ब्रिटेन में लेबर पार्टी ने 650 सदस्यीय संसद में 403 सीटें जीतीं और भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की अगुआई वाली कंजर्वेटिव पार्टी के 14 साल के शासन को समाप्त कर दिया। ब्रिटेन की जनसंख्या छह करोड़ सत्तर लाख है, जिसमें 18 लाख भारतीय मूल के नागरिक शामिल हैं , जो चुनावी नतीजों को प्रभावित करने में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। ब्रिटिश-हिंदू समुदाय , ब्रिटेन का तीसरा सबसे बड़ा धार्मिक समूह, अपनी राजनीतिक आवाज़ को पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूती से उठा रहा है और यहाँ तक कि उसने एक 'हिंदू घोषणापत्र' भी जारी कर अपने उम्मीदवार भी चुनावी मैदान में उतारे थे।
निवर्तमान ब्रिटेन के संसद में, 15 भारतीय मूल के सांसद थे - लेबर से आठ और कंजर्वेटिव पार्टी से सात जो 65 गैर-श्वेत सांसदों में शामिल थे , यानि 10 प्रतिशत जो ब्रिटिश राजनीतिक इतिहास में जातीय रूप से उसे सबसे विविध सदन बनाता था । लगभग तीन प्रतिशत की आबादी वाली पर आर्थिक रूप से संपन्न ब्रिटिश हिन्दू समाज को लुभाने के लिए ब्रिटेन के दोनों मुख्य राजनीतिक दलों ने अधिकतम संख्या में भारतीय मूल के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। इस दौड़ में 107 ब्रिटिश-भारतीय शामिल थे। अब प्रमुख विजेताओं में ज्यादातर महिलाएं हैं, जिनमें कंजर्वेटिव पार्टी के निवर्तमान प्रधानमंत्री ऋषि सुनक, सुएला ब्रेवरमैन, शिवानी राजा, गगन मोहिंद्राबब और प्रीति पटेल शामिल हैं।
लेबर पार्टी के कुछ सदस्य जिन्हें लेबर सरकार में मंत्री पद मिल सकता है, वे हैं लिसा नंदी, जिनका संबंध बंगाल से है, नवेन्दु मिश्रा, गोरखपुर के मूल निवासी, कनिष्क नारायण, प्रीत कौर गिल और तनमनजीत सिंह ढेसी जो ब्रिटिश संसद के पहले पगड़ीधारी सिख सांसद होंगे। राजनीतिक प्रबंधकों को ब्रिटिश हिन्दू मतदाताओं के मतदान के रूझान का पता लगाने में समय लगेगा, लेकिन निश्चित रूप से परिणाम को देखते हुए, यह कहा जा सकता है कि इस चुनाव में उन्होंने लेबर पार्टी का साथ दिया है।
इंग्लैंड का चुनाव मुख्यतः दो मुख्य मुद्दों पर लड़ा गया था, 2016 में यूरोपीय संघ से बाहर निकलने के बाद देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था जिसका दुस्प्रभाव रोजगार, मुद्रास्फीति एवं राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना पर पड़ा और दूसरा, कंजर्वेटिव पार्टी के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल जिसने अपने पांच प्रधानमंत्रियों को बहुत ही काम समय में बदल दिया।
ब्रिटेन की लेबर पार्टी के साथ भारत की स्वतंत्रता भी जुडी हुई है। 1945 में, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्ति पर, लेबर पार्टी ने भारत को स्वतंत्रता प्रदान करने के वादे के साथ विंस्टन चर्चिल को करारी हार देकर चुनाव जीता और जेल में बंद राजनीतिक कैदियों को उसी वर्ष रिहा भी कर दिया, जिससे स्वतंत्रता आंदोलन में तेज़ी आयी और स्वतंत्र भारत की रूपरेखा पर विचार भी होने लगा । विंस्टन चर्चिल 1940 से 1945 तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे थे। वह एक रूढ़िवादी राजनेता थे जो भारतीय स्वतंत्रता के प्रबल विरोधी थे। जुलाई 1945 में, ब्रिटेन के नए चुने गए लेबर पार्टी के प्रधान मंत्री क्लेमेंट एटली ने भारत को ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति दे स्वतंत्रता की मुहर लगाई थी। वे 1935 से 1955 तक लेबर पार्टी के नेता थे और 1945 से 1951 तक प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया।
