अर्णब गोस्वामी के समर्थन में जिस तरह बीजेपी और केंद्र सरकार के मंत्री खुलकर कूदे हैं, उससे यह तो पता चला ही कि उन्हें सरकार का समर्थन हासिल है। अब, सुप्रीम कोर्ट में उनकी रिहाई के मामले में तुरंत सुनवाई को लेकर सवाल खड़े हुए हैं।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने कोर्ट के महासचिव को पत्र लिखकर गोस्वामी की रिहाई की याचिका पर तुरंत सुनवाई किए जाने को लेकर विरोध जताया है। गोस्वामी को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया था और उन्होंने रिहाई के लिए बॉम्बे हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था। लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली थी और अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था।
दुष्यंत दवे ने पत्र में लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री ने कोरोना महामारी के दौरान भेदभावपूर्ण ढंग से मामलों को सुनवाई के लिए लिस्ट किया है। उन्होंने लिखा है, ‘एक ओर जहां हज़ारों लोग उनके मामलों की सुनवाई न होने के कारण जेलों में पड़े हैं, वहीं दूसरी ओर एक प्रभावशाली व्यक्ति की याचिका को एक ही दिन में सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया।’
दवे ने पत्र में साफ किया है कि उनका अर्णब गोस्वामी से कोई व्यक्तिगत द्वेष नहीं है और न ही उन्होंने गोस्वामी के सुप्रीम कोर्ट जाने के अधिकार में दख़ल देने के लिए यह पत्र लिखा है। लेकिन उन्होंने ‘सलेक्टिव लिस्टिंग’ का मुद्दा उठाया है।
दवे ने कहा है कि वे इस बात से बेहद निराश हैं कि जब भी गोस्वामी सुप्रीम कोर्ट का रूख़ करते हैं, तो उनके मामले को क्यों और कैसे तुरंत सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया जाता है। दवे ने लिखा है कि गोस्वामी को विशेष सुविधा दी जाती है जबकि आम भारतीय परेशान होने के लिए मजबूर हैं।
दवे ने पूर्व केंद्रीय वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के मामले का जिक्र किया है। उन्होंने कहा कि चिदंबरम जैसे वरिष्ठ वकील के मामले को भी इतनी तेज़ी से लिस्ट नहीं किया गया और उन्हें महीनों जेल में गुजारने पड़े।
हाई कोर्ट से निराशा हाथ लगने के बाद अर्णब के वकीलों ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रूख़ किया। उनकी याचिका को अगले ही दिन यानी बुधवार को सुनवाई के लिए दर्ज कर लिया गया।
दवे ने कहा है कि यह ताक़त का खुला दुरुपयोग है। उन्होंने कहा है कि उनके इस पत्र को सुनवाई से पहले अदालत की बेंच के सामने रखा जाए। दवे ने सीजेआई एसए बोबडे से पूछा है कि तुरंत सुनवाई करने के लिए क्या उन्हें कोई विशेष आदेश या निर्देश मिले हैं।
बार एसोसिएशन के अध्यक्ष ने कहा कि कई वकीलों ने उनसे शिकायत की कि कोरोना के दौरान कुछ मामलों को तुरंत सुनवाई के लिए लिस्ट कर लिया गया जबकि कुछ मामलों में उन्हें लंबे वक़्त तक इंतजार करना पड़ा।
अर्णब की गिरफ़्तारी पर देखिए वीडियो-
लगाए थे गंभीर आरोप
दवे ने सितंबर महीने में जस्टिस अरुण मिश्रा की विदाई के दौरान बेहद गंभीर आरोप लगाया था। दवे ने कहा था कि जस्टिस मिश्रा के ऑनलाइन विदाई समारोह में उन्हें म्यूट कर दिया गया था, वे सबकी बात सुन रहे थे, पर उनकी बात कोई नहीं सुन सकता था। इसके अलावा उन्हें बीच- बीच में कई बार डिसकनेक्ट भी किया गया। दवे ने मुख्य न्यायाधीश से इस बारे में शिकायत की थी।
दवे ने कहा था, 'मैं यह स्वीकार करता हूं कि सुप्रीम कोर्ट इस स्तर तक आ गया है कि जज वकीलों से डरते हैं। कृपया यह याद रखें कि जज आते-जाते रहते हैं, वकील बने रहते हैं। इस महान संस्था की असली ताक़त हम हैं क्योंकि हम स्थायी हैं।'
अर्णब के पक्ष में प्रदर्शन करते महाराष्ट्र बीजेपी के कार्यकर्ता।
अर्णब का राजनीतिक इस्तेमाल
अर्णब जेल में हैं। केंद्र सरकार में गृह मंत्री समेत तमाम मंत्री और बीजेपी के नेताओं ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया जतायी और पत्रकारिता के लिए उठ खड़े होने की बात कही। इन नेताओं ने इमरजेंसी की भी याद दिलायी और कहा कि शिवसेना-कांग्रेस-एनसीपी की महाराष्ट्र सरकार ने इसकी याद ताज़ा कर दी है। लेकिन अर्णब को जेल से बाहर निकालने में जो प्रक्रियात्मक ग़लती हुई है, उस पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
अर्णब गोस्वामी के मामले में पहले सेशन कोर्ट का रुख किया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस दौरान बिहार में तीसरे चरण का चुनाव, मध्य प्रदेश में विधानसभा की 28 सीट और यूपी में 7 सीटों समेत पूरे देश में उपचुनाव भी इसी दौरान हुए। उन चुनावों में भी अर्णब गोस्वामी के मुद्दे को बीजेपी ने कांग्रेस पर हमला करने के लिए उठाया। इससे सवाल उठता है कि क्या अर्णब गोस्वामी की न्यायिक हिरासत का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ।