कोरोना: डॉक्टर्स के सामने ख़ुद की भी जान बचाने की चुनौती

01:18 pm Apr 28, 2020 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

कोरोना संक्रमितों का इलाज कर रहे डॉक्टर्स के लिए अपनी जान बचाना भी एक बड़ी चुनौती है। बीते कुछ दिनों में केवल राजधानी दिल्ली में ही कई अस्पतालों के डॉक्टर कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। इनमें दिल्ली के कैंसर इंस्टीट्यूट, आंबेडकर अस्पताल में बड़ी संख्या में डॉक्टर, नर्स इस वायरस की चपेट में आ गये। 

सोशल मीडिया पर ऐसी कई तसवीरें मौजूद हैं जिनमें डॉक्टर्स दिन-रात काम करके अस्पतालों में ही सोने के लिए मजबूर हैं। क्योंकि उन्हें डर है कि इससे उनके परिजन और उनके संपर्क में आने वाले दूसरे लोग भी संक्रमित हो सकते हैं। कई घंटों तक मास्क पहनने के कारण कई डॉक्टर्स के चेहरे पर घाव हो चुके हैं। 

आप सोचिए कि पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (पीपीई) किट पहनकर 10-12 घंटे ड्यूटी करना कितना मुश्किल होता होगा। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में डॉक्टर ने बताया था कि किट के अंदर भयंकर पसीना आ जाता है। किट को पहने रहने के दौरान आप कुछ खा-पी तक नहीं सकते। पिछले दो-तीन महीने से कई अस्पतालों में डॉक्टर्स को छुट्टी नहीं मिली है और आगे न जाने कितने दिन इन बेहद कठिन हालातों में उन्हें काम करना होगा। 

ऐसे ही एक कोरोना वॉरियर डॉक्टर पुष्कर दहीवाल कोरोना संदिग्धों का स्वैब लेते हैं। पुष्कर ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया कि यह बेहद ख़तरे वाला काम है। पुष्कर महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक सरकारी अस्पताल में एक दिन में 80 से लेकर 100 सैंपल लेते हैं। उन्होंने पीटीआई को बताया कि तीन दिन काम करने के बाद उन्हें ख़ुद को 14 दिन के लिए क्वरेंटीन करना होता है। 

पुष्कर कहते हैं कि संदिग्ध व्यक्ति के खांसने या छींकने से पहले ही हमें सैंपल ले लेना होता है और इसके तुरंत बाद इसे सील करके स्टोर करना होता है। वह कहते हैं कि इस काम में ग़लती के लिए कोई जगह नहीं है।

कोरोना संकट के इस दौर में डॉक्टर्स पर हमले की ख़बरें भी सामने आईं। लेकिन केंद्र सरकार ने अध्यादेश लाकर साफ़ कर दिया कि डॉक्टर्स पर हमला बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अध्यादेश के मुताबिक़, डॉक्टर्स पर हमला करने वालों को अधिकतम 7 साल की सजा और साथ में जुर्माना भी देना होगा। 

इस बीच देश भर से डॉक्टर्स ने इस बात की शिकायत की है कि वे लोग पीपीई किट, सर्जिकल ग्लव्स और एन95 मास्क की कमी से परेशान हैं। कई जगहों पर सैनिटाइजर भी डॉक्टर्स को नहीं मिल रहे हैं। लेकिन इस सबके बाद भी वे एक बहुत लंबी जंग में जुटे हुए हैं। 

डॉक्टर्स के अलावा चिकित्सा क्षेत्र के ही एमबीबीएस और बाक़ी विषयों की पढ़ाई कर रहे ट्रेनी डॉक्टर्स, जूनियर डॉक्टर्स नर्स, फ़ॉर्मासिस्ट, एंबुलेंस के ड्राइवर, सफ़ाईकर्मी भी इस लड़ाई में अपनी पूरी ताक़त झोंक चुके हैं। भारत ही नहीं दुनिया भर में डॉक्टर दिन-रात काम कर रहे हैं और जब तक कोरोना संक्रमण के मामले आते रहेंगे, तब तक उन्हें शायद एक दिन का भी आराम नहीं मिल पाएगा।