हरियाणा: आजतक एग्जिट पोल में बीजेपी की हालत पतली! क्यों?

12:29 pm Oct 23, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव में यह माना जा रहा था कि बीजेपी आसानी से इस दंगल को जीत लेगी। मतदान से पहले आये कुछ ओपिनियन पोल और बाद में आये एग्जिट पोल ने भी इसी ओर इशारा किया। इससे बीजेपी के नेता बल्लियों उछल रहे थे लेकिन आज तक-एक्सिस माई इंडिया के एग्जिट पोल ने पार्टी के नेताओं की नींद उड़ा दी है। 

आज तक-एक्सिस माइ इंडिया के एग्ज़िट पोल के मुताबिक़, हरियाणा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा है और राज्य में त्रिशंकु विधानसभा बनती दिख रही है। एग्ज़िट पोल के मुताबिक़, बीजेपी को राज्य में 32 से 44 सीटें, कांग्रेस को 30 से 42 सीटें और जननायक जनता पार्टी यानी जेजेपी को 6 से 10 सीटें मिल सकती हैं, जबकि अन्य के खाते में 6 से 10 सीटें जा सकती हैं।   

जब से आज तक-एक्सिस माइ इंडिया का एग्ज़िट पोल सामने आया है, राजनीतिक विश्लेषक हैरान हैं। हैरान होना स्वाभाविक भी है क्योंकि 5 महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में हरियाणा की सभी 10 लोकसभा सीटों पर बीजेपी को बड़ी जीत मिली थी। और लोकसभा चुनाव के परिणामों को विधानसभा सीटों के लिहाज से देखा जाये तो बीजेपी हरियाणा की 90 में से 79 सीटों पर आगे रही थी। 

5 महीने में घटे 25% वोट

2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हरियाणा में 33.2% वोट हासिल हुए थे, वहीं इस बार लोकसभा चुनाव में यह आंकड़ा बढ़कर 58% हो गया था। लेकिन आज तक-एक्सिस माइ इंडिया का एग्ज़िट पोल बताता है कि बीजेपी को इस बार 33% वोट मिल सकते हैं। इसका सीधा मतलब है कि 5 महीने में बीजेपी के 25% वोट कम हुए हैं। एग्ज़िट पोल में कांग्रेस को 32, जेजेपी को 14 और अन्य के खाते में 21 फीसदी वोट जाते दिख रहे हैं।  

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के चलते ही बीजेपी राज्य में पहली बार अपने बूते पर सरकार बना सकी थी। 2009 में उसे जहां 4 सीटों पर जीत मिली थी, वहीं 2014 में यह आंकड़ा 47 सीटों तक पहुंच गया था, इसे मोदी लहर का ही करिश्मा माना गया था। इस बार के लोकसभा चुनाव के परिणाम भी स्पष्ट रूप से कहते हैं कि राज्य की जनता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर बीजेपी को हरियाणा में वोट दिया था। लेकिन पोल बताता है कि खट्टर सरकार के पाँच साल के कार्यकाल से जनता ख़ुश नहीं है।

क़ानून व्यवस्था पर उठे सवाल 

खट्टर के पास मुख्यमंत्री बनने से पहले कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं था और यह बात उनके पांच साल के कार्यकाल में कई बार साबित हुई। 2014 में संत रामपाल की गिरफ़्तारी के दौरान हुई हिंसा हो या 2016 में जाट आरक्षण के दौरान हुई भीषण आगजनी और लूटपाट, दोनों ही मामलों मे दंगाइयों से निपटने में खट्टर सरकार पूरी तरह विफल रही। इसके बाद 2017 में डेरा सच्चा सौदा के भक्तों ने भी बड़े पैमाने पर हिंसा की और क़ानून व्यवस्था को लेकर राज्य सरकार पर सवाल उठे। 

जींद में छात्रा से बलात्कार या फिर फरीदाबाद में कांग्रेस प्रवक्ता विकास चौधरी की दिन-दहाड़े गोलियां बरसाकर हत्या करने का मामला हो, खट्टर सरकार क़ानून-व्यवस्था के मोर्चे पर लगातार निशाने पर रही।

दलित, जाट और मुसलमान कांग्रेस के साथ! 

