हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया के परिजनों को दी जातिसूचक गालियां

03:00 pm Aug 06, 2021 | सत्य ब्यूरो

दलित समाज से आने वालीं वंदना कटारिया जब भारत के लिए ओलंपिक में खेलने गयी होंगी, तो उन्होंने या उनके परिवार ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि टीम की हार के लिए उन्हें जातिसूचक गालियां सुननी पड़ेंगी। वंदना कटारिया ओलंपिक में भारत की महिला हॉकी टीम की खिलाड़ी हैं और वह अकेली ऐसी खिलाड़ी हैं, जिन्होंने ओलंपिक में गोल दागने की हैट ट्रिक लगाई है। 

एक ओर सारा देश महिला हॉकी टीम की खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर गर्व कर रहा था, वहीं वंदना के परिवार को जातीय अपमान का घूंट पीना पड़ा। 

बुधवार को भारत और अर्जेंटीना के बीच हुए मैच में वंदना ने भी बाक़ी खिलाड़ियों की ही तरह देश को जिताने के लिए जी-जान से खेला लेकिन भारत को जैसे ही हार मिली तो जातीय अहंकार में डूबे कुछ लोग वंदना के घर के बाहर पहुंच गए और उन्होंने इस हार के लिए महिला हॉकी टीम में शामिल दलित खिलाड़ियों को जिम्मेदार ठहरा दिया। इन लोगों ने वंदना के परिवार को जातिसूचक गालियां दीं और बेहूदगी की हदें पार कर गए।  

वंदना कटारिया उत्तराखंड के हरिद्वार जिले के रोशनाबाद गांव की रहने वाली हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया (टीओआई) में छपी ख़बर के मुताबिक़, ऊंची जाति से संबंध रखने वाले दो लोगों ने भारतीय महिला हॉकी टीम की हार के बाद वंदना के घर के बाहर पटाखे फोड़े और डांस किया। 

वंदना के परिजनों ने टीओआई को बताया कि गालियां देने वाले इन लोगों का कहना था कि भारतीय टीम इसलिए हार गयी क्योंकि इसमें कई दलित खिलाड़ी हैं। 

वंदना के भाई शेखर ने कहा कि हार के बाद हम सभी लोग निराश थे लेकिन टीम ने अच्छा खेला और हमें इस पर गर्व है। 

शेखर ने टीओआई को बताया, “मैच के बाद अचानक हल्ला-गुल्ला होने लगा। कुछ लोग हमारे घर के बाहर पटाखे जला रहे थे। हम बाहर गए तो देखा कि हमारे ही गांव के दो लोग थे। हम उन्हें जानते हैं, वे ऊंची जाति के हैं और वे हमारे घर के बाहर नाच रहे थे।” 

जब वंदना के परिजन बाहर आए तो इन लोगों ने उन्हें जाति सूचक गालियां दीं। शेखर ने कहा कि ये लोग कह रहे थे कि केवल हॉकी ही नहीं बल्कि हर खेल से दलितों को बाहर रखा जाना चाहिए। इसके बाद उन लोगों ने अपने कुछ कपड़े उतार दिए और फिर से नाचने लगे। 

शेखर ने इसे लेकर पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। एक अभियुक्त को पुलिस ने गिरफ़्तार कर लिया है। 

वंदना के परिजनों के साथ जो हुआ है, उसकी न सिर्फ़ आम लोगों को बल्कि खेल जगत से जुड़े सारे लोगों को भी मज़म्मत करनी चाहिए। क्योंकि खिलाड़ी किसी जाति या क्षेत्र का नहीं होता, वो पूरे देश का होता है और तिरंगे को ऊंचा रखने के लिए खेलता है। 

वंदना के परिजनों के साथ जो हुआ है, वह इस बात को भी बताता है कि कुछ लोग नहीं चाहते कि दलित समाज के लोग ऊंचे पदों पर चले जाएं। ओलंपिक में हैट ट्रिक ठोककर देश की शान बढ़ाने वालीं वंदना का कसूर यही दिखाई देता है कि वह दलित समाज से हैं, वरना टीम के हारने पर उनके परिजनों के साथ इस तरह का व्यवहार क़तई नहीं होता।

जो भी लोग किसी खिलाड़ी को उसकी जाति या क्षेत्र से जोड़ें, इस तरह का जातिगत उत्पीड़न करें, उनका सामाजिक बहिष्कार भी अवश्य किया जाना चाहिए।  

जातीय अहंकार के कारण दलितों के साथ मारपीट, भेदभाव होने की ख़बरें इस आधुनिक युग में भी आम हैं। लेकिन टीम की हार के लिए किसी पुरूष या महिला खिलाड़ी को उसकी जाति के कारण निशाना बनाना, घिनौनी जातिवादी सोच का वीभत्स रूप है। 

बीसवीं सदी में जब दुनिया असंभव को संभव कर दिखा रही है, तब इस तरह की घटनाएं और मानसिकता देश की तरक्की में बहुत बड़ा रोड़ा है। महिला हॉकी टीम के प्रदर्शन पर हर भारतीय को नाज है लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनके लिए जातीय श्रेष्ठता ही सब कुछ है।