देश में कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाओं के बीच 12-17 साल तक के बच्चों को अक्टूबर से टीके लगाए जाएँगे। यह बात अधिकारी कह रहे हैं और यह भी कि अभी बाद में तय किया जाएगा कि प्राथमिकता के आधार पहले किसे टीका लगाया जाएगा। सरकारी अधिकारी की तरफ़ से यह बयान तब आया है जब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट यानी एनआईडीएम की गठित एक कमेटी ने चेताया है कि तीसरी लहर बस शुरू ही होने वाली है और यह अक्टूबर में अपने शिखर पर होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह बच्चों के लिए भी उतनी ही ख़तरनाक होगी जितनी वयस्कों के लिए। इस हिसाब से भारत में जब तीसरी लहर अपने शिखर पर होगी तो बच्चों को टीका लगाना शुरू किया जाएगा।
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह (एनटीएजीआई) के प्रमुख डॉ. अरोड़ा ने कहा है कि कोरोना बच्चों को गंभीर रूप से नुक़सान नहीं पहुँचाएगा। इसके लिए उन्होंने सीरो सर्वे का तर्क दिया है। इनका यह बयान अभी कुछ दिन पहले एनआईडीएम की गठित एक कमेटी की चिंताओं से अलग है। उस कमेटी ने इस बात पर चिंता जताई है कि देश में बड़े स्तर पर कोरोना संक्रमण होने पर बाल स्वास्थ्य सुविधाएँ काफ़ी कमजोर साबित होंगी।
सरकार के कोविड पैनल के प्रमुख एनके अरोड़ा ने कहा है कि अक्टूबर में जायडस कैडिला वैक्सीन शुरू होने से पहले 12 से 17 साल के बच्चों के टीकाकरण के विवरण की घोषणा की जाएगी। उन्होंने कहा कि उस टीकाकरण में स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं को प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि स्कूलों को फिर से खोला जाना चाहिए। उन्होंने नवीनतम सीरो सर्वेक्षण का हवाला देते हुए यह बताने की कोशिश की कि बच्चों को गंभीर कोविड संक्रमण होने की संभावना कम है।
डॉ. अरोड़ा ने कहा कि यह अनुमान है कि भारत में 12-18 वर्ष के आयु वर्ग के लगभग 12 करोड़ बच्चे हैं और उनमें से 1 प्रतिशत से भी कम को स्वास्थ्य समस्याएँ हो सकती हैं।
डॉ. अरोड़ा ने कहा, '12-17 आयु वर्ग में 12 करोड़ बच्चे हैं। उन्हें गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं या वायरस के कारण मृत्यु होने की संभावना नहीं है। इसके विपरीत, उनके माता-पिता, जिनकी आयु 18-45 वर्ष के बीच हो सकती है, में स्वास्थ्य जटिलताएँ 10-15 गुना ज़्यादा होने की संभावना है। इसलिए, हमारी प्राथमिकता बच्चों को टीकाकरण शुरू करने से पहले इस समूह का टीकाकरण करना है।'
कोविड पैनल के प्रमुख एनके अरोड़ा ने कहा कि देश में 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 44 करोड़ बच्चे हैं और उन्होंने सुझाव दिया कि बच्चों के 'बौद्धिक विकास' के लिए स्कूलों को फिर से खोलना ज़रूरी है।
उन्होंने कहा, 'बच्चे स्कूल जा सकते हैं। टीकाकरण की कोई आवश्यकता नहीं है... लेकिन यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि उनके माता-पिता और स्कूल के कर्मचारियों को टीका लगवाकर उनके चारों ओर एक ढाल विकसित किया जाए।'
डॉ. अरोड़ा का यह बयान तब आया है जब नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट यानी एनआईडीएम की गठित एक कमेटी ने तीसरी लहर को लेकर चेतावनी दी है। गृह मंत्रालय के निर्देश पर गठित समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि 'डॉक्टर, कर्मचारी, वेंटिलेटर, एम्बुलेंस, उपकरण आदि की बाल चिकित्सा सुविधाएँ कहीं भी बच्चों की बड़ी संख्या की ज़रूरत के अनुसार आसपास भी नहीं हैं।'
सरकार द्वारा गठित कमेटी ने ही जो रिपोर्ट तैयार की है उसमें बाल चिकित्सा की अपर्याप्त सुविधा को लेकर चिंता जताई गई है। बड़ी संख्या में बच्चों के कोरोना संक्रमण की स्थिति में कमेटी की रिपोर्ट में तीन बड़ी बातें कही गई हैं-
- कहीं भी बड़ी संख्या में बच्चों के संक्रमित होने की स्थिति में बाल चिकित्सा सुविधाएँ - डॉक्टर, एंबुलेंस और वेंटिलेटर जैसे उपकरण ज़रूरत के आसपास भी नहीं हैं।
- कोमोर्बिडीटीज वाले बच्चों के बीच टीकाकरण को प्राथमिकता देने और विकलांगों पर विशेष ध्यान देने का आह्वान किया गया है।
- कोविड वार्डों की संरचना को इस तरह से बनाया जाए जो बच्चों के अटेंडेंट या माता-पिता को सुरक्षित रूप से उनके साथ रहने की अनुमति दे।
विशेषज्ञों ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में बाल रोग विशेषज्ञों की 82% कमी और सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में 63% खाली पदों के बारे में भी चिंता व्यक्त की है। रिपोर्ट में कहा गया है, “स्थिति पहले से ही विकट है, और यह कोरोना उपयुक्त व्यवहार की पालन में कमी, अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं और टीकाकरण की कमी के कारण ख़राब हो सकती है।'
बहरहाल, इन विरोधाभासी बयानों से अलग अच्छी ख़बर यह है कि भारत में जायडस कैडिला की वैक्सीन 12 साल से ऊपर के बच्चों के लिए क़रीब हफ़्ते भर पहले मंजूर हो गई है। हालाँकि बच्चों को लगाए जाने में अभी वक़्त लगेगा। जबकि अमेरिका में स्थितियाँ अलग हैं। वहाँ तो मई महीने से ही 12 साल से ऊपर के बच्चों को टीके लगाए जा रहे हैं। अमेरिका में मंजूरी मिलने के तुरंत बाद ही बच्चों को टीके लगाए जाने लगे थे।