कोरोना संक्रमण के दौरान विदेशियों के साथ भेदभाव और उनके ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने की वारदात दिन ब दिन बढ़ती जा रही है। ताज़ा उदाहरण चीन से है, जहाँ आरोप लग रहे हैं कि अश्वेतों के साथ भेदभाव हुए हैं।
आरोप यह लग रहा है कि चीन के गुआंगज़ू शहर में रहने वाले नाइजीरियाई समुदाय के लोगों को शहर से बाहर निकाल दिया गया, उन्हें ज़बरन क्वरेन्टाइन केंद्रों में भेजा गया और उनके साथ ज़्यादतियाँ की गईं।
'लिटिल अफ्रीका'
चैनल न्यूज़ एशिया ने एक ख़बर में यह कहा है। स्थानीय अधिकारियों ने इस न्यूज़ चैनल से कहा कि गुआंगज़ू के यूज़ू इलाक़े में कम से कम 8 लोगों में इस संक्रमण के लक्षण पाए गए। उन सब लोगों को क्वरेन्टाइन किया गया। यूज़ू में अफ़्रीकी मूल के लोगों की बहुतायत है और इस इलाक़े को 'लिटिल अफ्रीका' कहते हैं।इनमें से 5 नाइजीरियाई नागरिक थे, जो क्वरेन्टाइन से भाग गए और 8 रेस्तरां गए। इस वजह से 2,000 लोगों को संक्रमण हो गया।
अश्वेतों को घर से निकाला
अफ़्रीकी मूल के कई लोगों ने समाचार एजेंसी एएफ़पी से कहा कि उन्हें उनके घरों से ज़बरन निकाल दिया गया। उगांडा के एक छात्र ने एएफ़पी से कहा, 'मैं बग़ैर कुछ खाए-पीए एक पुल के नीचे चार दिनों से सो रहा हूं। मैं कहीं से खाने का सामान नहीं खरीद सकता, कोई रेस्तरां मुझे खाने की चीजें नहीं देगा।'
इसी तरह एक नाइजीरियाई व्यापारी ने कहा कि उन्हें उनके ही घर से निकाल दिया गया। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस वाले ज्योंही कहीं अश्वेतों को देखते हैं, वे उनके पास जाकर उन्हें घर जाने को कहते हैं।
अमेरिका ने पारदर्शिता नहीं रखने का आरोप लगाते हुए चीन की काफी आलोचना की है। इसके अलावा कोरोना वायरस की उत्पत्ति के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच ठनी रही है और दोनों ने एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए हैं।
गुआंगज़ू की इन घटनाओं के अलावा इंटरनेट और सोशल मीडिया की दुनिया में भी अफ्रीकी मूल के लोगों को चीन में निशाना बनाया गया है। कई चीनियों ने माँग करते हुए पोस्ट किया है कि अफ्रीकियों को वापस उनके देश भेज देना चाहिए।
इससे चीन के अश्वेत समुदाय में अफरताफरी मची हुई है, लोग असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।