चंद्रयान-3 मिशन कामयाब रहा है। इसके लैंडर की चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग हो चुकी है। इसके साथ ही भारत दुनिया का ऐसा चौथा देश बन गया है जिसने चांद पर सफल लैंडिंग करने में कामयाबी हासिल की है। वहीं चांद के दक्षिण ध्रुव पर पहुंचने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन चुका है। चंद्रयान - 2 की विफलता के बाद करीब चार साल भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में इतिहास रचने में कामयाबी हासिल की है। यह कामयाबी के पीछे भारतीय अंतरिक्ष इजेंसी इसरो की टीम की सालों की कड़ी मेहनत और हार न मानने का जज्बा है। चंद्रयान-3 मिशन को कामयाब करने के लिए वैज्ञानिकों की पूरी टीम दिन और रात की परवाह किए बिना काम करती रही है। इसरो और इससे जुड़ी वैज्ञानिक संस्थाओं के वैज्ञानिकों ने बेहतरीन टीम वर्क करके देश को यह सफलता दिलाई है।
इसरो अध्यक्ष है डॉ एस सोमनाथ
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अर्थात इसरो के अध्यक्ष डॉ एस सोमनाथ का चंद्रयान-3 की कामयाबी में बेहद अहम योगदान रहा है। इनके नेतृत्व में चंद्रयान-3 मिशन आगे बढ़ा है। वह एयरोस्पेस इंजीनियर है। उन्होंने व्हीकल मार्क 3 डिजाइन किया, जिसे बाहुबली रॉकेट भी कहा गया। इस रॉकेट ने ही चंद्रयान-3 को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचाया है। जनवरी 2022 में इसरो अध्यक्ष बनने के बाद इन्होंने इस महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन को आगे बढ़ाया। इससे पहले वह विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र (वीएसएससी) के निदेशक रह चुके हैं। ये दोनों ही संस्थान इसरो के लिए रॉकेट प्रौद्योगिकियों के विकास के लिए काम करते हैं। एस सोमनाथ की देखरेख में ही चंद्रयान -3, सूर्य का अध्ययन करने के लिए मिशनआदित्य-एल 1 और भारत का पहला मानव मिशन गगनयान पर काम हो रहा है। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ बेंगलुरु से पढ़ाई की है।
चंद्रयान-3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर हैं पी वीरमुथुवेल
पी वीरमुथुवेल ने 2019 में चंद्रयान -3 के प्रोजेक्ट डायरेक्टर के रूप में कार्यभार संभाला था। आआईटी मद्रास से पढ़ाई करने वाले पी वीरमुथुवेल का चंद्रयान-3 की कामयाबी में बड़ा योगदान रहा है। इससे पहले वह इसरो के मुख्य कार्यालय में स्पेस इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोग्राम कार्यालय में उप निदेशक का पद संभाला चुके हैं। उन्होंने चंद्रयान-2 मिशन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक हैं एस उन्नीकृष्णन
नायरएयरोस्पेस इंजीनियर डॉ उन्नीकृष्णन नायर अंतरिक्ष में भारत के मानव मिशन की अगुवाई करने वाले वैज्ञानिक हैं। वे रॉकेट के विकास और निर्माण से जुड़े विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के निदेशक हैं। यही वह वैज्ञानिक हैं जिनके पास जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) मार्क-III को विकसित करने की जिम्मेदारी थी। इसे ही अब लॉन्च व्हीकल मार्क-III के रूप में जाना जाता है। विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के प्रमुख के रूप में, एस उन्नीकृष्णन नायर और उनकी टीम इस मिशन के विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं की देखरेख कर रही है। उन्होंने 2019 में असफल रहे चंद्रयान-2 मिशन के विक्रम लैंडर की बारीक से बारीक जानकारियों को एकत्र कर चंद्रयान-3 मिशन को सफल बनाने में मदद की है। डॉ उन्नीकृष्णन नायर इंडियन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के पूर्व छात्र रहे हैं।
यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में निदेशक हैं एम शंकरन
एम शंकरन वह वैज्ञानिक हैं जिन्हें जून 2021 में यूआर राव सैटेलाइट सेंटर में निदेशक की भूमिका सौंपी गई थी। इस सेंटर को इसरो के लिए भारत के सभी उपग्रहों के डिजाइन और निर्माण का काम सौंपा गया है। एम शंकरन ऐसे उपग्रहों के निर्माण के लिए जिम्मेदार टीम का नेतृत्व कर रहे हैं जो संचार, नेविगेशन, रिमोट सेंसिंग, मौसम पूर्वानुमान और ग्रहों की खोज आदि से जुड़ा काम करती है। ऐसे में चंद्रयान - 3 की सफलता में इस सेंटर का बड़ा योगदान है।
यूआर राव सैटलाइट सेंटर की उपनिदेशक एम वनिता
यू आर राव सैटेलाइट सेंटर में चंद्रयान-3 मिशन की डिप्टी प्रोजेक्ट डायरेक्टर डॉ एम वनिता हैं। वह चंद्रयान 2 के मिशन की प्रोजेक्ट डायरेक्टर रह चुकी हैं। वे इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम्स की इंजीनियर हैं और भारत के किसी भी मून मिशन का नेतृत्व करने वाली पहली महिला हैं। चंद्रयान - 3 की कामयाब लैंडिंग में देश की महिला शक्ति का भी योगदान है। उनकी इस मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका इस बात को भी साबित करती है कि महिलाएं अंतरिक्ष विज्ञान में भी किसी से पीछे नहीं है।