नोटबंदी के बाद दो साल में 50 लाख लोग बेरोज़गार हो गए। अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर ससटेनेबल इम्पलॉयमेंट की ओर से जारी ‘स्टेट ऑफ़ वर्किंग इंडिया 2019’ रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि देश में बेरोजगारी की दर 2018 में बढ़कर सबसे ज़्यादा 6 प्रतिशत हो गई है और यह 2000 से लेकर 2010 के दशक के दौरान बेरोज़गारी की दर से दोगुनी है।
रिपोर्ट के मुताबिक़, बेरोज़गारी की दर पिछले दशक में लगातार बढ़ती रही है और 2016 में यह बेहद ख़तरनाक स्तर तक पहुँच गई थी। रिपोर्ट का एक और निष्कर्ष बेहद चिंतित करने वाला है। इसके मुताबिक़, 20 से 24 साल के आयु वर्ग में बेरोज़गारी सबसे ज़्यादा है। रिपोर्ट यह भी कहती है कि नौकरियाँ जाने से पुरुषों से कहीं ज़्यादा नुक़सान महिलाओं को हुआ है। यह रिपोर्ट 1,60,000 परिवारों से बातचीत के आधार पर तैयार की गई है।
लोकसभा चुनाव के मौक़े पर आई इस रिपोर्ट से विपक्षी दल बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार पर हमलावर हो सकते हैं। क्योंकि विपक्ष लगातार यह आरोप लगाता रहा है कि नोटबंदी दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला था।
बता दें कि 8 नवंबर 2016 की आधी रात को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का एलान किया था। इसके मुताबिक़, उसी रात से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट चलन से बाहर कर दिए गए थे।
कुछ दिन पहले ही ख़बर आई थी कि ऑटो इंडस्ट्री की हालत पतली है और 13 सालों में पहली बार स्कूटर्स की बिक्री घट गई है। इसके लिए घटती नौकरियों और ग्रामीण इलाक़ों तथा छोटे शहरों में बढ़ती आर्थिक दिक़्क़तों को ज़िम्मेदार बताया गया था।
नोटबंदी के बाद जनता को काफ़ी परेशानी हुई थी और लोग कई दिनों तक लंबी-लंबी लाइनों में लगने को मज़बूर रहे थे। तब प्रधानमंत्री ने कहा था कि देश से काले धन को हमेशा के लिए समाप्त करने और भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए ही उन्होंने नोटबंदी की कड़वी दवा लोगों को पिलाई थी।
लगातार उठ रहे सवालों के बीच तब प्रधानमंत्री ने देश की जनता से 50 दिन देने को कहा था लेकिन दो साल बाद जब यह आँकड़े सामने आए हैं कि 50 लाख नौकरियाँ ख़त्म हो गईं हैं तो सवाल यह है कि इस पर प्रधानमंत्री कुछ बोलेंगे या नहीं
बेरोज़गारी दर 45 साल में सबसे ज़्यादा
रोज़गार को लेकर मोदी सरकार लगातार सवालों के घेरे में है। कुछ समय पहले एक अंग्रेजी अख़बार बिज़नेस स्टैंडर्ड ने बेरोज़गारी को लेकर एक रिपोर्ट छापी थी। रिपोर्ट में कहा गया था कि देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ज़्यादा हो गई है। इसके पीछे एनएसएसओ (नेशनल सेंपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन) की अप्रकाशित रिपोर्ट का हवाला दिया गया था।
एनएसएसओ की अप्रकाशित रिपोर्ट के सामने आने के बाद ख़ासा हंगामा हुआ था। चुनाव के मौक़े पर किरकिरी होते देख नीति आयोग ने सरकार की ओर से सफ़ाई देते हुए कहा था कि यह फ़ाइनल नहीं बल्कि ड्राफ़्ट रिपोर्ट है।