आज तक-एक्सिस माई इंडिया का एग्जिट पोल कहता है कि राज्य में दलित, जाट और मुसलमान तबक़े ने कांग्रेस पर भरोसा जताया है। हरियाणा की आबादी में 25% जाट, 20% दलित और 7% मुसलिम मतदाता हैं और यह 50% से ज़्यादा हैं। हरियाणा में 50 सीटें ऐसी हैं, जहां जाट, दलित और मुसलिम मतदाता हार-जीत तय करने की कूवत रखते हैं। 

एग्जिट पोल बताता है कि राज्य में कांग्रेस को 36% जाटों ने, 37% दलितों ने और 63%मुसलमानों का वोट मिला है। इसके अलावा जाट, दलितों और मुसलमानों के वोट का एक बड़ा हिस्सा जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) और कुछ अन्य दल भी हासिल करने में सफल रही है। जैसे 24% दलित मतदाताओं ने इन दलों को नकारकर अन्य को वोट दिया है तो 15% जाट और 17% मुसलिम मतदाताओं ने भी अन्य उम्मीदवारों का समर्थन किया है। इसका मतलब यह है कि इन तीनों ही तबक़ों ने बीजेपी के पक्ष में बहुत कम वोट डाले हैं या कह सकते हैं कि ख़िलाफ़ में मतदान किया है। ऐसे में यह एग्जिट पोल बताता है कि इन तीनों ही तबक़ों में खट्टर सरकार के ख़िलाफ़ नाराजगी है और उन्होंने मतदान के दौरान इसका इजहार भी किया है। 

एग्जिट पोल में अन्य को 6-10 सीटें मिलने और 21% वोट मिलने का अनुमान जताया गया है। कहा जा सकता है कि बीजेपी के पूर्व सांसद और अपनी पार्टी बनाकर चुनाव लड़ने वाले राजकुमार सैनी ने भी बीजेपी को मिलने वाले वोटों के बड़े हिस्से में सेंधमारी की होगी। इसके अलावा कभी राज्य में मजबूत ताक़त रही इंडियन नेशनल लोकदल, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के भी कुछ वोट बटोरने का अनुमान है। 

जाटों ने रणनीति के तहत दिये वोट 

बताया जाता है कि जाट समुदाय ने इस बार बहुत सोच-समझकर वोटिंग की है। जिन सीटों पर कांग्रेस का जाट उम्मीदवार मजबूत है, वहां पर इस समुदाय के लोगों ने उसे भरपूर वोट दिये हैं और जहां पर जेजेपी का प्रत्याशी मजबूत है, वहां पर जेजेपी के पक्ष में वोट डाले हैं। लेकिन पूरी कोशिश यह है कि जाट वोट बंटने न पायें क्योंकि ऐसा होने पर इसका सीधा सियासी फ़ायदा बीजेपी को मिलता। 

बीजेपी ने अपना पूरा चुनाव प्रचार जहां जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने पर केंद्रित रखा वहीं भूपेंद्र सिंह हुड्डा और जेजेपी नेता दुष्यंत चौटाला ने किसानों की परेशानी, जाट समुदाय की सरकार से नाराजगी, बेरोज़गारी, क़ानून व्यवस्था, महिलाओं के साथ बढ़ते अपराध, घटते निवेश को मुद्दा बनाये रखा। बहरहाल, हरियाणा की जनता ने किसे चुना है और क्या खट्टर सरकार को खारिज किया है, इसका सही पता तो 24 अक्टूबर को चुनाव नतीजे आने पर ही चलेगा लेकिन अगर एग्जिट पोल के आंकड़े सही साबित होते हैं तो यह माना जाना चाहिए कि जनता खट्टर सरकार के कामकाज से नाराज है।