आज़ाद भारत इस 15 अगस्त को पूरे 72 साल का हो जाएगा। 72 साल के इस बूढ़े देश के जवान बेटे-बेटियों को आज कुछ भी याद नहीं कि भारत के जन्म के समय क्या-क्या हुआ था। उन्होंने कुछ लोगों के नाम सुन रखे हैं और उनके बारे में सुनी-सुनाई और पढ़ी-पढ़ाई धारणाएँ पोस रखी हैं। एक थे जिन्ना, जिन्होंने धर्म के आधार पर देश को दो भागों में बँटवा दिया। एक थे नेहरू जिन्होंने प्रधानमंत्री बनने के लिए देश का बँटवारा स्वीकार कर लिया। एक थे पटेल जो नेहरू से ज़्यादा योग्य थे लेकिन गाँधी जी ने उनको प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया। एक थे गाँधी जिन्होंने पहले तो बँटवारे का विरोध किया लेकिन बाद में न केवल मान लिया बल्कि पाकिस्तान को 50 करोड़ दिलवाने के लिए अनशन भी किया। और एक थे सुभाष चंद्र बोस जो बंदूक़ के बल पर देश को आज़ाद कराना चाहते थे लेकिन असफल रहे और बाद में नेहरू ने उनको गुमनामी के अँधेरे में जीने को मजबूर कर दिया।
ये सब किंवदंतियाँ हैं जो फ़ेसबुक और वॉट्सऐप पर ‘सत्यकथा’ की तरह चलती रहती हैं जो उतनी ही सच होती हैं जितनी कि कोई भी कल्पित कहानी। अव्वल तो कोई सत्य जानता नहीं चाहता और जो जानना चाहता है, उसे भी ‘सच और केवल सच’ कहीं नहीं मिलता। हर जगह फिल्टर्ड ट्रुथ है। तो क्या सच जानना इतना ही मुश्किल है या कि बिल्कुल असंभव है हम ऐसा नहीं मानते।
‘सत्यहिंदी.कॉम’ के लॉन्च होने के बाद यह पहला 15 अगस्त है और इस मौक़े पर हम यह कोशिश करेंगे कि उस दौर की सभी महत्वपूर्ण घटनाओं और निर्णायक मोड़ों की गहराई में जाएँ और पता करें कि भारत-पाक बँटवारे के लिए परिस्थितियाँ ज़िम्मेदार थीं या कुछ शख़्सियतें या दोनों; और क्या इस बँटवारे को किसी भी तरह से टाला जा सकता था। हमारा मक़सद किसी को हीरो और किसी को विलन साबित करना नहीं है क्योंकि हम केसरिया-हरे-लाल-सफ़ेद चश्मे से इतिहास को नहीं देखना चाहते। हमारे लिए ये सबके-सब केवल और केवल पात्र थे जो अपने समय और अपनी परिस्थितियों के अनुसार अपनी-अपनी भूमिकाएँ निभा रहे थे।
इस पूरे मामले पर 'सत्य हिंदी' पर कल से विशेष सीरीज़।