कोरोना संक्रमण के मामले पिछले साल आने के बाद से ही कहा जाता रहा कि हर्ड इम्युनिटी आने के बाद संक्रमण अपने आप कम हो जाएगा और एक समय न के बराबर केस आएँगे, लेकिन अब लगता है कि ऐसा नहीं होगा। अब विशेषज्ञ कह रहे हैं कि बेहद तेज़ी से फैलने वाले कोरोना के डेल्टा वैरिएंट ने हर्ड इम्युनिटी की संभावना को धुमिल कर दिया है। इसका मतलब है कि जब हर्ड इम्युनिटी आने की उम्मीद कम होगी तो संक्रमण के मामले ख़त्म होने की संभावना भी कम ही होगी।
हर्ड इम्युनिटी यानी झुंड प्रतिरक्षा का सीधा मतलब यह है कि कोरोना संक्रमण से लड़ने की क्षमता इतने लोगों में हो जाना कि फिर वायरस को फैलने का मौक़ा ही नहीं मिले। यह हर्ड इम्युनिटी या तो कोरोना से ठीक हुए लोगों या फिर वैक्सीन के बाद शरीर में बनी एंटीबॉडी से आती है। शुरुआत में कहा जा रहा था कि यदि किसी क्षेत्र में 70-80 फ़ीसदी लोगों में कोरोना से लड़ने वाली एंटीबॉडी बन जाएगी तो हर्ड इम्युनिटी की स्थिति आ जाएगी। लेकिन अब कोरोना से ठीक हुए लोगों और वैक्सीन की दोनों खुराक लिए हुए लोगों में भी संक्रमण के मामले आने के बाद इस पर सवाल उठने लगे हैं।
ऐसे संक्रमण के मामले तब और ज़्यादा आने लगे हैं जब से डेल्टा वैरिएंट आया है। डेल्टा वैरिएंट अब तक सबसे ज़्यादा तेज़ फैलने वाला और सबसे ज़्यादा घातक भी है। फ़ोर्ब्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन के वुहान में सबसे पहले मिले कोरोना संक्रमण से 50 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला अल्फा वैरिएंट था। यह वैरिएंट सबसे पहले इंग्लैंड में पाया गया था। इस अल्फा से भी 40-60 फ़ीसदी ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाला डेल्टा वैरिएंट है। यह सबसे पहले भारत में मिला था और अब तक दुनिया के अधिकतर देशों में फैल चुका है।
अमेरिका में तो फिर से हर रोज़ 1 लाख से ज़्यादा संक्रमण के मामले आने लगे हैं। वहाँ डेल्टा वैरिएंट के मामले अब काफ़ी ज़्यादा आ रहे हैं। यह उस देश की स्थिति है जहाँ दुनिया में सबसे ज़्यादा संक्रमण के मामले आए हैं और टीके के योग्य आबादी की आधी से ज़्यादा जनसंख्या को पूरी तरह टीके लगाए जा चुके हैं।
यूरोपीय देशों में भी अमेरिका जैसी ही स्थिति है। संक्रमण ख़ूब फैल चुका है और दोनों वैक्सीन भी पूरी आबादी के 50-60 फ़ीसदी लोगों को लगाई जा चुकी हैं। हाल ही में पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड यानी पीएचई ने एक रिपोर्ट में कहा था कि डेल्टा वैरिएंट के साथ अस्पताल में भर्ती कुल 3,692 लोगों में से 22.8% को पूरी तरह से टीका लगाया गया था। यूरोप के बाहर भी ऐसे ही हालात हैं। सिंगापुर के भी सरकारी अधिकारियों ने तब कहा था कि इसके कोरोना वायरस के तीन चौथाई मामले टीकाकरण वाले व्यक्तियों में हुए, हालाँकि कोई भी गंभीर रूप से बीमार नहीं था।
ऐसी ही रिपोर्टों के बीच अब यूके के ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के प्रमुख प्रोफेसर एंड्रयू पोलार्ड ने चेतावनी दी है कि डेल्टा वैरिएंट ने झुंड प्रतिरक्षा की संभावना कम कर दी है।
पोलार्ड ने मंगलवार को कोरोना पर ऑल-पार्टी पार्लियामेंट्री ग्रुप को बताया कि एक और भी ज़्यादा संक्रामक वैरिएंट की संभावना है और इसलिए, ऐसा कुछ भी नहीं है जो घातक वायरस को फैलने से पूरी तरह से रोक सके। पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, प्रोफेसर पोलार्ड ने ऑनलाइन सत्र के दौरान समझाया, 'इस वायरस के साथ समस्या यह है कि यह खसरा नहीं है। यदि 95% लोगों को खसरा का टीका लगाया जाता है तो वायरस आबादी में फैल नहीं सकता है।'
उन्होंने कहा, 'डेल्टा वैरिएंट अभी भी उन लोगों को संक्रमित करेगा जिन्हें टीका लगाया गया है। और इसका मतलब यह है कि जो कोई भी अभी भी बिना टीका लगाए हुए है, उसे वायरस संक्रमित करेगा। हमारे पास ऐसा कुछ भी नहीं है जो संक्रमण को रोक सके, इसलिए मुझे लगता है कि हम ऐसी स्थिति में हैं जहाँ हर्ड इम्युनिटी की संभावना नहीं है और मुझे संदेह है कि वायरस एक नया वैरिएंट तैयार करेगा जो टीकाकरण वाले व्यक्तियों को संक्रमित करने में और भी बेहतर होगा।'
बता दें कि भारत में भी टीके लगवाए लोगों को संक्रमण होने के मामले सामने आने लगे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल में 40 हज़ार से ज़्यादा ऐसे लोग संक्रमित पाए गए हैं जिन्हें पूरी तरह से टीके लग गए थे। अब ऐसे मामलों को केंद्र सरकार ने जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए भेजने को कहा है जिससे पता लगाया जा सके कि कहीं कोई नया वैरिएंट तो इसके पीछे नहीं है। यह बड़ी चिंता का विषय इसलिए भी है क्योंकि इन मामलों से सवाल उठता है कि क्या यह वायरस अब वैक्सीन से मिली सुरक्षा को मात देने में सक्षम है?
इसके अलावा दूसरी बार संक्रमण के मामले भी आए हैं। मतलब साफ़ है कि सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनने जैसे कोरोना प्रोटोकॉल के पालन में लापरवाही ख़तरनाक साबित हो सकती है! इस बीच विशेषज्ञ इस बात पर भी जोर दे रहे हैं कि वैक्सीन की दो खुराक लगवाए लोगों को बूस्टर खुराक यानी एक और खुराक लगाने की ज़रूरत पड़ सकती है।