बीजेपी शासित राज्यों के कुछ मुख्यमंत्रियों और इस पार्टी के बड़बोले नेताओं ने इस बात पर पूरा जोर लगा दिया है कि ताज़ा हालात में सबसे ज़रूरी अगर कोई काम है तो वह है लव जिहाद पर क़ानून बनाना। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब एक रैली के मंच से इसे लेकर क़ानून बनाने की बात कही तो उनकी बातों से यह संकेत मिल रहा था कि उनके निशाने पर ऐसे मुसलमान युवा हैं, जिनकी स्कूल-कॉलेज में हिंदू लड़कियों से दोस्ती है और वे आगे इस दिशा में कुछ न सोचें।
इसके बाद मध्य प्रदेश की बीजेपी सरकार ने कहा कि वह लव जिहाद के मामलों को लेकर सख़्त क़ानून लाएगी, जिसमें 5 साल तक के कठोर कारावास की सजा होगी। हरियाणा और कर्नाटक की बीजेपी सरकारों ने भी उसकी हां में हां मिला दी। असम में बीजेपी लव जिहाद के कथित मामलों के ख़िलाफ़ बड़े स्तर पर अभियान शुरू करने जा रही है।
इस सबका असर ये हुआ कि कोरोना महामारी से लड़ने में इन सरकारों की विफलता, रोज़गार दे पाने में नाकामी, अपराध-भ्रष्टाचार को रोक पाने में नाकामयाबी सब छुप गयी और इसकी आड़ में हिंदू मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण का एक और मौक़ा मिल गया। क्योंकि ग़ौर कीजिए ये बयान ऐसे वक़्त पर इन राज्यों में दिए गए जब यहां पर उपचुनाव हो रहे थे। तसवीर साफ है कि सोच-समझकर और ख़ास मंशा से दिए गए।
लेकिन बीजेपी के इन नेताओं को जवाब देने कांग्रेस के दिग्गज नेता और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आगे आए हैं।
‘व्यक्तिगत आज़ादी का मसला’
गहलोत ने शुक्रवार को एक के बाद एक ट्वीट कर कहा, ‘लव जिहाद बीजेपी के द्वारा गढ़ा गया शब्द है जो देश को बांटने और सांप्रदायिक सौहार्द्र को नष्ट करने के लिए बनाया गया है। शादी का मसला व्यक्तिगत आज़ादी का है, इसे रोकने के लिए क़ानून लाना पूरी तरह असंवैधानिक है और यह किसी भी अदालत में नहीं टिकेगा।’ गहलोत ने कहा कि प्यार में जिहाद के लिए कोई जगह नहीं है।
राजनेताओं को सियासत के साथ ही दुनियावी मामलों का भी खासा तजुर्बा होता है। गहलोत ऐसे ही नेताओं में से एक हैं। इसलिए उन्होंने आगे कहा, ‘बीजेपी के नेता देश में ऐसा माहौल बना रहे हैं, जहां पर नौजवान लड़के-लड़कियों को किसी सरकार की दया पर निर्भर रहना होगा।’
गहलोत ने फिर कहा कि शादी एक व्यक्तिगत फ़ैसला है और वे (बीजेपी नेता) इस पर रोक लगाना चाहते हैं और यह किसी की व्यक्तिगत आज़ादी को छीनने जैसा है।
गहलोत आगे कहते हैं कि ऐसा लगता है कि यह सब देश के सांप्रदायिक सौहार्द्र को ख़त्म करने, सामाजिक संघर्ष को बढ़ावा देने और संवैधानिक नियमों का मखौल उड़ाने की एक चाल है।
ध्यान भटकाने की कोशिश
