीश ख़ुद बुरी तरह नागरिकता क़ानून को लेकर फंस गए हैं। देखना होगा कि किशोर कब तक जेडीयू में बने रहते हैं।