लॉकडाउन के कारण घर में बंद होकर बोर हो चुके लोगों से इस क़दर लापरवाही की उम्मीद किसी ने नहीं की होगी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर में ख़ौफ़ पैदा करने वाला मंजर गए अभी कुछ दिन ही बीते हैं लेकिन शायद लोग इसे भूल चुके हैं। अगर नहीं भूले होते तो शिमला, मनाली, नैनीताल और मंसूरी में इतनी बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा नहीं हो गए होते।
शिमला, मनाली, नैनीताल और मंसूरी में हालात ऐसे हैं कि पांव धरने की जगह नहीं है। तमाम होटल फ़ुल हो चुके हैं और वहां के प्रशासन को लोगों को वापस लौटाना पड़ रहा है।
माना कि दिल्ली व अन्य महानगरों में गर्मी चरम पर है, बारिश का बेसब्री से इंतजार है लेकिन गर्मी से बचने या सिर्फ़ एन्जॉय करने के लिए क्या हम देश में कोरोना की तीसरी लहर को दावत दे देंगे?
दोनों ही राज्यों में हाईवे पर बड़ी संख्या में गाड़ियों की कतार लग रही है और लोग होटलों, गेस्ट हाउस, होम स्टे में कैसे भी जगह मिल जाए, इसके लिए पूरी ताक़त लगा रहे हैं।
सरकारें हैं जिम्मेदार
हिमाचल और उत्तराखंड में उमड़ रही भीड़ के लिए वहां की सरकार जिम्मेदार है। हिमाचल की सरकार ने बिना आरटी-पीसीआर टेस्ट के राज्य में किसी को भी आने की छूट दे दी है तो उत्तराखंड में हालांकि आरटी-पीसीआर टेस्ट ज़रूरी है लेकिन इसका उतनी कड़ाई से पालन नहीं हो रहा है। अगर हो रहा तो इतनी बड़ी संख्या में लोग नहीं पहुंच जाते।
पर्यटकों से होती है कमाई
यह बात सही है कि दोनों ही प्रदेशों की आर्थिक व्यवस्था बहुत हद तक पर्यटन पर निर्भर है वरना उत्तराखंड सरकार क्यों चार धाम की यात्रा कराने पर अड़ी रहती। इन राज्यों में होटल्स, रिसोर्ट, ढाबों, नौका व्यवसाय में काम करने वालों लाखों लोगों के रोज़गार का जरिया ये बाहर से आने वाले सैलानी ही हैं। लेकिन इसके चलते आप हज़ारों लोगों को राज्य में आने की छूट नहीं दे सकते।
दोनों ही राज्यों में बस नाम मात्र का लॉकडाउन या कोरोना कर्फ्यू है। लेकिन जब हजारों लोग वहां के पर्यटक स्थलों में पहुंच गए हैं तो ऐसे लॉकडाउन या कोरोना कर्फ्यू का क्या मतलब है।
कोरोना की जंग में फ्रंटलाइन वॉरियर्स चाहे डॉक्टर्स हों या दूसरी आपात सेवाओं में लगे लोग, उन्होंने लोगों को बचाने के लिए अपनी जान को ख़तरे में डाला है। कम से कम उन्हीं लोगों की एक साल की मेहनत को ध्यान में रखकर इन राज्यों की सरकारें एक निश्चित सीमा के बाद राज्य में आने पर रोक लगा दें।
लेकिन सरकारों की नज़र कमाई पर है, क्योंकि गाड़ियों के टैक्स से लेकर और बाक़ी मदों से भी राज्य सरकार को पर्यटकों से आय होती है। लेकिन बात फिर से वही कही जाएगी कि सिर्फ़ पैसे के लिए लोगों की जिंदगियों को दांव पर नहीं लगाया जा सकता।
ख़तरा अभी टला नहीं
ऐसा नहीं है कि भारत में कोरोना के मामले बहुत कम हो गए हैं। इन दिनों भी 40 से 45 हज़ार मामले हर दिन आ रहे हैं लेकिन शायद लोग देश में 4 लाख मौतों के आंकड़े को भूलकर मौज-मस्ती को अहमियत दे रहे हैं और उनकी यह मौज-मस्ती देश को बहुत भारी पड़ सकती है।
कोरोना संक्रमण की पहली और दूसरी लहर से बुरी तरह प्रभावित रही दिल्ली में बाज़ारों में उमड़ रही भीड़ को देखते हुए लक्ष्मी नगर इलाक़े के बाज़ारों और लाजपत नगर की सेंट्रल मार्केट को भी बंद करना पड़ा है।