सरकारी विज्ञापन देने में जनता का पैसा उड़ा रही मोदी व केजरीवाल सरकार

05:50 pm Mar 07, 2019 | पवन उप्रेती - सत्य हिन्दी

अख़बार विज्ञापनों से भरे हुए हैं, हालात यह हैं कि आपको ख़बर ढूंढने के लिए ख़ासी मशक्कत करनी पड़ेगी। लगता है कि इस बात की होड़ लगी है कि कौन कितना ज़्यादा विज्ञापन दे सकता है। विज्ञापन का यह पैसा कहीं खैरात से नहीं आता, यह जनता की गाढ़ी कमाई का ही पैसा है जिसके दम पर सरकारें धड़ाधड़ विज्ञापन दे रही हैं। इस मामले में कोई भी पार्टी किसी से कम नहीं है। 

इन दिनों दिल्ली के अख़बार अरविंद केजरीवाल की सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के विज्ञापनों से पटे हुए हैं। पहले देखिए कि दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार किस तरह अंधाधुंध विज्ञापन दे रही है। 

अब देखिए कि मोदी और योगी सरकार किस तरह अंधाधुंध विज्ञापन दे रही हैं। 

सरकारों की ओर से आँखें बंद करके दिए जा रहे इन विज्ञापनों को झपटने की होड़ लगी हुई है क्योंकि कुछ ही दिन में आचार संहिता लगने वाली है। उसके बाद सरकारें अपनी उपलब्धियों का प्रचार सरकारी ख़र्चे पर नहीं करवा सकेंगी। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जनता के पैसे का जितना इस्तेमाल किसी काम में होगा, उससे कहीं ज़्यादा उसके प्रचार में ख़र्च किया जाएगा। 

बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में तो अखबारों ने इस सरकारी कृपा को पाने के लिए अपने-अपने संस्थान की ओर से मीडिया कॉन्क्लेव तक का आयोजन कराया। एक ही हफ़्ते में कई अख़बारों ने इन कॉन्क्लेव के जरिये लाखों रुपये के विज्ञापन कमा लिए। 

पार्टियाँ अलग, जनता एक जैसी 

2018 में दिल्ली में 14 फरवरी को केजरीवाल सरकार के तीन साल पूरे होने पर दिल्ली भर में पोस्टर लगाए गए। इन पोस्टरों में आम लोगों को दिखाया गया था। हैरानी की बात यह थी कि यही लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज्ञापन में भी थे। प्रधानमंत्री वाले विज्ञापन में पेट्रोलियम एवं नेचुरल गैस मंत्रालय की तरफ़ से गैस सब्सिडी छोड़ने वालों का आभार व्यक्त किया गया था। दो अलग-अलग सरकारें, अलग-अलग दलों की सरकारें और विज्ञापन में जनता एक जैसी, यह वास्तव में बहुत हास्यास्पद है। 

विज्ञापनों से भरा पड़ा है अख़बार

आज का इंडियन एक्सप्रेस अख़बार उठाकर देखिए। पूरा अख़बार विज्ञापनों से भरा पड़ा है। पहले पन्ने पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आपको अपनी सरकार का प्रचार करते मिलेंगे। इसमें उनकी तमाम उपलब्धियों का जिक़्र है। दूसरे पन्ने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का विज्ञापन है,आगे बढ़ते जाइए छठे पन्ने पर आपको फिर केजरीवाल मिलेंगे और सातवें पन्ने पर मोदी सरकार का विज्ञापन है। आगे पलटेंगे तो आठवें पन्ने पर फिर आपकी मुलाक़ात केजरीवाल के विज्ञापन से होगी और 13 वें पन्ने पर एक बार फिर मोदी सरकार का विज्ञापन आपको मिलेगा। इसके बाद 16 वें पन्ने पर आपको मोदी सरकार का फ़ुल पन्ने का विज्ञापन और 21 वें पन्ने पर मोदी सरकार और योगी सरकार के विज्ञापन मिलेंगे। आगे 22 वाँ, 23 वाँ, 24 वाँ और 27 वाँ पन्ना पूरी तरह मोदी सरकार के विज्ञापनों से भरा हुआ है। 28 वें पन्ने पर एक बार फिर आपको मोदी सरकार का विज्ञापन मिलेगा। 

इसके अलावा अगर आप दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं और एफ़एम रेडियो सुनते हैं तो आपको हर 4-5 मिनट में एक सरकारी विज्ञापन ज़रूर मिलेगा। इसमें अधिकतर विज्ञापन मोदी सरकार के हैं।

डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म की बात करें तो फ़ेसबुक से लेकर तमाम सोशल साइट्स, न्यूज़ वेबसाइट्स पर सरकार की उपलब्धियों का इस तरह प्रचार किया जा रहा है कि इसे देखकर या सुनकर एक बार के लिए आम आदमी कंफ़्यूज़ हो जाएगा कि जितना काम बताया जा रहा है, क्या वह हो चुका है और अगर वह हो चुका है तो फिर चारों ओर इतनी सारी समस्याएँ क्यों हैं। 

सरकारों की ओर से दिए जा रहे इन अंधाधुंध विज्ञापनों को लेकर सोशल मीडिया पर भी सवाल उठाए गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने 22 फ़रवरी को अपने ट्विटर हैंडल पर तंज कसते हुए लिखा, ‘आज के अख़बारों में मोदी जी को केजरीवाल ने बुरी तरह पीट दिया। मोदी जी को कोई तो मिला प्रचार में पछाड़ने वाला।’ आशुतोष ने विज्ञापन की फ़ोटो भी पोस्ट की है। 

क्यों दिए जाते हैं विज्ञापन 

सरकारें अपने कामकाज के बारे में जनता को बताने के लिए विज्ञापन देती हैं। लेकिन इसके पीछे खेल यह है कि यह विज्ञापन मीडिया घरानों को अपने पक्ष में ख़बर चलवाने या विरोधियों के ख़िलाफ़ प्रोपेगेंडा चलाने के लिए दिए जाते हैं। ऐसा लगता है कि सरकारों के जनसंपर्क विभाग का काम ही यही रह गया है कि वह देश भर या राज्य भर के तमाम छोटे-बढ़े मीडिया संस्थानों को विज्ञापन देकर उनका मुँह बंद रखे रहें ताकि वे सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर छापने की बात भी न सोच सकें। और इसके उलट सरकार की ग़लती पर उनके पक्ष में खुलकर खड़े हो जाएँ। 

पैसे की बर्बादी के ख़िलाफ़ उठाएँ आवाज़

अब आप सोच रहे होंगे कि हम यह सब आपको क्यों बता रहे हैं, हम आपको यह सब सिर्फ़ इसलिए बता रहे हैं कि जनता के पैसे की किस तरह बर्बादी की जा रही है। और यह तो सिर्फ़ एक ही अख़बार की बात है, देश में हज़ारों अख़बार हैं और उनमें अमूमन तो साल भर और चुनाव के नज़दीक आते ही इसी तरह विज्ञापनों का ढेर लग जाता है। इसलिए फ़ैसला आपके हाथ में भी है कि जनता के पैसे की इस तरह बर्बादी के ख़िलाफ़ आप भी आवाज उठाएँ।