एक्टिविस्ट हर्ष मंदर के ख़िलाफ़ ईडी की छापेमारी का शिक्षाविदों, पत्रकारों, फ़िल्म निर्माताओं, कार्यकर्ताओं और वकीलों सहित 600 शख्सियतों ने विरोध किया है। हर्ष मंदर का समर्थन करते हुए उन्होंने छापे की कार्रवाई को आलोचकों को धमकाने का प्रयास क़रार दिया है। उन्होंने यह भी कहा है कि यह लोगों के अधिकारों को रौंदने के लिए सरकारी संस्थाओं का दुरुपयोग है।
इस मामले में उन्होंने एक संयुक्त बयान जारी किया है। यह बयान उसकी प्रतिक्रिया में है जिसमें प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने गुरुवार को हर्ष मंदर से जुड़े तीन जगहों पर छापे मारे हैं। यह छापेमारी तब की गई थी जब कुछ घंटे पहले ही हर्ष मंदर जर्मनी चले गए। दक्षिणी दिल्ली के वसंत कुंज में मंदर के घर और अदचीनी में उनके कार्यालयों पर छापे मारे गए। इसके अलावा शहर के महरौली क्षेत्र में मंदर द्वारा संचालित दो आश्रय गृहों-उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबो होम पर भी छापे मारे गए। कार्रवाई इस साल फ़रवरी में दिल्ली पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा द्वारा दर्ज एक एफ़आईआर के आधार पर मनी लॉन्ड्रिंग जांच से जुड़ी है।
इस कार्रवाई के विरोध में संयुक्त बयान जारी करने वाले हस्ताक्षरकर्ताओं में इतिहासकार राजमोहन गांधी, वकील प्रशांत भूषण और इंदिरा जयसिंह, कार्यकर्ता मेधा पाटकर और अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज जैसी शख्सियतें हैं। उन्होंने बयान में कहा है कि हर्ष मंदर और उनके नेतृत्व वाली संस्था सेंटर फॉर इक्विटी स्टडीज पिछले साल भर से 'कई सरकारी एजेंसियों द्वारा निरंतर उत्पीड़न के शिकार हैं'।
उन्होंने संयुक्त बयान में कहा है, 'इन सभी बदले की कार्रवाई के प्रयासों ने न तो पैसे की गड़बड़ी और न ही क़ानून के उल्लंघन को उजागर किया है। ईडी और आईटी विभाग के मौजूदा छापे को इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि यह धमकाने, डराने और मौजूदा सरकार के हर आलोचक को चुप कराने की कोशिश है। यह सरकारी संस्थानों के दुरुपयोग की निरंतर शृंखला का हिस्सा है।' उन्होंने कहा है कि भारत के संविधान और क़ानून की जीत होगी।
बता दें कि इस साल फ़रवरी में राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग यानी एनसीपीसीआर के निर्देशों के तहत उम्मीद अमन घर और खुशी रेनबॉ होम के ख़िलाफ़ महरौली थाने में केस दर्ज कराया गया था। आरोप लगाया गया था कि दोनों एनजीओ में मौजूद अनाथ बच्चों को सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलनों में इस्तेमाल किया गया था। इसी से जुड़े एक मामले में वित्तीय अनियमितताओं का भी आरोप लगाया गया था। इसी वित्तीय अनियमितताओं के आरोप को लेकर ताज़ा कार्रवाई की गई है।
वैसे, इस कार्रवाई को उससे जोड़कर देखा जा रहा है कि यह कार्रवाई इसलिए की गई है क्योंकि हर्ष मंदर मोदी सरकार की नीतियों के आलोचक रहे हैं।
हर्ष मंदर सामाजिक मुद्दों पर काफ़ी सक्रिय रहे हैं। उन्होंने दिल्ली दंगों में भड़काऊ भाषण देने का आरोप लगाते हुए बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी। बाद में पुलिस ने उस हिंसा में शामिल होने का आरोप हर्ष मंदर पर ही लगा दिया था।
दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हिंसा की चार्जशीट में हर्ष मंदर का नाम भी जोड़ा दिया था। हर्ष मंदर पर नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों को उकसाने का आरोप लगा था। यह भी आरोप लगा था कि उन्होंने दिल्ली हिंसा की साज़िश रची थी।
दरअसल, पिछले दो दशक में हर्ष मंदर की छवि अल्पसंख्यक समर्थक की बन गई है। ख़ासकर गुजरात जनसंहार के समय से बहुसंख्यकवादी हिंसा के शिकार मुसलमानों के लिए और उनके साथ उन्होंने जो काम किया है, उसके कारण उनके ख़िलाफ़ घृणा का प्रचार किया गया है।
हर्ष मंदर ने साल 2002 के गुजरात दंगों से आहत होकर नौकरी छोड़ दी थी और बाद में वह सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर काम करने लगे।