दुष्कर्म का दोषी डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम सिंह फिर से जेल से बाहर आएगा। उसको फिर से 50 दिन की पैरोल मिली है। दो महीने पहले ही उसको 21 दिन की पैरोल मिली थी। पिछले 24 महीनों में राम रहीम सिंह की यह सातवीं और पिछले चार वर्षों में नौवीं पैरोल है।
राम रहीम दो महिलाओं से बलात्कार के आरोप में 20 साल की जेल की सजा काट रहा है। हरियाणा के रोहतक जिले की सुनारिया जेल में सलाखों में बंद राम रहीम सिंह पिछले साल सिर्फ़ तीन मौकों पर ही पैरोल में 91 दिन जेल से बाहर रहा था। पूर्व डेरा प्रमुख शाह सतनाम सिंह की जयंती में शामिल होने के लिए उसे नवंबर में 21 दिन, जुलाई में 30 दिन और 21 जनवरी से 40 दिन के लिए रिहा किया गया था।
राम रहीम को 2017 में दो शिष्याओं के साथ बलात्कार के आरोप में 20 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और बाद में 2002 में पत्रकार राम चंदर छत्रपति और डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्याओं सहित दो हत्या के मामलों में आजीवन कारावास की सजा मिली थी।
राम रहीम को 2021 में डेरा प्रबंधक रणजीत सिंह की हत्या की साजिश रचने का भी दोषी ठहराया गया था। डेरा प्रमुख और तीन अन्य को 16 साल से अधिक पहले एक पत्रकार की हत्या के लिए 2019 में दोषी ठहराया गया था।
हरियाणा अच्छे आचरण कैदी (अस्थायी रिहाई) अधिनियम, 2022 के अनुसार, दोषी कैदियों को नियमित पैरोल दी जा सकती है। हालाँकि, कई हत्याओं या गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत दोषी ठहराए गए कैदी पैरोल के लिए पात्र नहीं हैं।
दो महीने की अल्प अवधि में ही उसे दूसरी पैरोल बड़ी आसानी से मिल गई। 2022 में गुरमीत राम रहीम सिंह पूरे 91 दिन पैरोल पर बाहर रहा था। चौतरफा सवाल किया जा रहा है कि आखिर हरियाणा की भारतीय जनता पार्टी सरकार संगीन मामलों में सजायाफ्ता हुए डेरेदार गुरमीत राम रहीम सिंह पर आखिर क्यों इतनी 'मेहरबान' है?
संगीन मामलों के दोषी तथा सख्त सजा काट रहे किसी शख्स को इतनी ज्यादा बार और इतनी कम अवधि में पैरोल पर रिहाई मिल रही है, जबकि आम आदमी को हफ्ते की पैरोल पर बाहर आने की कवायद में महीनों लग जाते हैं और पैरोल की अवधि भी बहुत सीमित होती है।
पैरोल के लिए अपने वकीलों के जरिए वजह बताना अपरिहार्य है और इसके लिए अनिवार्य तौर पर जेल अधीक्षक की संस्तुति चाहिए होती है और उसके बाद डिप्टी कमिश्नर या कमिश्नर अपने तौर पर पैरोल पर फैसला लेते हैं। उसके लिए कुछ शर्तें रखी जाती हैं। पैरोल के नियम काफी सख्त हैं।
हरियाणा और पंजाब में भी महाराष्ट्र प्रिजन मैनुअल के तहत साल भर में किसी कैदी को 90 दिन की पैरोल पर रिहा किया जा सकता है और कानूनन यह भी जरूरी है कि कैदी इससे पहले तीन साल की सजा पूरी कर चुका हो और जेल में उसका व्यवहार अच्छा हो। मैनुअल के अनुसार जिला या मंडल प्रशासन को संवैधानिक अधिकार होता है कि वह जेल सुपरिंटेंडेंट की सिफारिश पर कैदी को पैरोल या फरलो (जेल से छुट्टी) के लिए सिफारिश के आधार पर पैरोल या फरलो दे सकता है।