कोरोना वैक्सीन का निर्यात अगले माह से फिर शुरू क्यों?

06:52 pm Sep 20, 2021 | सत्य ब्यूरो

भारत अगले महीने से विदेशों में वैक्सीन फिर से भेजना शुरू कर देगा। कोरोना की दूसरी लहर के दौरान वैक्सीन को लेकर तीखी आलोचनाओं के बीच मोदी सरकार ने वैक्सीन के निर्यात को रोक दिया था। उससे पहले सरकार 'वैक्सीन मैत्री' पहल के तहत पड़ोसी देशों सहित दुनिया भर के 70 से ज़्यादा देशों में वैक्सीन की सप्लाई कर रही थी। ये टीके दान के रूप में भी थे और व्यावसायिक निर्यात के रूप में भी।

अब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने सोमवार को कहा कि भारत अक्टूबर में अपनी वैक्सीन मैत्री पहल फिर से शुरू करेगा। उनकी यह घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अमेरिका दौरे से एक दिन पहले की गई है। प्रधानमंत्री मोदी वाशिंगटन में क्वाड देशों- संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के शिखर सम्मेलन में भाग लेने जा रहे हैं। माना जाता है कि टीकाकरण के मुद्दे को राष्ट्रपति जो बाइडेन और दूसरे नेताओं द्वारा उठाए जाने की संभावना है। 

मंडाविया ने कहा है कि वैक्सीन मैत्री में निर्यात अभियान के तहत पड़ोसी देशों को प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि अप्रैल के बाद से देश का मासिक वैक्सीन उत्पादन दोगुने से अधिक हो गया है और अगले महीने 30 से करोड़ खुराक का लक्ष्य तय है। उन्होंने कहा है कि केवल अतिरिक्त आपूर्ति से निर्यात किया जाएगा।

निर्यात का यह फ़ैसला तब लिया गया है जब सरकार ने तय किया है कि इस साल तक वैक्सीन लगाने योग्य आबादी यानी 18 साल से ऊपर के सभी लोगों को टीका लगवा देगी। लेकिन लगता है कि इस तय समय में उसका यह लक्ष्य पूरा नहीं होगा। 

इसके लिए सरकार ने पहले दावा किया था कि वह अगस्त से दिसंबर तक 216 करोड़ वैक्सीन उपलब्ध कराएगी लेकिन बाद में उसने कहा कि वह 135 करोड़ वैक्सीन ही उपलब्ध करा पाएगी। इसने वैक्सीन उपलब्ध कराने के आँकड़ों को संशोधित कर सुप्रीम कोर्ट में हलफ़नामा दिया था। 

सरकार का जो अब दिसंबर तक अपने सभी 94.4 करोड़ वयस्कों का टीकाकरण का लक्ष्य है उनमें से 61 प्रतिशत लोगों को ही कम से कम एक खुराक भी दी गई है। अब तक कुल मिलाकर क़रीब 80 करोड़ टीके लगाए जा चुके हैं।

टीकाकरण में जो कुछ भी तेज़ी आई है उसमें यह तथ्य भी शामिल है कि कोरोना की दूसरी लहर के बाद टीके का निर्यात रोक दिया गया था। सरकार की इसलिए आलोचना की गई थी कि भारत में कोरोना की दूसरी लहर आने की वायरस विशेषज्ञों की चेतावनी के बावजूद मोदी सरकार ने कुछ ऐसे देशों को वैक्सीन दी, जहाँ मृत्यु दर बेहद कम थी। यानी वहाँ वैक्सीन की बहुत ज़रूरत नहीं थी। 

क्या अपने लोगों की जान की चिंता छोड़कर नरेन्द्र मोदी अपनी वैश्विक ब्रांडिंग करने के लिए ऐसा कर रहे थे? जबकि उन्हें मालूम था कि भारत की विशाल जनसंख्या के लिए पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि जब कोरोना संकट गहराया और वैक्सीनेशन की माँग बढ़ी तो सरकार ने पिंड छुड़ाने के लिए राज्य सरकारों पर ज़िम्मेदारी डाल दी। राज्य सरकारों को ग्लोबल टेंडर डालने के लिए कहा गया। अपनी साख बचाने के लिए कुछ राज्य सरकारों ने विदेशी कंपनियों से वैक्सीन खरीदने की कोशिश की, लेकिन पहले कंपनियों ने तत्काल वैक्सीन उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके पास पहले से ही दूसरे देशों का ऑर्डर पूरा करने का दबाव था। केंद्र की इस वैक्सीन नीति की जब चौतरफ़ा आलोचना होने लगी तो उसने टीकाकरण की पूरी ज़िम्मेदारी राज्यों से अपने पास ले ली।

सरकार ने अप्रैल महीने की शुरुआत में ही माना था कि उसने 84 देशों को वैक्सीन उपलब्ध कराई।

बता दें कि वैक्सीन मैत्री पहल के कुछ लाभार्थियों में बांग्लादेश, म्यांमार, नेपाल, भूटान, मालदीव, मॉरीशस, श्रीलंका, ब्राजील, मोरक्को, दक्षिण अफ्रीका, अफगानिस्तान, मैक्सिको, डीआर कांगो, नाइजीरिया और यूके जैसे देश शामिल थे। भारत ने निर्यात रोकने से पहले लगभग 6.6 करोड़ खुराक या तो दान में दी या बेची थीं।