ग़रीबी, बेरोज़गारी, ध्वस्त अर्थव्यवस्था, कोरोना से निपटने में बदइंतजामी के बीच इन दिनों लव जिहाद के मुद्दे को केंद्र में ‘लाया गया है’। लाया गया है इसलिए कहना होगा क्योंकि कुछ नामचीन टीवी चैनलों ने पिछले कुछ दिनों में इस मुद्दे पर घंटों के प्रोग्राम चलाए हैं और बहस भी की है।
लेकिन क्या वास्तव में लव जिहाद का मुद्दा बेहद गंभीर है या यह सिर्फ हिंदुत्ववादी संगठनों की राजनीतिक सौदेबाज़ी है, इस पर बात की जानी बेहद ज़रूरी है। सवाल यह है कि आख़िर बीजेपी की राज्य सरकारों ने लव जिहदा को इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना दिया है।
केंद्र सरकार का इनकार
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी.किशन रेड्डी ने इस साल फरवरी में संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लेख करते हुए संसद में कहा था कि यह अनुच्छेद हमें किसी भी धर्म का प्रचार करने और उसे मानने की आज़ादी देता है। उन्होंने कहा कि लव जिहाद नाम का शब्द मौजूदा नियमों के तहत परिभाषित नहीं है और न ही केंद्रीय एजेंसियों के सामने लव जिहाद का कोई मामला आया है। देश में कई अदालतें जिनमें केरल हाई कोर्ट भी शामिल है उन्होंने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।
साल 2009 में केरल हाई कोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा था कि हमारे समाज में ‘अंतर-धार्मिक’ विवाह होना सामान्य बात है और इसे आपराधिक कृत्य नहीं कहा जा सकता।
हालिया दिनों में बीजेपी शासित उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, कर्नाटक की सरकारों ने कहा है कि वे लव जिहाद पर क़ानून बनाएंगी। उत्तर प्रदेश सरकार इतनी जल्दी में है कि वह इस पर अध्यादेश ला रही है। बात करते हैं कि आख़िर ये लव जिहाद शब्द आया कहां से, इसे क्यों लाया गया और इसका बैकग्राउंड क्या है।
हिंदू जनजागृति समिति
लव जिहाद का विचार तटीय कर्नाटक की एक हिंदुत्ववादी संस्था हिंदू जनजागृति समिति (एचजेएस) की उपज है। एचजेएस ने 2007 में कर्नाटक में पार्क, पब और कॉलेजों में युवक-युवतियों पर हमले किए थे और इसके पीछे कारण बताया था कि भारतीय संस्कृति का पश्चिमीकरण किया जा रहा है।
लेकिन कुछ वक्त बाद इस संस्था ने रणनीति बदलते हुए कहा कि मुसलिम शख़्स हिंदू महिलाओं को प्यार के जाल में फंसाते हैं, उनसे शादी करके उनका धर्म परिवर्तन करा देते हैं और यही लव जिहाद है।
एचजेएस ने दावा किया कि ऐसा हिंदुस्तान को इसलामिक राष्ट्र में बदलने के लिए किया जा रहा है और भारत में हिंदुओं को अल्पसंख्यक बनाने की साज़िश रची जा रही है।
2009 में इस संस्था ने दावा किया कि इसलामिक वेबसाइट्स मुसलमान युवाओं को लव जिहाद की ट्रेनिंग दे रही हैं। केरल की पुलिस ने इसकी जांच की तो उसे यह दावा फिजूल लगा।
उत्तर भारत लाया गया लव जिहाद
हिंदू संगठनों ने लव जिहाद शब्द का सबसे पहले राजनीतिक इस्तेमाल तटीय कर्नाटक में किया था। उसके बाद इसे उत्तर भारत में 2013 में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुज़फ्फरपुर में हुए दंगों में लांच किया गया। इस दंगे में 62 लोग मारे गए थे और 50 हज़ार लोग विस्थापित हुए थे।
मुज़फ्फरनगर के दंगे में हिंदू और मुसलिम समुदाय के कुछ लोगों के बीच छोटा सा झगड़ा हुआ था और इसमें एक मुसलिम युवक की मौत हो गई थी। लेकिन कुछ ही घंटों में कवाल गांव में मुसलमानों की भीड़ ने जाट समुदाय के दो लोगों को मौत के घाट उतार दिया था।
फैलाई गई अफ़वाह
इस दौरान हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने तालिबान आतंकवादियों का एक शख़्स को लिंच करने वाला वीडियो वायरल कर दिया और दावा किया कि यह कवाल गांव का है। इस वीडियो के साथ ही यह अफ़वाह भी फैला दी गई कि जाट समुदाय के दो लोगों को इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने उनकी बहन का पीछा कर रहे मुसलमानों को ऐसा करने से रोका था। इसे लव जिहाद का नाम दिया गया।
लव जिहाद के अभियान के बाद मुज़फ्फरनगर में दंगे हुए और लोगों का पलायन शुरू हो गया। हिंदू बहुल इलाक़ों में रहने वाले मुसलमानों ने अपने घर-संपत्तियों को बेचना शुरू कर दिया जबकि मुसलिम बहुत इलाक़ों में रहने वाले हिंदू भी अपना घर छोड़कर चले गए।
जबरदस्त ध्रुवीकरण
इसके बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव, जिसमें बीजेपी को इतनी जबरदस्त सफलता मिली, जिसकी उसे कभी भी उम्मीद नहीं थी। हिंदू मतों के ध्रुवीकरण के कारण राष्ट्रीय लोक दल का सफाया हो गया क्योंकि चौधरी चरण सिंह के नाम पर वोट देने वाले जाट समुदाय के लोगों ने इस बार ‘हिंदू’ बनकर वोट दिया था।