भारत का संविधान इस बात की इजाजत देता है कि 18 साल की उम्र पूरी होने के बाद कोई भी युवक या युवती अपने जीवनसाथी को चुन सकते हैं। भारत में हिंदुओं और मुसलमानों में बहुत शादी-विवाह हुए हैं और कभी इसे लेकर लव जिहाद जैसी कोई बात सामने नहीं आई। जहां पर अंतरधार्मिक विवाह के बाद विवाद हुआ, उसके लिए बहुत क़ानून हैं और कार्रवाई हुई। लेकिन बीजेपी ने लव जिहाद का शिगूफा छेड़ कर देश के ज़रूरी मुद्दों से ध्यान भटका दिया है और मीडिया का एक वर्ग इसमें उसका खुलकर साथ दे रहा है।
बीजेपी के इस तरह का माहौल बनाने से वे हिंदू लड़कियां जो किसी मुसलिम युवक से शादी करना चाहेंगी तो उन्हें इसी बात का डर रहेगा कि कहीं उनके शौहर को हिंदू संगठन लव जिहाद में न फंसा दें। क्योंकि इन दिनों ऐसा ही एक मामला चर्चा में है।
फ़ैसल-शालिनी की शादी
कानपुर के रहने वाले फ़ैसल और शालिनी यादव जो अब फिज़ा फातिमा बन चुकी हैं, दोनों ने मर्जी से शादी की। लड़की सौ बार कह चुकी है कि वह किसी लव जिहाद की शिकार नहीं है लेकिन कुछ लोग मानने के लिए तैयार नहीं हैं। वे दिन रात सोशल मीडिया पर इसे लव जिहाद का नाम देकर नफ़रती माहौल बनाने में जुटे हुए हैं।
21वीं सदी की दुनिया पूरी तरह अलग है। लड़के-लड़कियां स्कूल-कॉलेज-ट्यूशन में ये देखकर दोस्ती नहीं करते कि फलां शख़्स हिंदू या मुसलमान है। हिंदुओं में भी बड़ी संख्या में अंतरजातीय विवाह हो रहे हैं।
पढ़ाई के बाद नौकरी और बड़े शहरों में अकेले रहने के दौरान लड़के-लड़कियों की आपस में दोस्ती होती है। आपसी समझ बेहतर होने के बाद वे शादी कर लेते हैं और इसमें धर्म-जाति का मुद्दा कोई मायने नहीं रखता। लेकिन अब ऐसा होना मुश्किल हो जाएगा। ऑफ़िस में कोई मुसलिम लड़का किसी भी हिंदू लड़की से ज़्यादा बातचीत नहीं करेगा और इसी तरह हिंदू लड़की भी डरेगी क्योंकि आसपास बैठे लोग लव जिहाद की फब्तियां कसकर उनका जीना हराम कर देंगे।
देखिए, इस विषय पर वीडियो-
लव जिहाद की परिभाषा नहीं
एक ओर बीजेपी के मुख्यमंत्री और अन्य नेता लव जिहाद के लिए क़ानून बनाने की बात करते हैं तो दूसरी ओर केंद्र सरकार संसद में कह चुकी है कि लव जिहाद जैसी कोई घटना सामने नहीं आई है। केंद्र सरकार ने इस साल फ़रवरी में संसद में कहा था कि केरल में इस तरह का कोई भी मामला केंद्रीय एजेंसियों की जानकारी में नहीं आया है। सरकार ने यह भी कहा था कि वर्तमान क़ानूनों के तहत लव जेहाद की कोई परिभाषा नहीं है। देश में कई अदालतें जिनमें केरल हाई कोर्ट भी शामिल है उन्होंने भी इस तथ्य की पुष्टि की है।इसलिए, बीजेपी के नेताओं का समझना चाहिए कि देश के अंदर इतने क़ानून बने हुए हैं कि लव जिहाद के लिए अलग से किसी क़ानून की कोई ज़रूरत नहीं है और इस तरह के मामलों में अगर किसी तरह का विवाद होता है तो सख़्त कार्रवाई से भी किसी को एतराज नहीं है।
लेकिन इस तरह की बातों से हिंदुस्तान की कुल 96 फ़ीसदी आबादी वाले दो बड़े मज़हबों के लोगों के बीच नफ़रत फैलाकर वोट तो बटोरे जा सकते हैं लेकिन इससे जो दूरियां बढ़ेंगी, जो टकराव पैदा होगा, जो नफ़रत बढ़ेगी, वह हिंदुस्तान को बहुत कमजोर कर देगी।