कल 31 दिसंबर था यानी साल 2019 का आख़िरी दिन। आम तौर पर युवा इस दिन को पार्टी करके एन्जॉय करते हैं लेकिन कई ऐसे भी युवा हैं जिन्होंने पार्टी करने और ठंड में अपने घरों में दुबके रहने के बजाय नागरिकता संशोधन क़ानून के विरोध में दिल्ली के शाहीन बाग़ इलाक़े में चल रहे प्रदर्शन में अपनी हाज़िरी लगाई। नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ देश के कई राज्यों में जारी जोरदार प्रदर्शनों के बीच शाहीन बाग़ इलाक़े में भी लोग अपनी माँग को लेकर डटे हैं। राजधानी में पड़ रही कड़ाके की ठंड को नज़रअंदाज करते हुए सैकड़ों लोग पिछले दो हफ़्ते से इस क़ानून को वापस लेने की माँग को लेकर धरना दे रहे हैं।
प्रदर्शनकारियों में युवाओं से लेकर महिलाएँ, बुजुर्ग शामिल हैं और ये पूरे जोशो-ख़रोश के साथ डटे हुए हैं। उनकी सिर्फ़ एक ही माँग है कि केंद्र सरकार इस क़ानून को वापस ले ले।
जैसे ही रात के 12 बजे धरना स्थल पर मौजूद लोगों ने एक-दूसरे को नए साल की बधाई दी और बेहद सर्द रात के बीच राष्ट्र गान गाया और इसके बाद इंक़लाब जिंदाबाद के नारे लगाये। कई युवाओं ने सड़कों पर तिरंगा फहराया और कई ने इस क़ानून के ख़िलाफ़ प्लेकॉर्ड हाथ में लेकर ‘आज़ादी-आज़ादी’ के नारे लगाए। इस दौरान सर्दी से बचने के लिए कई लोग चाय का सहारा लेते रहे और कई लोग शेड के नीचे बैठकर मंच पर आ रहे लोगों को सुनते रहे।
दिल्ली में इस बार सर्दी ने 118 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है लेकिन इस भयंकर सर्दी में भी महिलाएँ अपने छोटे-छोटे बच्चों के साथ धरने पर बैठी हैं।
धरने में बैठी महिलाएं।
33 साल की सायमा ने एनडीटीवी से कहा, ‘माँ होने के नाते, अपने बच्चों का भविष्य बचाने के लिए मैं प्रदर्शन में आयी हूं। हमें हमारा अधिकार दिया जाना चाहिए और यह केवल मेरी लड़ाई नहीं है। यह संविधान को बचाने की भी लड़ाई है। पूरे देश भर में लोगों को कागजात न होने की वजह से परेशानी होगी।’
सायमा बताती हैं कि वह अपने बच्चों को सुलाने के बाद प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आती हैं। वह यह भी बताती हैं कि यह पहली बार है जब वह किसी प्रदर्शन में शामिल हो रही हैं।
24 साल की साजिदा ख़ान ने एनडीटीवी से कहा, ‘मैंने जामिया से 2014 में राजनीतिक विज्ञान में ग्रेजुएशन किया। जामिया में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं था। पहली बार ऐसा हुआ है और मैं इसके सख़्त ख़िलाफ़ हूँ।’ साजिदा अपनी एक साल की बेटी के साथ प्रदर्शन में शामिल हुईं।
स्थानीय लोग धरने पर बैठे लोगों के लिए खाने, चाय का इंतजाम करने में मदद करते हैं। ट्विटर पर भी इन लोगों के लिए कंबल और ज़रूरी चीज जुटाये जाने की मुहिम चल रही है।
प्रदर्शनकारियों में 90 साल की आसमा ख़ातून भी हैं। आसमा हर दिन शाम को 3 बजे से रात 9 बजे तक प्रदर्शन में हिस्सा लेती हैं। आसमा कहती हैं, ‘हम संविधान और अपने सभी भाइयों के लिए लड़ रहे हैं। जो लोग मुझसे जानकारी माँगते हैं, मैं उनसे पूछना चाहती हूं कि वे अपने पूर्वजों के नाम बताएँ। मैं आपको अपनी 7 पीढ़ियों के नाम दिखा सकती हूँ जो यहां (भारत) रही हैं।’
डॉ. कफ़ील ख़ान भी धरने में पहुंचे।
नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ इससे पहले दिल्ली में हुए प्रदर्शनों के दौरान सीलमपुर और ज़ाफराबाद में बवाल हुआ था। लेकिन इस प्रदर्शन में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है। लोगों का कहना है कि यह क़ानून धर्म के आधार पर भेदभाव करता है इसलिए इसे वापस लिया जाना चाहिए। लोगों का कहना है कि यह इतिहास में लिखा जाएगा कि जब दुनिया नए साल का जश्न मना रही थी तो हज़ारों लोग अपने हक़ की आवाज़ बुलंद कर रहे थे। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वह नए साल में भी इसी तरह संघर्ष को जारी रखेंगे और इस क़ानून को वापस लिये जाने तक संघर्ष करते रहेंगे।