देखिए, इस विषय पर चर्चा-
बीजेपी ने फिर आज़माया
2014 में मोदी सरकार बनने के बाद उत्तर प्रदेश में हुए उपचुनाव में योगी आदित्यनाथ ने इस मुद्दे को फिर से जिंदा किया। सितंबर में 11 सीटों के लिए विधानसभा के उपचुनाव हुए थे और योगी आदित्यनाथ इस स्टार प्रचारक थे।
फ़ेल हो गया था मुद्दा
प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ चुनावी रैलियों में कहते थे, ‘अब जोधाबाई अकबर के साथ नहीं जाएगी और सिकंदर अपनी बेटी चंद्रगुप्त मौर्य को देने के लिए मजबूर होगा।’ उन्होंने इस तरह के बयानों से हिंदू मतों का ध्रुवीकरण करने की पूरी कोशिश की थी लेकिन यह मुद्दा फ़ेल हो गया था और 11 सीटों में से 8 सीटें समाजवादी पार्टी को और बीजेपी को सिर्फ 3 सीटें मिली थीं। यह तब हुआ था जब इससे चार महीने पहले ही नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को देश और उत्तर प्रदेश में बंपर जीत मिली थी।
निकिता तोमर की हत्या
बीजेपी को पता था कि यह मुद्दा फ़ेल हो चुका है, इसलिए इसके बाद इस मुद्दे पर ज़्यादा चर्चा नहीं हुई और बीजेपी ने ख़ुद को इससे अलग कर लिया। लेकिन अक्टूबर के आख़िर में हरियाणा के फ़रीदाबाद में निकिता तोमर नाम की लड़की को कॉलेज से निकलते वक्त गोली मारने का वाक़या हो गया।
गोली मारने वाला लड़का निकिता के साथ पढ़ा था और चूंकि वह मुसलमान था, इसलिए इस मामले को 'लव जिहाद' का नाम दे दिया गया। गोली मारने वाले लड़के का नाम तौसीफ़ और उसके साथ आए शख़्स का नाम रेहान था।
निकिता की हत्या के बाद योगी आदित्यनाथ ने एक सभा में 'लव जिहाद' का ज़िक्र करते हुए कहा कि जो कोई भी हमारी बहनों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा उसकी 'राम नाम सत्य है' की यात्रा अब निकलने वाली है और क़ानून लाने की बात कही।
चुनावी फ़ायदा लेना मक़सद!
इसके बाद हरियाणा, मध्य प्रदेश, कर्नाटक की बीजेपी सरकारों ने भी योगी के बयानों को दुहराया। असम सरकार ने कहा कि वह लव जिहाद के कथित मामलों के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर अभियान शुरू करने जा रही है। ये बयान ऐसे वक़्त पर इन राज्यों में दिए गए जब यहां पर उपचुनाव हो रहे थे।
इस बीच, सोशल मीडिया पर फिर से हिंदुत्ववादी संगठनों का ये कुप्रचार लगातार जारी है कि मुसलमान हिंदू महिलाओं को फंसाते हैं, उनका धर्म परिवर्तन कराते हैं और एक से ज़्यादा शादियां करते हैं।
हिंदुत्ववादी संगठनों ने मुसलमान पुरूषों ही नहीं मुसलिम महिलाओं के ख़िलाफ़ भी ये प्रचार शुरू कर दिया है कि ये नाम बदलकर हिंदू युवकों को फंसाती हैं।
आने वाले 7 महीनों में देश के चार बड़े राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। असम, केरल और पश्चिम बंगाल में अच्छी-खासी मुसलिम आबादी है।
2013 में मुज़फ्फरनगर के दंगों के बाद 2014 के लोकसभा चुनावों में जिस तरह का ध्रुवीकरण हुआ, वैसा ही ध्रुवीकरण कराने की क्षमता सीएए-एनआरसी, लव जिहाद, राम मंदिर के मुद्दों में है और इस ध्रुवीकरण का फायदा अंतत: बीजेपी को ही होना है। अगर बीजेपी इन चुनावी राज्यों में बेहतर प्रदर्शन कर लेती है तो इसके 8 महीने बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले चुनाव के लिए अच्छी सियासी ज़मीन तैयार हो जाएगी।
2022 का उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद उसे 2024 के लोकसभा चुनाव को जीतने में काफी मदद मिलेगी। शायद इसी रणनीति के कारण देश भर में जहां-जहां बीजेपी शासित सरकारें हैं, उन्होंने ये शोर खड़ा कर दिया है कि लव जिहाद को लेकर क़ानून बनाना उनकी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है।
नफ़रत की दीवार शब्दों के चयन में भी खड़ी की जा रही है। मसलन, अगर आप कोई उर्दू शब्द का इस्तेमाल करेंगे तो आपको उसके लिए हिंदू शब्द का इस्तेमाल करने को कहा जाएगा। उर्दू, मुसलमान, इसलाम के ख़िलाफ़ चल रहा ये अनवरत एजेंडा देश को और दिलों को कई टुकड़ों में बांट रहा है।
2024 तक हिंदू राष्ट्र बनाना मक़सद!
लेकिन इतना तय है कि लव जिहाद का यह शोर विभाजनकारी और बेहद ख़तरनाक है। सोशल मीडिया पर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच इतनी गहरी खाई बनाने की कोशिश की जा रही है कि ये समुदाय आपस में दुआ-सलाम और राम-राम भी हमेशा के लिए छोड़ दें। निश्चित रूप से इतनी कसरत किसी न किसी बड़े उद्देश्य के लिए ही की जा रही है और उस उद्देश्य का जिक्र हिंदुत्ववादी संगठनों के कार्यकर्ता हर दिन, दिन में कई बार करते हैं और वो है- 2024 तक भारत को हिंदू राष्ट्र बना देना।