हाल के वर्षों में ब्रिटिश भारतीयों के राजनीतिक परिदृश्य में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, खासकर लेबर पार्टी के साथ उनके संबंधों में। उनके पिछले नेता जेरेमी कॉर्बिन के कार्यकाल के दौरान, लेबर पार्टी ने भारतीय समुदाय से समर्थन में उल्लेखनीय गिरावट का अनुभव किया, जिसका मुख्य कारण कश्मीर पर कॉर्बिन का विवादास्पद रुख और कथित भारत विरोधी पूर्वाग्रह था। ब्रिटेन के कंजर्वेटिव दल के लिए चुनाव प्रचार में भारत की भाजपा के बढ़ते प्रभाव ने ब्रिटिश भारतीयों के बीच लेबर के पारंपरिक समर्थन आधार को और भी कम कर दिया था।
वर्तमान लेबर पार्टी के नेता कीर स्ट्रामर ने भारत पर अपना रुख नरम कर लिया और कश्मीर पर अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप के लिए अपना आह्वान छोड़ दिया है। उन्होंने अपनी पार्टी के भीतर भारत विरोधी चरमपंथी विचारों पर लगाम लगा दिया। कीर स्ट्रामर ने पार्टी के घोषणापत्र में भारत के साथ "नई रणनीतिक साझेदारी" को आगे बढ़ाने की प्रतिबद्धता शामिल की। यह प्रतिबद्धता प्रौद्योगिकी, सुरक्षा, शिक्षा और जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न क्षेत्रों में द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने के उनके इरादे को उजागर करती है, जिसका उद्देश्य दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक भारत के साथ संबंधों को बढ़ाना है।
इसके आलावा कीर स्ट्रामर के नेतृत्व में लेबर पार्टी अपने 10 वादों, अपनी वामपंथी विचारधारा और श्रमिक वर्ग की परंपराओं से दूर चली गई है। वर्तमान इजराइल-हमास संघर्ष पर, उनकी पार्टी ने इजराइल का पक्ष लिया, जो फिर से एक उनकी नीतियों से हट कर था ।
भारत और इंग्लैंड के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए दो साल से अधिक समय तक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के लिए बातचीत हुई। प्रस्ताव में चिकित्सा उपकरणों, शराब, कपड़े और कारों जैसे सामानों की श्रृंखला पर आपसी टैरिफ छूट की परिकल्पना की गई है। अब, आशंका है की लेबर पार्टी की जीत इस वार्ता के समयसीमा को बदल सकती है और काफी कड़ा मोल भाव भी करे।
वीजा के मुद्दे पर विशेष रूप से सेवा कर्मचारियों और भारतीय छात्रों के लिए अस्थायी कार्य वीजा एक प्रमुख मुद्दा रहा है, यह भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौते से भी जुड़ा है । भारत को ब्रिटेन में उनकी अत्यधिक विकसित सूचना प्रौद्योगिकी और वित्तीय क्षेत्र में प्रवेश से लाभ होने वाला था, जिस पर अब लेबर पार्टी कड़ी रूख से बातचीत करेगी । भारत ने कार्बन टैक्स में ढील देने की मांग की है, जिसे अगर लागू किया जाता है तो FTA के लाभों का बड़ा हिस्सा खत्म हो जाएगा। इनके अलावा ब्रिटेन में रह रहे भारतीय भगोड़ों का प्रत्यर्पण, रक्षा में सहयोगिता और संयुक्त राष्ट्र में सिक्योरिटी कॉउन्सिल में भारत का दाखिला जैसे मुद्दों पर भी आपसी सम्बन्ध और वार्ता शामिल रहेगा |
अब जब ऋषि सुनक का कार्यकाल ख़त्म हो गया है, तो भारत सरकार को चाहिए ऋषि सुनक का यथोचित सम्मान दे कर विदेशों में रह रहे अन्य लोगो को भी इस तरह आकाशीय पद को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करें | इस चुनाव में, इन भारतीय मूल के मतदाताओं ने विडंबनापूर्ण तरीके से अपने ही मूल के ऋषि सुनक से पूछा था कि उन्होंने उनके लिए क्या किया।
स्ट्रामर में करिश्मे की कमी है और पार्टी के नेतृत्व करने के रूप में उन्हें जीत तो मिली है पर अभी भी उनके व्यक्तिगत रूप में एक सशक्त नेता की छवि को जनता की स्वीकृति कम मिली है, इसलिए उन पर लगातार दबाव बना रहने के साथ और नेतृत्व परिवर्तन की भी संभावना है।
(लेखक राजीव कुमार श्रीवास्तव रक्षा कमेंटेटर हैं)