इमरान की गिरफ्तारी सेना और सत्ता की मिलीभगत का नतीजा?

05:39 pm Aug 06, 2023 | राजीव कुमार श्रीवास्तव

पाकिस्तान आर्मी के लिए आने वाले महीने चुनौतीपूर्ण होंगे। एक तरफ़ सेना के अंदर इमरान खान के समर्थकों पर नियंत्रण रखना और दूसरी ओर आने वाले आम चुनाव में अपनी पसंद की पार्टी को जीत दिलाकर अपनी इज़्ज़त को कायम रखना है।

5 अगस्त को लाहौर में पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को पाकिस्तान ट्रायल कोर्ट द्वारा तीन साल की जेल की सजा सुनाये जाने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया। अदालत ने उन्हें अवैध रूप से सरकारी उपहार बेचने का दोषी पाया, जिसे तोशाखाना भ्रष्टाचार मामले के नाम से जाना जाता है। कोर्ट ने उन्हें पांच साल के लिए राजनीति से भी अयोग्य घोषित कर दिया। 

इमरान खान ने पहले आरोप लगाया था कि देश का सैन्य प्रतिष्ठान उन्हें देशद्रोह के आरोप में अगले 10 साल के लिए क़ैद करना चाहता है। अब उन्होंने आरोप लगाया है कि पाकिस्तान की सेना न्यायाधीश और जल्लाद दोनों की भूमिका निभा रही है। इमरान खान ने कहा था कि "लंदन योजना" में उनकी पत्नी बुशरा बेगम को भी जेल में डालकर उन्हें अपमानित करने का इरादा है। उनका इशारा लंदन में रह रहे नवाज़ शरीफ की तरफ है जो वहां कानून से बचने के लिए निष्कासन में रह रहे हैं।

इसी वर्ष 9 मई को इस्लामाबाद हाई कोर्ट के परिसर से इमरान खान को गिरफ्तार करने के बाद देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था। प्रदर्शनकारियों ने सार्वजनिक और सरकारी संपत्तियों में तोड़फोड़ की और रावलपिंडी में जनरल मुख्यालय और लाहौर कोर कमांडर के आवास पर भी हमला किया था। पाकिस्तान आर्मी ने सार्वजनिक किरकिरी होने के बाद सख्त क़दम उठाये और कई सैन्य अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाइयाँ भी कीं। पूरी घटना के पहले इमरान खान ने सेना के अधिकारियों की काबिलियत और भारत के खिलाफ लड़ने की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया था। पाकिस्तान आर्मी इस बेइज़्ज़ती से उबर नहीं पाई है।

राजनीति में कानून की दखलंदाज़ी अब विश्वव्यापी प्रचलन हो गया है। अमेरिका में पूर्व राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप हाल ही में तीसरी बार न्यायालय के सामने पेश हुए। यह मुक़दमा जनवरी 2020 में ट्रंप के चुनाव हारने के बाद कैपिटल हिल पर उनके समर्थकों द्वारा की गई तोड़फोड़ और हिंसा से जुड़ा है। कैपिटल हिल पर अमेरिकी सीनेट (यानी संसद) स्थित है। ट्रंप पर आरोप है कि उन्होंने अपने समर्थकों को तोड़फोड़ और हिंसा करने के लिए उसकाया था। इजराइल में नेतन्याहू द्वारा न्यायपालिका पर नियंत्रण की कोशिश का जनविरोध हो रहा है। हमारे देश में भी राहुल गाँधी सहित कई विपक्षी नेताओं को कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा है। बांग्लादेश में भी बीएनपी पार्टी के खिलाफ यही हो रहा है। कमोबेश यही स्थिति कई अन्य लोकतांत्रिक देशों में भी है। 

पाकिस्तान में नेशनल असेंबली यानी उनकी पार्लियामेंट के भंग करने के 90 दिनों के अंदर आम चुनाव होने हैं। पाक प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की घोषणा के अनुसार यह असेंबली 9 अगस्त 2023 को समय से पहले भंग होने वाली है। इसका मतलब है कि चुनाव 7 नवंबर 2023 से पहले होने चाहिए।

इस बार भी पाकिस्तान के चुनाव में दो बड़े घटक नज़र आ रहे थे। एक तरफ इमरान खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) है तो दूसरी तरफ मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) एवं बिलावल भुट्टो जरदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) का गठबंधन है। मई 2023 की घटना के बाद इमरान खान की पार्टी में टूट आई है जिसमें उनके कई बड़े नेताओं ने तहरीके इंसाफ से नाता तोड़ लिया है। ऐसे में इमरान खान क्या अपनी पार्टी को आने वाले चुनाव में जीत दिला पाएंगे, ख़ासकर तब जब न्यायालय ने उनके चुनाव लड़ने पर पांच साल के लिए रोक लगा दी है? इस सवाल का जवाब आने वाले दिनों में जनता के सड़क पर आने पर ही मिल सकेगा। 

भारत को अगले दो से तीन दिन तक पाकिस्तान के अंदरूनी हालत पर पैनी नज़र रखनी पड़ेगी। तभी जनता और विशेषकर पकिस्तानी सेना के अंदर इमरान खान के समर्थन का सही आकलन मिलेगा। इमरान खान ने अपनी गिरफ्तारी से बारह घंटे पूर्व अपने ट्वीट में कश्मीर से जुड़े अनुच्छेद 370 का उल्लेख कर अपनी रणनीति में भारत विरोधी होने का पूरा अहसास दिलाया है। इमरान ने कश्मीर पर अपने पुराने ट्वीट को शेयर करते हुए लिखा- “मैंने कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छीनने पर मोदी सरकार के गैरकानूनी एक्शन का हमेशा विरोध किया है। भारत ने न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन किया, बल्कि कश्मीर में युद्ध अपराध भी किए हैं।”

यह एक तरह से शाहबाज़ खान के भारत के साथ सम्बन्ध सुधारने वाले बयान का विऱोध तो है ही, साथ ही पाकिस्तान आर्मी के अंदर अपने समर्थक लोगों को भड़काने के लिए एक मैसेज भी है।

अब आने वाले महीनों में जब पाकिस्तानी आर्मी के ऊपर से एक चुनी हुई सरकार का नियंत्रण हट जाएगा (पाकिस्तान में चुनाव अंतरिम सरकार के तहत होते हैं) और उसे अपनी सैनिक नीतियों को दिशा देने की पूरी छूट होगी, उस समय पता चलेगा कि वह आतंकवादियों की भारत में घुसपैठ में तेज़ी लाती है या उन्हें नियंत्रण में रखती है।

पाकिस्तान आर्मी के लिए आने वाले महीने चुनौतीपूर्ण होंगे। उसके लिए एक चुनौती सेना के अंदर इमरान ख़ान के समर्थकों को काबू में रखना है तो दूसरी चुनौती आम चुनाव में अपने पसंद की पार्टी को जीत दिला कर अपनी इज़्ज़त को कायम रखना है। आने वाले दिनों में कश्मीर में आतंकवादियों की बढ़ती या घटती गतिविधियाँ भी एक संकेत देंगी। ज़रूरत है सजग रहने की ताकि मुंबई और पुलवामा जैसी और घटनाएँ न हों।