हाल ही में हुए उपचुनाव में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी को मिली बड़ी हार का असर दिखने लगा है। एक ओर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को बदलने की चर्चा ने जोर पकड़ा है तो दूसरी ओर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ही पार्टी नेताओं के निशाने पर हैं। ऐसी ख़बरें हैं कि बीजेपी की राज्य इकाई के कुछ नेता नड्डा से बेहद नाराज़ हैं।
नड्डा इसी राज्य से आते हैं। इसलिए भी यहां के नतीजों पर राजनीतिक विश्लेषकों की नज़रें लगी हुई थीं।
मिली बड़ी हार
2019 के लोकसभा चुनाव में मंडी की जिस लोकसभा सीट को बीजेपी ने 4 लाख से ज़्यादा वोटों से जीता था, वहां भी उसे शिकस्त मिली थी। तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे भी पार्टी के ख़िलाफ़ गए थे।
राज्य में अगले साल दिसंबर में चुनाव होने हैं और उससे पहले इन उपचुनावों को सेमीफ़ाइनल माना जा रहा था। लेकिन पार्टी सेमीफ़ाइनल में औंधे मुंह गिरी है।
हाईकमान ने किया नज़रअंदाज
हार के बाद से ही पार्टी में तमाम तरह की खुसुर-पुसुर का दौर शुरू हो गया था। स्थानीय नेताओं का कहना है कि टिकट वितरण को लेकर हाईकमान ने ख़ुद ही फ़ैसला कर लिया और राय मशविरा तक करना ज़रूरी नहीं समझा। इसके अलावा भितरघात को भी हार की एक वजह बताया गया है।
मिसाल के तौर पर जुब्बल-कोटखाई सीट पर बाग़ी उम्मीदवार चेतन बरागटा दूसरे नंबर पर रहे और पार्टी की उम्मीदवार नीलम सरैइक अपनी जमानत भी नहीं बचा सकीं। यह सीट विधायक नरिंदर बरागटा के निधन से खाली हुई थी और चेतन बरागटा उनके बेटे हैं। हालांकि पार्टी का कहना है कि उसने वशंवादी राजनीति पर रोक लगाने के लिए यहां चेतन बरागटा को टिकट नहीं दिया।
राज्य सरकार के एक मंत्री ने ‘द प्रिंट’ को नाम जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि राज्य इकाई ने इस सीट पर चेतन बरागटा का नाम भेजा था। उन्होंने कहा कि यहां एक कमजोर उम्मीदवार को टिकट दे दिया गया और पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
सिफ़ारिश पर दिया टिकट
हिमाचल बीजेपी के एक उपाध्यक्ष ने भी नाम गुप्त रखने की शर्त पर ‘द प्रिंट’ को बताया कि अर्की सीट पर कांग्रेस में बग़ावत होने के बाद भी बीजेपी इस सीट को नहीं जीत सकी तो इसके पीछे वजह सिफ़ारिश के आधार पर टिकट देना रहा। उन्होंने कहा कि बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे की सिफ़ारिश पर रतनपाल सिंह को टिकट दे दिया गया जबकि वह पिछले चुनाव में भी हार गए थे। उन्होंने कहा कि मंगल पांडे उस वक़्त हिमाचल के प्रभारी थे और वह जेपी नड्डा के नज़दीकी भी हैं, इसलिए टिकट उनकी मर्जी से दिया गया जबकि यहां दो बार के विधायक गोविंद राम शर्मा मज़बूत उम्मीदवार थे।
जयराम ठाकुर।
जयराम ठाकुर पर आरोप
एक अन्य नेता ने ‘द प्रिंट’ से कहा कि फतेहपुर सीट पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हाईकमान को पूरी तरह गुमराह किया। यहां कृपाल परमार को टिकट दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
वोट फ़ीसद गिरा
हिमाचल बीजेपी में इस बात को लेकर भी चिंता है कि उसका वोट फ़ीसद भी गिर गया है। 2017 में उसे फतेहपुर सीट पर 49 फ़ीसदी वोट मिले थे जो इस बार गिरकर 32 फ़ीसदी हो गए। जुब्बल कोटखाई में पार्टी को सिर्फ़ 4 फ़ीसद वोट मिले जबकि 2017 में यह आंकड़ा 49 फ़ीसदी था।
इसी तरह मंडी लोकसभा सीट पर 2019 में उसे 69.7 फ़ीसदी वोट मिले थे जो इस बार घटकर 48 फ़ीसदी रह गए।
धूमल-नड्डा के खेमे
राज्य में पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल का भी असरदार गुट है। धूमल और जेपी नड्डा के खेमों में सियासी अदावत होने की बात हिमाचल बीजेपी में कही जाती रही है। धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर मोदी कैबिनेट में मंत्री हैं और उन्हें हिमाचल में मुख्यमंत्री पद के बड़े दावेदार के रूप में देखा जाता है।
यह भी कहा जा रहा है कि जुब्बल-कोटखाई सीट पर चेतन बरागटा को टिकट इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि वह धूमल और अनुराग ठाकुर के नज़दीकी हैं।
राज्य इकाई में गुटबाज़ी
चुनाव नतीजे आने के बाद गुटबाज़ी की ओर ख़ुद जयराम ठाकुर ने भी इशारा किया था। नतीजों के बाद जयराम ठाकुर गुट का कहना था कि पार्टी के बाक़ी नेता प्रचार में नहीं आए जबकि दूसरे गुट का कहना था कि केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को प्रचार से दूर रखा गया।
2010 में जब धूमल राज्य के मुख्यमंत्री थे तब उनके अनुरोध पर तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने नड्डा को केंद्रीय राजनीति में बुला लिया था। इसके बाद धूमल का राज्य में एकछत्र शासन हो गया था लेकिन बीते कुछ सालों में नड्डा का क़द तेज़ी से बढ़ा और 2017 में मुख्यमंत्री पद के चयन में धूमल के बजाय नड्डा की ही चली।
नड्डा के क़रीबी हैं ठाकुर
जयराम ठाकुर को नड्डा का क़रीबी माना जाता है और क्या वे अगले चुनाव तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे, यह देखने वाली बात होगी। उपचुनाव में मिली करारी हार के बाद जयराम ठाकुर को बदलने की चर्चाएं तेज़ हुई हैं लेकिन माना जाता है कि नड्डा उन्हें बचाए रखने की पूरी कोशिश करेंगे।
इस घमासान के कारण पार्टी को नुक़सान हुआ है और निश्चित रूप से यह अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में उसे भारी पड़ सकता है।