छह राज्यों ने यूजीसी रेगुलेशन 2025 के मसौदे को वापस लेने की मांग करते हुए इसका विरोध किया है। उन्होंने यूजीसी मसौदे के खिलाफ एक संयुक्त प्रस्ताव पास किया है। इस मसौदे में विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों और शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और पदोन्नति के लिए न्यूनतम योग्यता और उच्च शिक्षा के नियम बदल दिये गये हैं। राज्य यूनिवर्सिटीज में भी राज्य के अधिकार न के बराबर रह गये हैं। इस मुद्दे पर कई गैर बीजेपी शासित राज्यों में वहां के राज्यपालों और सरकार में टकराव रहा है और कुछ मामले सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंचे।
जिन राज्यों ने यूजीसी मसौदे का विरोध किया है, उनमें हिमाचल प्रदेश, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना और कर्नाटक है। बुधवार को बेंगलुरु में हुए राज्य उच्च शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन-2025 में इस संबंध में इन 6 राज्यों ने 15 सूत्री प्रस्ताव अपनाया है।
राज्यों ने कहा कि यूजीसी नियमों के मसौदे में राज्य अधिनियमों के तहत स्थापित सार्वजनिक विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकारों की कोई भूमिका नहीं होगी। इस तरह यह संघीय व्यवस्था में राज्य के वैध अधिकारों पर सीधा हमला है। प्रस्ताव में मांग की गई कि राज्य सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण भूमिका दी जानी चाहिए।
प्रस्ताव में कहा गया है कि नये प्रस्तावित नियम कुलपतियों के चयन के लिए बनने वाली सर्च कमेटी के गठन में राज्यों के अधिकारों को खत्म कर रहे हैं। यानी अगर किसी स्टेट यूनिवर्सिटी में वीसी नियुक्त किया जाना है या अन्य नियुक्तियां होनी हैं, उनमें वहां के राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं रहेगी। राज्यों ने कहा कि गैर-शैक्षणिकों को कुलपति नियुक्त करने से संबंधित प्रावधान को वापस लेने की जरूरत है। नये नियम में इस बात का प्रस्ताव है कि सर्च कमेटी चाहे तो शिक्षा क्षेत्र के बाहर भी वीसी नियुक्त कर सकती है।
6 विपक्षी राज्यों के प्रस्ताव में कहा गया है कि कुलपतियों की नियुक्ति के लिए योग्यता, कार्यकाल और योग्यता पर गंभीरता से फिर से विचार करने की जरूरत है क्योंकि नये प्रस्तावित नियम उच्च शिक्षा के स्टैंडर्ड पर उल्टा असर डालेंगे।
विपक्षी राज्यों के प्रस्ताव में कहा गया है कि सहायक प्रोफेसरों की नियुक्ति से संबंधित कई प्रावधानों पर गंभीरता से पुनर्विचार की जरूरत है। खासतौर से मुख्य विषय में बुनियादी डिग्री की जरूरत नहीं होने से संबंधित नियम आपत्तिजनक है। इस नियम को हटाया जाना चाहिए।
राज्यों का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट पर होने वाली नियुक्तियों, गेस्ट फैकल्टी/विजिटिंग फैकल्टी/प्रैक्टिस प्रोफेसर/एमेरिटस प्रोफेसर से संबंधित प्रावधानों पर अधिक पारदर्शिता की जरूरत है। इनके संबंध में नियम स्पष्ट होने चाहिए, घुमावदार न हों।
राज्यों ने कहा, नई शिक्षा नीति (एनईपी) में सभी यूजीसी प्रस्तावों को अनिवार्य बनाना और पालन न करने वाले राज्यों, संस्थाओं पर दंडात्मक उपाय करना वास्तव में तानाशाही है। यह संघीय ढांचे में राज्यों की स्वायत्तता की भावना के खिलाफ है।
6 विपक्षी राज्यों ने कहा कि सार्वजनिक विश्वविद्यालयों में इन्नोवेशन और अनुसंधान इको सिस्टम को बढ़ाने के लिए नियमों में अधिक जोर देने की जरूरत है। प्रस्ताव में कहा गया है कि मसौदा नियम और ग्रेडिंग पैरामीटर सरकारी/सार्वजनिक संस्थानों के वेलफेयर पहलू को नजरअंदाज करते हुए प्राइवेट संस्थानों को बढ़ावा देने के लिए तैयार किए गए हैं।
राज्यों ने कहा कि बुनियादी ग्रैजुएट पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा अनिवार्य बनाना समावेशी शिक्षा प्रदान करने में एक बड़ी बाधा है। प्रमोशन, द्विवार्षिक परीक्षाएं, फास्ट-ट्रैक डिग्री कार्यक्रम, दोहरी डिग्री आदि कार्यक्रम को लागू करने से पहले अधिक विचार-विमर्श और पारदर्शिता की जरूत है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूजीसी के नियमों को बनाने में राज्यों के साथ विचार किया जाना चाहिए।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)