पेगासस स्पाइवेयर मामले में जाँच की मांग के लिए एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। याचिका में विशेष जाँच दल यानी एसआईटी से इसकी जाँच कराने की मांग की गई है। इसने कोर्ट से आग्रह किया है कि वह सरकार से स्पाइवेयर सौदे की जानकारी और निशाना बनाए गए लोगों की सूची मांगे। पेगासस की जाँच की मांग के लिए अब तक कई याचिकाएँ दायर की जा चुकी हैं और उन मामलों को सुप्रीम कोर्ट में इसी गुरुवार को सुना जाना है।
एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया सहित पत्रकारों के कई संगठनों ने दो हफ़्ते पहले बयान जारी कर पेगासस से कथित जासूसी की निंदा की थी। इसने कहा था कि उन्हें लगता है कि नागरिकों की जासूसी करने से लोकतंत्र कमजोर होता है। इसने कहा था कि इसीलिए यह सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह पेगासस स्पाइवेयर पर उठ रहे संदेहों को दूर करे और इस मामले में वह ख़ुद को साफ़-सुथरा साबित करे।
एडिटर्स गिल्ड ने दैनिक भास्कर और भारत समाचार के दफ़्तरों पर आयकर छापे के बाद जारी बयान में भी कहा था, 'पेगासस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से पत्रकारों और नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं की व्यापक निगरानी पर हालिया मीडिया रिपोर्टों को देखते हुए यह और भी अधिक परेशान करने वाला है।'
इसके बाद एक के बाद एक कई याचिकाएँ सुप्रीम कोर्ट में दायर की गईं। याचिका दायर करने वालों में से एक वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता भी हैं। ठाकुरता और चार अन्य, जो इजरायली स्पाइवेयर द्वारा निगरानी के लिए निशाना बनाए गए कथित सूची में थे, ने भी अदालत में याचिका दायर कर मांग की है कि स्पाइवेयर के उपयोग को अवैध और असंवैधानिक घोषित किया जाए। याचिका में कहा गया है कि सरकारी एजेंसियों द्वारा निगरानी के अनधिकृत उपयोग से संविधान के तहत गारंटी दिए गए उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।
वरिष्ठ पत्रकार एन राम और शशि कुमार पिछले हफ़्ते दायर याचिका में पेगासस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा या सेवानिवृत्त जज से कराए जाने की माँग की थी। तब उनकी ओर से वकील कपिल सिब्बल ने उनकी याचिका को सूचीबद्ध करने के लिए मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना से आग्रह किया था। इस पर सीजेआई ने कहा था कि काम का दबाव कम होने पर संभव है कि अगले हफ़्ते इसकी सुनवाई हो। और फिर ख़बर आ गई कि भारत के मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच गुरुवार यानी पाँच अगस्त को सुनवाई करेगी।
एन राम और शशि कुमार की याचिका में कहा गया है कि दुनिया भर के कई प्रमुख प्रकाशनों से जुड़ी वैश्विक जाँच से पता चला है कि भारत में 142 से अधिक व्यक्तियों को पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्य के रूप में पहचाना गया था।
उसमें यह भी कहा गया कि उस स्पाइवेयर के संभावित टार्गेट किए गए कुछ मोबाइल फ़ोन की फ़ोरेंसिक जाँच में भी पेगासस के हमले के निशान मिले हैं। आरोप है कि पेगासस स्पाइवेयर से विपक्षी नेताओं, कुछ मंत्रियों, क़रीब 40 पत्रकारों सहित दूसरे लोगों की जासूसी के लिए निशाना बनाया गया है।
इससे पहले सीपीएम के एक सांसद और इससे भी पहले एक वकील ने अदालत में याचिका दायर कर ऐसी ही मांग की थी। इस मामले की जाँच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में कराए जाने को लेकर केरल के सीपीएम सांसद जॉन ब्रिटास याचिका दायर कर चुके हैं।
सांसद ने द वायर की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि उन नंबरों में से एक नंबर सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के नाम पर पंजीकृत है और यह न्याय के प्रशासन में हस्तक्षेप करने के बराबर है और यह अभूतपूर्व व चौंकाने वाला है।
सांसद की याचिका में कहा गया है कि सरकार ने न तो स्वीकार किया है और न ही इनकार किया है कि स्पाइवेयर उसकी एजेंसियों द्वारा खरीदा और इस्तेमाल किया गया था। बता दें कि सरकार ने एक बयान में कहा है कि उसकी एजेंसियों द्वारा कोई अनधिकृत रूप से इन्टरसेप्ट नहीं किया गया है और विशिष्ट लोगों पर सरकारी निगरानी के आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है।
पिछले हफ़्ते ही एक वरिष्ठ वकील एमएल शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट में कथित पेगासस जासूसी मामले की जाँच के लिए याचिका दायर की थी। मीडिया रिपोर्टों का हवाला देते हुए एमएल शर्मा द्वारा दायर याचिका में कहा गया है, 'पेगासस घोटाला गंभीर चिंता का विषय है और भारतीय लोकतंत्र, न्यायपालिका और देश की सुरक्षा पर गंभीर हमला है। निगरानी का व्यापक और ग़ैर-जवाबदेह उपयोग नैतिक रूप से भ्रष्ट है।'