लेकिन केंद्रीय सांख्यिकी आयोग ने केंद्र सरकार के दावों की हवा निकाल दी थी। आयोग के पूर्व प्रमुख पीसी मोहनन ने कहा था कि एक बार जब आयोग किसी रिपोर्ट को मंजूरी दे देता है तो यह फ़ाइनल होती है। मोहनन ने इस साल 28 जनवरी को अचानक अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। उन्होंने कहा था कि सरकार रोज़गार को लेकर एनएसएसओ की रिपोर्ट को जारी नहीं कर रही थी।
2014 में अपनी चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर साल दो करोड़ नये रोज़गार देने का वादा किया था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उलटा। उनके शासन के पिछले पाँच सालों में नये रोज़गार तो पैदा हुए नहीं, बेरोज़गारी दर ज़रूर 45 सालों में सबसे ज़्यादा हो गई।
अक्टूबर 2018 में ‘ऑल इंडिया मैन्युफ़ैक्चरर्स ऑर्गनाइज़ेशन' (आइमो) ने एक सर्वेक्षण किया था। 'आइमो' के मुताबिक़, उसने सर्वेक्षण के दौरान पूरे देश में दुकानदारों, अति लघु, लघु और मँझोले उद्योगों के 34 हज़ार प्रतिनिधियों से बातचीत की थी। इसमें कई कारोबारी संगठनों और व्यावसायी शामिल थे।
नोटबंदी, जीएसटी ने तोड़ी कमर
'आइमो' के सर्वेक्षण में दावा किया गया था कि नोटबंदी, जीएसटी और ई-कॉमर्स ने दुकानदारों, व्यापारियों और ग़रीब तबक़े की कमर तोड़ दी है। सर्वेक्षण के मुताबिक़, दुकानों व व्यापारिक गतिविधियों से जुड़ी कम्पनियों में काम करने वाले या अपना ख़ुद का छोटा-मोटा काम करने वाले क़रीब 43 प्रतिशत लोग नोटबंदी, जीएसटी और ई-कॉमर्स के कारण बेरोज़गार हो गए हैं।
आइमो के सर्वेक्षण में कहा गया था कि अति लघु, लघु और मँझोले उद्योगों पर भी नोटबंदी और जीएसटी की दोहरी मार पड़ी है और इन क्षेत्रों में बेरोज़गारी का भारी संकट खड़ा हो गया है। सर्वेक्षण का दावा है कि अति लघु उद्योगों में 32 प्रतिशत, लघु उद्योगों में 35 प्रतिशत और मँझोले उद्योगों में 24 प्रतिशत लोग बेरोज़गार हो गए।
दो साल में 50 लाख नौकरियों के जाने की बात बहुत झकझोरने वाली है। यह सवाल पूछती है कि आख़िर प्रधानमंत्री के हर साल 2 करोड़ नौकरियाँ देने के वादे का क्या हुआ
लोकसभा चुनाव के मौक़े पर देश की जनता को और विपक्षी दलों को सरकार से यह सवाल ज़ोरदार ढंग से पूछना चाहिए कि आख़िर रोज़गार कैसे ख़त्म होते जा रहे हैं। क्योंकि एनएसएसओ की अप्रकाशित रिपोर्ट के अलावा कई और रिपोर्ट्स सामने आई हैं जिनमें बताया गया है कि बेरोज़गारी को लेकर सामने आए आँकड़े बेहद भयावह हैं। राजनीतिक दलों को जनता को यह बताना चाहिए कि आख़िर वे रोज़गार कैसे देंगे।
क्योंकि यह साफ़ दिख रहा है कि 5 साल से सरकार चला रही बीजेपी लोकसभा का चुनाव राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा, देशप्रेम, देशभक्ति, पाकिस्तान विरोध तथा आतंकवाद के मुद्दों पर लड़ रही है। बीजेपी मोदी सरकार के 5 साल के कार्यकाल में उठे बेरोज़गारी, किसानों की ख़राब हालत, अर्थव्यवस्था की दुखद स्थिति जैसे अहम मुद्दों से जनता का ध्यान हटाने की कोशिश कर रही है।