सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को छठे दिन अनुच्छेद 370 से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई की है। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में पांच जजों की संविधान पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।
इस पीठ में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत शामिल हैं।
याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 370 को खत्म किए जाने के केंद्र सरकार के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की केंद्र सरकार की कानूनी शक्तियों और ऐसा करने में प्रक्रिया के किसी भी कथित दुरुपयोग को लेकर कोई भ्रम नहीं होना चाहिए।
बुधवार को कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन की दलीलें सुनी।
शक्ति के अस्तित्व और शक्ति के दुरुपयोग के बीच अंतर है
लॉ से जुड़ी खबर देने वाली वेबसाइट बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने दलीलें दी कि अनुच्छेद 370 ने तत्कालीन राज्य को आंतरिक संप्रभुता दी थी, जिसे अस्वीकार करने का मतलब है कि निरस्त करने से पहले राष्ट्रपति शासन लगाना अपने उद्देश्य में विफल रहा है।राष्ट्रपति शासन के दौरान, अनुच्छेद 3 और 4 को लागू नहीं किया जा सकता क्योंकि उनमें सशर्तता जुड़ी हुई है, और सशर्तता राज्य विधायिका के साथ निहित है। और यहां विधायिका संसद थी और राज्यपाल राष्ट्रपति बन गये। धवन ने इस बात पर जोर दिया कि संसद को किसी राज्य की विधायिका का स्थान नहीं दिया जा सकता है। जैसा कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के दौरान किया गया था।
उनकी इन दलीलों पर न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने उत्तर दिया, शक्ति के अस्तित्व और शक्ति के दुरुपयोग के बीच अंतर है, इसलिए हमें इसे भ्रमित नहीं करना चाहिए।
किसी राज्य की स्वायत्तता को इस तरह ख़त्म नहीं किया जा सकता
सुनवाई के दौरान सीजेआई ने पूछा कि क्या अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन होने पर संसद संविधान के अनुच्छेद 256 का सहारा लेकर कानून पारित कर सकती है?इस पर राजीव धवन ने कहा, कि "जब यह कोई कानून पारित करती है, तो इसे संविधान के अनुच्छेद 3 और 4 की शर्तों का पालन करना होता है।कृपया अनुच्छेद 168 देखें। यह हमारे देश की संघीय संरचना के लिए सुरक्षा उपाय हैं। ये वे सीमाएं हैं जो संविधान के संदर्भ में संघीय ढांचा है। वरिष्ठ वकील राजीव धवन ने कहा कि किसी राज्य की स्वायत्तता को इस तरह से ख़त्म नहीं किया जा सकता है। उन्होंने उत्तर-पूर्व भारत के कुछ राज्यों और क्षेत्रों को स्वायत्तता प्रदान करने वाले विशेष संवैधानिक प्रावधानों का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि संविधान में विविध प्रावधान हैं जिन्हें यूं ही समाप्त नहीं किया जा सकता है।
धवन ने इस बात पर जोर दिया कि संविधान को एक क़ानून की तरह नहीं पढ़ा जा सकता है और अनुच्छेद 370 संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है।
अनुच्छेद 370 विशेष दर्जे को लेकर किया गया एक वादा था
छठे दिन हुई इस सुनवाई में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने भी अपनी दलीलें दी। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक दुष्यंत दवे ने कहा कि अनुच्छेद 370 विशेष दर्जे को लेकर किया गया एक वादा था और इसे किसी भी समय तोड़ा नहीं जा सकता था।अनुच्छेद 370 एक असामान्य मसौदा है। यह उद्देश्य और उद्देश्य की दृष्टि से अस्थायी है। एक बार जब वह उद्देश्य पूरा हो जाता है, तो राष्ट्रपति के पास करने के लिए कुछ भी नहीं बचता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय को हस्तक्षेप करने की जरूरत है, एक कानून बनाना चाहिए, ताकि संवैधानिकता लागू हो।
बुधवार को सुनवाई पूरी होने के बाद सीजेआई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं के वकीलों से 22 अगस्त तक अपनी दलीलें पूरी करने का प्रयास करने को कहा है।
अनुच्छेद 370 को हटाना राजनीतिक कृत्य था : कपिल सिब्बल
बीते 8 अगस्त को हुई सुनवाई में मुख्य याचिकाकर्ता की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने अपनी दलीलें दी थी। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया गया वह गलत था और वह एक 'राजनीतिक कृत्य' था। राज्यपाल और केंद्र सरकार अनुच्छेद 370 को अमान्य करने के लिए मिलकर काम कर रहे थे।कपिल सिब्बल ने कहा था कि जब अनुच्छेद 370 लागू था तब भी भूमि और पर्सनल लॉ को छोड़कर अधिकतर भारतीय कानून जम्मू कश्मीर में लागू होते थे। फिर 370 को हटाने की कोई जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा था कि सिर्फ राजनीतिक संदेश देने के लिए हमने अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया है।
इस पर सॉलिसिटर जनरल ने कहा था कि 2019 में अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद अब वहां करीब 1200 कानून लागू होते हैं। पहले वहां शिक्षा का अधिकार नहीं मिलता था जो कि अब मिल रहा है।