भारत ने गेहूं के निर्यात पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया है। यह कदम देश में गेहूं की कीमतों में बढ़ोतरी पर नियंत्रण के लिए उठाया गया है। सरकार ने कहा है कि इस संबंध में अधिसूचना जारी होने से पहले जारी किए जा चुके लेटर ऑफ क्रेडिट के लिए गेहूं की शिपमेंट जारी रहेगी। बता दें कि इन दिनों बाजार में गेहूं एमएसपी से अधिक कीमत पर बिक रहा है।
बता दें कि गेहूं की सरकारी खरीद का जो अनुमान पहले लगाया गया था उससे 50 फ़ीसदी कम ख़रीद होने की आशंका है। खरीद कम होने का असर अभी से दिखने लगा है और खाद्य सुरक्षा के लिए पीडीएस के तहत कई राज्यों को दिए जाने वाले गेहूं की जगह अब चावल दिए जाएँगे।
सवाल यह है कि खाद्य सुरक्षा योजना के लिए भी गेहूं पूरा क्यों नहीं हो रहा? आख़िर सारा गेहूं गया कहाँ? एक सवाल यह भी खड़ा होता है कि क्या कुछ महीने बाद ही गेहूं के दाम आसमान पर होंगे और क्या खाद्य महंगाई भी बढ़ेगी? इसे देखते हुए ही सरकार ने निर्यात पर तुरंत प्रभाव से प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है।
सरकार ने हाल ही में मौजूदा रबी खरीद सीजन के लिए गेहूं खरीद अनुमान को घटाकर 19.5 मिलियन टन कर दिया है। यह पिछले 13 वर्षों में सबसे कम है। जबकि पहले गेहूं खरीद का अनुमान 44.4 मिलियन टन का लगाया गया था। इसमें कहा गया है कि गेहूं का उत्पादन लगभग 105 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो मूल अनुमान से लगभग 6% कम है।
तो सवाल है कि जब गेहूं का उत्पादन मामूली रूप से कम हुआ है तो सरकारी खरीद क़रीब आधी ही क्यों हो पाई?
यूक्रेन-रूस युद्ध
यूक्रेन-रूस युद्ध के कारण गेहूं के इन दोनों प्रमुख निर्यातकों से गेहूं की आपूर्ति गिरी है। यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है। गेहूं उत्पादन में रूस दुनिया में तीसरे स्थान पर है और यूक्रेन आठवें स्थान पर है। इससे दुनिया भर में गेहूं की मांग में तेजी पकड़ने के आसार हैं।