कोरोना संकट के बीच देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल पूरी तरह खुल गई है और इसी बीच अब मुख्य न्यायाधीश एन वी रमन्ना ने स्वास्थ्य के प्रति सरकार के रवैये के प्रति चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा क्षेत्र को सरकार द्वारा प्राथमिकता नहीं दिया जाना एक 'तत्काल चिंता' की बात है। वह 'विश्व चिकित्सा दिवस' पर गुरुवार को एक कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।
मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी तब आई है जब देश के अलग-अलग हिस्सों से डॉक्टरों पर हमले के कई मामले सामने आए हैं। उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि ड्यूटी के दौरान हमारे डॉक्टरों पर बेरहमी से हमला किया जा रहा है। उन्होंने पूछा कि ऐसा क्यों है कि चिकित्सा के पेशेवर किसी और की विफलता का खामियाजा भुगतें।
मुख्य न्यायाधीश ने जिस तरह की विफलता की ओर इशारा किया है वैसी विफलता हाल में कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान बड़े पैमाने पर दिखी थी। फर्ज करें कि कोई बीमार है और कॉल करने पर एंबुलेंस नहीं मिले, क्योंकि कोई भी एंबुलेंस खाली नहीं हो। फर्ज करें कि यदि किसी तरह अस्पताल भी पहुँच गए तो भर्ती नहीं लिया जाए क्योंकि अस्पताल बेड खाली नहीं हों। अस्पतालों के गेट पर मरीज़ों के मरने की ख़बरें आ रही हों। मान लें कि अस्पताल में किसी तरह भर्ती भी हो जाएँ तो दवाओं की कमी हो जाए, डॉक्टर व दूसरे मेडिकल स्टाफ़ कम पड़ जाएँ और यहाँ तक कि मेडिकल ऑक्सीजन न मिल पाए...।
ऐसे ही शिकायतें देश के अलग-अलग हिस्सों से कोरोना की दूसरी लहर के दौरान आ रही थीं।
भारत में जब दूसरी लहर अपने शिखर पर थी तो हर रोज़ 4 लाख से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले रिकॉर्ड किए जा रहे थे। देश में 6 मई को सबसे ज़्यादा 4 लाख 14 हज़ार केस आए थे। ऑक्सीजन समय पर नहीं मिलने से बड़ी संख्या में लोगों की मौतें की रिपोर्टें आईं। अस्पतालों में तो लाइनें लगी ही थीं, श्मशानों में भी ऐसे ही हालात थे। इस बीच गंगा नदी में तैरते सैकड़ों शव मिलने की ख़बरें आईं और रेत में दफनाए गए शवों की तसवीरें भी आईं।
वैसे, देश में स्वास्थ्य व्यवस्था के कमजोर होने को लेकर तो पहले से ही सचेत किया जा रहा था, लेकिन जब पिछले साल की शुरुआत में दुनिया के दूसरे देशों में कोरोना संकट गहराने लगा था तब इसपर ख़ूब जोर दिया गया।
लेकिन सरकार इतनी जल्दी व्यवस्था तो कर नहीं सकती थी। लेकिन जब कोरोना की पहली लहर ख़त्म हुई और दूसरी लहर आई तब तक एक साल गुज़र चुका था। लेकिन दूसरी लहर में जो अव्यवस्था दिखी इसके लिए भी आलोचना की गई कि सरकार ने एक साल में भी स्वास्थ्य व्यवस्था को इसके लिए तैयार नहीं किया और स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलने की वजह से बड़ी संख्या में लोगों की जानें गईं।
आम लोगों से लेकर विशेषज्ञ तक यह दलील देते रहे कि यदि अस्पताल की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त होती तो दूसरी लहर के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की जानें बचाई जा सकती थीं।
जस्टिस एन वी रमन्ना ने चिकित्सा दिवस पर अपने संबोधन के दौरान अस्पताल में इसी तरह की व्यवस्था को लेकर टिप्पणी की। उन्होंने कहा, 'चिकित्सा से जुड़े पेशेवरों की अपर्याप्त संख्या, बुनियादी ढांचे व दवाओं की कमी, पुरानी तकनीकों और सरकार द्वारा चिकित्सा क्षेत्र को प्राथमिकता नहीं देने जैसे मुद्दे तत्काल चिंता के मुद्दे हैं। यह सच है कि फैमिली डॉक्टर की परंपरा लुप्त होती जा रही है। ऐसा क्यों है कि कॉरपोरेट्स और निवेशकों की मुनाफाखोरी का दोष डॉक्टरों पर डाला जा रहा है?'
उन्होंने कहा, 'सरकार में चिकित्सा निकायों और संबंधित एजेंसियों को इन चिंताओं को दूर करने के लिए साथ काम करना होगा तभी हम हर साल पहली जुलाई को डॉक्टरों को ईमानदारी से बधाई दे सकते हैं।'