सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी अब भी राज्यसभा में बहुमत में नहीं है, पर वह तेजी से इस ओर बढ़ रही है। सोमवार को हुए राज्यसभा चुनावों में बीजेपी ने 11 में से 9 सीटें जीत लीं, जिससे सदन में इसके सदस्यों की संख्या बढ़ कर 92 हो गई।
राज्यसभा चुनावों में बीजेपी की बड़ी जीत हुई है, लेकिन वह अब भी बहुमत से बहुत पीछे है। बहुमत के लिए ज़रूरी 123 सीटों में से बीजेपी के पास अभी 31 सीटें कम हैं।
एनडीए के पास 98 सीटें
बीजेपी के अलावा रिपब्लिकन पार्टी के रामदास अठावले और जनता दल युनाइटेड के 5 सदस्यों को मिला कर एनडीए के पास राज्यसभा में अब 98 सीटें हो गई हैं। एडीएमके के 9 सांसदों और पूर्वोत्तर की कुछ पार्टियों के सांसदों को मिला कर यह तादाद 110 तक पहुँचती है।राज्यसभा में बहुमत न होने के कारण सरकार को हर बार विधेयक पास कराने में दिक्क़त होती है और उसे दूसरे दलों का सहारा लेना पड़ता है। वह इसके लिए बीजू जनता दल के 9 और वाईएसआर कांग्रेस के 6 सदस्यों पर निर्भर रहती रही है।
एनडीए को राज्यसभा में झटका लगा जब अकाली दल और शिवसेना ने उसका साथ छोड़ दिया। इन दोनों के पास 3-3 राज्यसभा सदस्य हैं।
11 सदस्य होंगे रिटायर
इस चुनाव की ज़रूरत इसलिए पड़ी कि 25 नवंबर को राज्यसभा के 11 सदस्य रिटायर हो रहे हैं। इनमें से उत्तर प्रदेश के 10 और उत्तराखंड से एक सदस्य हैं। रिटायर होने वाले राज्यसभा सदस्यों में कांग्रेस के पी. एल. पूनिया और राज बब्बर भी हैं।इन चुनावों के बाद राज्यसभा में कांग्रेस के सदस्यों की संख्या 40 से घट कर 38 हो गई। राज्यसभा में कांग्रेस सदस्यों की यह न्यूनतम संख्या है।
उत्तर प्रदेश से चुने गए सदस्य हैं-हरदीप सिंह पुरी, राम गोपाल यादव, नीरज शेखर, अरुण सिंह, गीता शाक्य, हरिद्वार दुबे, बृजलाल, बी. एल. वर्मा, सीमा द्विवेदी और रामजी गौतम। उत्तराखंड से नरेश बंसल चुने गए हैं।
सरकार होगी मजबूत
यह चुनाव अहम दो कारणों से है। एक तो सत्तारूढ़ दल की स्थिति मजबूत होती जा रही है, जिससे इसे निकट भविष्य में साहसिक कदम उठाने में सहूलियत होगी। इसे अब तक बहुत दिक्क़तों का सामना करना पड़ रहा है। इसे कृषि विधेयकों से समझा जा सकता है। कृषि विधयकों को लोकसभा में आसानी से पारित कर दिया गया, पर राज्यसभा में परेशानी हुई। यह आरोप भी लगा कि सरकार ने इसे ग़लत तरीके से पारित करवाया क्योंकि उसके पास ज़रूरत बहुमत नहीं था। इस पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश की भूमिका पर भी सवाल उठे थे।दूसरी बात यह है कि कांग्रेस 38 सीटों के साथ अपने न्यूनतम स्तर पर है। वह राज्यसभा में ज़ोरदार ढंग से विरोध नहीं कर सकती है। राज्यसभा का सारा दारोमदार छोटे व क्षेत्रीय दलों पर आ जाता है, लेकिन वे एकजुट होकर वोट नहीं कर सकते। कर्नाटक में एक सीट खाली हुई है, वहां उपचुनाव कराना होगा। समझा जाता है कि यह भी बीजेपी के पक्ष में ही जाएगी। इसके बाद राज्यसभा में विपक्ष की स्थिति बदतर ही होगी। ऐसे में सरकार के लिए विवादित मुद्दों पर भी विधेयक पारित कराना आसान हो जाएगा।