केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की नियुक्ति शर्तें और कार्यकाल) विधेयक राज्यसभा में पेश किया था। इसके साथ ही एक नया विवाद शुरु हो गया है। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि इस विधेयक के जरिए सरकार अपनी पसंद की नियुक्तियां करनी चाहती है। आरोप इसलिए लग रहा है कि विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर जो चयन समिति बनाने की बात कही गई है उसमें बतौर सदस्य सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश नहीं होंगे।
विधेयक के मुताबिक अब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री सदस्य होंगे। केंद्र सरकार इस विधेयक के जरिए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश को इस समिति से हटाकर अपने किसी कैबिनेट मंत्री को रखना चाहती है। विपक्ष सरकार के इस विधेयक का विरोध कर रहा है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा है कि मोदी सरकार चुनाव आयोग पर अपना नियंत्रण करना चाहती है। उन्होंने 2 जून 2012 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए भाजपा नेता एलके आडवाणी के पत्र को साझा कर केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 में दिया था इस पर फैसला
इस विधेयक को लेकर विवाद इसलिए है कि 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने देश के चुनाव आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को लेकर एक फैसला दिया था। इस फैसले में कोर्ट ने पूर्व की चयन प्रक्रिया को खारिज कर दिया था।सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अब मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति का भी वही तरीका होगा, जो सीबीआई चीफ की नियुक्ति का है। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा था कि अब ये नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एक कमेटी की सिफारिश पर राष्ट्रपति करेंगे। हालांकि, तब सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि यह मौजूदा व्यवस्था तब तक जारी रहेगी, जब तक संसद इस पर कानून ना बना दे।
इस जजमेंट के आने से पहले तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति केंद्र सरकार करती थी। विपक्षी दलों का कहना है कि इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में निष्पक्ष नियुक्तियों का रास्ता साफ कर दिया था।
कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करने की कोशिश की थी
सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2023 के इस फैसले में मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में तीन सदस्यीय समिति का गठन कर कार्यपालिका के हस्तक्षेप को कम करने की कोशिश की थी।सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पूर्व तक ये नियुक्तियां केंद्र सरकार की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाती थी। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने एकल निर्णय लेने का सरकार का अधिकार छीन लिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कहा था कि विपक्ष के नेता की अनुपस्थिति की स्थिति में, सबसे बड़े विपक्षी दल का नेता चयन समिति का सदस्य होगा। भारत की संसद और संघ भारत के चुनाव आयोग के खर्चों से निपटने के लिए एक अलग और स्वतंत्र सचिवालय का गठन करेंगे ताकि सरकार के प्रति किसी भी वित्तीय दायित्व से कटौती की जा सके।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक के मामले में अपनाई जाने वाली चयन प्रक्रिया के समान चयन प्रक्रिया की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया था। बेंच में जस्टिस अजय रस्तोगी, अनिरुद्ध बोस, हृषिकेश रॉय और सीटी रविकुमार भी शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला इसलिए माना जाता है ऐतिहासिक
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इसलिए ऐतिहासिक माना जाता है क्योंकि संविधान मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कोई विशिष्ट विधायी प्रक्रिया निर्धारित नहीं करता है। राष्ट्रपति यह नियुक्ति प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली केंद्रीय मंत्रिपरिषद की सलाह पर करते रहे हैं। इसके कारण उन नियुक्तियों पर कई बार सवाल उठे हैं। विपक्षी दल कई बार आरोप लगाते हैं कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त होने वाले ये आयुक्त निष्पक्ष नहीं रहते। इसलिए इनकी निष्पक्षता को सुनिश्चित करने के लिए ही याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दी जिसपर कोर्ट ने अपना ऐतिहासिक माना जाने वाला फैसला सुनाया था।पिछले साल नवंबर में इस याचिका पर सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति "बिजली की गति" से की गई थी, इस प्रक्रिया में 18 नवंबर को शुरू से अंत तक 24 घंटे से भी कम समय लगा था।
आडवाणी के प्रस्ताव के खिलाफ है यह विधेयक
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने शुक्रवार को ट्विट कर आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार चुनावी वर्ष में चुनाव आयोग पर नियंत्रण सुनिश्चित करना चाहती है। उन्होंने वरिष्ठ भाजपा नेता और नेता प्रतिपक्ष रहे एलके आडवाणी का एक पत्र साझा किया, जिसमें उन्होंने तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से मांग की थी कि संवैधानिक निकायों में नियुक्तियां द्विदलीय तरीके से की जानी चाहिए। ताकि किसी भी तरह के पक्षपात की धारणा को दूर किया जा सके।
जयराम रमेश ने कहा है कि यह पत्र आडवाणी जी ने 2 जून 2012 को लिखा था। यह पत्र अभी भी बीजेपी की वेबसाइट पर मौजूद है। जयराम रमेश ने लिखा है कि आडवाणी ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों का चयन करने के लिए, जिस समिति का प्रस्ताव रखा था उसमें सीजेआई के साथ-साथ संसद के दोनों सदनों के विपक्ष के नेता शामिल थे। वहीं मोदी सरकार द्वारा लाया गया यह विधेयक न केवल आडवाणी के प्रस्ताव के खिलाफ है, बल्कि यह 2 मार्च, 2023 को पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ के फैसले के विपरीत भी है।
उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि एक संवैधानिक निकाय के रूप में चुनाव आयोग के कामकाज में स्वतंत्रता के लिए, मुख्य चुनाव आयुक्तों के साथ-साथ अन्य चुनाव आयुक्तों को भी कार्यकारी हस्तक्षेप से स्वतंत्र होना होगा। जयराम रमेश ने कहा है कि यह सीईसी विधेयक समिति के 2:1 प्रभुत्व से कार्यकारी हस्तक्षेप को सुनिश्चित करेगा।