बैंकों ने RTI से बाहर रहने के लिए SC में पूरा जोर लगाया

12:39 am Sep 15, 2022 | सत्य ब्यूरो

सरकारी और प्राइवेट बैंकों ने सूचना के अधिकार (RTI) दायरे से बाहर रहने के लिए पूरा जोर लगा दिया है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी इनके तर्कों का समर्थन कर रहा है। एचडीएफसी, एसबीआई, पीएनबी सहित कई बैंकों ने 13 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में आरटीआई अधिनियम के तहत अपने "अत्यधिक गोपनीय और संवेदनशील" जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट के किसी भी खुलासे का विरोध करते हुए कहा कि यह उनके ग्राहकों, शेयर धारकों और कर्मचारियों की प्राइवेसी के अधिकार पर हमला होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2021 में, अपने 2015 के फैसले को फिर से दोहराते हुए आरबीआई के लिए आरटीआई अधिनियम के तहत निजी और सार्वजनिक बैंकों से संबंधित वित्तीय जानकारी का खुलासा करना आवश्यक बना दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2021 में केंद्र सरकार और 10 बैंकों की एक संयुक्त याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें जयंतीलाल एन मिस्त्री (2015) के फैसले को वापस लेने की मांग की गई थी, जिसमें आरबीआई को बैंकों की निरीक्षण रिपोर्ट के साथ-साथ विलफुल डिफॉल्टर्स के विवरण का खुलासा करना अनिवार्य था।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों के विरोध का समर्थन किया। फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक बैंकों ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि अपने ग्राहकों से संबंधित जानकारी, कारोबारी गोपनीयता, जोखिम रेटिंग आदि की जानकारी आरटीआई अधिनियम के तहत न देने का निर्देश आरबीआई को दिया जाए। बैंकों ने तर्क दिया कि खाताधारकों के व्यक्तिगत विवरण, संभावित लोन और ऐसी जानकारी की गोपनीयता बनाए रखना उनके कारोबार के लिए जरूरी है। उन्होंने अदालत के आधार वाले फैसले का भी हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि निजता (प्राइवेसी) का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक पवित्र पहलू है।

बैंकों का कहना है कि इससे देश में निजी बैंकिंग क्षेत्र में बैंकों की प्रतिस्पर्धी स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। बैंकों की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी, के.वी. विश्वनाथन, दुष्यंत दवे और राकेश द्विवेदी ने इन तर्कों को रखा।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने बताया कि बैंकों के वकीलों ने कोर्ट में कहा कि इस तरह की किसी भी जानकारी को सार्वजनिक करने से पहले व्यक्तिगत खाताधारकों की सहमति की भी आवश्यकता हो सकती है। बैंकों और उसके ग्राहकों से संबंधित तकनीकी, व्यक्तिगत और अत्यधिक गोपनीय जानकारी न केवल प्रतिकूल रूप से प्रभावित करेगी, बल्कि बैंकों में निवेशकों के विश्वास को कमजोर करेगी। इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

अखबार के मुताबिक एचडीएफसी के नेतृत्व में निजी बैंकों ने यह तर्क भी दिया कि आरटीआई अधिनियम उनके जैसी निजी संस्थाओं पर लागू नहीं होता है क्योंकि वे अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं हैं और इसलिए, ऐसे बैंकों/वित्तीय संस्थाओं और उनके ग्राहकों और कर्मचारियों से संबंधित जानकारी मांगी/प्रदान नहीं की जा सकती है।

आरबीआई ने जून 2019 में आरटीआई अधिनियम के तहत आवेदकों को अपनी निरीक्षण और जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट को सार्वजनिक करने के बारे में विभिन्न बैंकों को सूचित किया था। हालांकि तब बैंकों ने कहा था कि यह "एकतरफा और मनमाना तरीका" है। उन्हें आपत्तियां दर्ज कराने का कोई अवसर दिए बिना यह आदेश दिया गया था।

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक आरबीआई के वरिष्ठ वकील जयदीप गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पांच से अधिक क़ानून हैं जो बैंकों को अपने ग्राहकों के बारे में गोपनीयता बनाए रखने के लिए बाध्य करते हैं, लेकिन अब आरटीआई एक्ट ऐसे बैंकिंग प्रावधानों को ओवरराइड करता हुआ लगता है।

वकील प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि कोर्ट ने 2015 में स्पष्ट आदेश दिया था कि आरबीआई को ऋणदाताओं की निरीक्षण और अन्य रिपोर्टों का खुलासा करना चाहिए ताकि खराब लोन और एनपीए की जांच हो सके। उन्होंने कहा कि बैंकों ने बिना कोई समीक्षा याचिका दायर किए मामले को फिर से खोलने की मांग की है।

जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने बैंकों के रुख पर विस्तृत सुनवाई के बाद इन याचिकाओं की सुनवाई के मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। हालांकि, बेंच ने कहा कि बैंकों की याचिकाओं को खारिज करने की मांग वाली अन्य याचिकाओं पर बाद में विचार किया जाएगा।