2014 के विधानसभा चुनाव से पहले किसी ने दूर-दूर तक नहीं सोचा था कि हरियाणा में बीजेपी अपने दम पर सरकार बना सकती है। लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में चली प्रचंड मोदी लहर का फ़ायदा बीजेपी को उसी साल हुए विधानसभा चुनाव में भी मिला। 2009 के विधानसभा चुनाव में 4 सीट जीतने वाली बीजेपी 2014 में सीधे 47 सीटों के आंकड़े पर पहुंच गई। हरियाणा में इस बार 21 अक्टूबर को मतदान होगा और 24 अक्टूबर को नतीजे आयेंगे। बीजेपी की हरियाणा में क्या सियासी हैसियत थी और वह राज्य में कैसे आगे बढ़ी, इसे जानने के लिए थोड़ा पीछे चलते हैं।
कई साल तक बीजेपी हरियाणा में ओमप्रकाश चौटाला की पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) और पूर्व मुख्यमंत्री बंसीलाल की पार्टी हरियाणा विकास पार्टी की सहयोगी पार्टी हुआ करती थी। 2005 के विधानसभा चुनाव में उसे 2 सीटें और 2009 में सिर्फ़ 4 सीटें मिली थीं। 2009 के विधानसभा चुनाव में उसे 9.1% वोट हासिल हुए थे जबकि 2014 में उसका वोट बैंक तिगुने से ज़्यादा हो गया था और उसे 33.2% वोट हासिल हुए थे।
नॉन जाट वोटरों का मिला समर्थन
2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली जीत में मोदी लहर के अलावा नॉन जाट वोटरों का उसे समर्थन मिलना माना जाता है। हरियाणा में जाट बनाम नॉन जाट की राजनीति काफ़ी हद तक सत्ता का रास्ता तैयार करती है। सीएसडीएस के आंकड़ों के मुताबिक़, जाटों के प्रभाव वाले पश्चिमी हरियाणा में तब बीजेपी को 26 में सिर्फ़ 7 सीटों पर जीत मिली थी और अधिकतर जाट वोटरों ने इनेलो को समर्थन दिया था और तब इनेलो को 42% जाट मतदाताओं का समर्थन मिला था और इस समुदाय का समर्थन पाने वालों में बीजेपी तीसरे नंबर पर थी।
2016 में हरियाणा में जाट आरक्षण को लेकर हुई हिंसा ने जाट बनाम नॉन जाट की राजनीति को और तेज कर दिया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इससे बीजेपी को सियासी फ़ायदा मिला और 2019 के लोकसभा चुनाव में उसे 52% जाट मतदाताओं का समर्थन मिला।
चौटाला परिवार में फूट
2014 के विधानसभा चुनाव में इनेलो दूसरे नंबर पर रही थी और उसे 19 सीटें मिली थीं। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले ओमप्रकाश चौटाला ने अपने बेटे अजय चौटाला और उनके दो बेटों दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला को पार्टी से बाहर कर दिया था। दुष्यंत और दिग्विजय का अपने चाचा अभय सिंह चौटाला से सियासी टकराव बढ़ रहा था और कई मौक़ों पर यह सामने भी आया। इसका नतीजा उनकी पार्टी से विदाई के रूप में हुआ। लेकिन दुष्यंत और दिग्विजय ने अपनी पार्टी बना ली और इसका नाम रखा जननायक जनता पार्टी (जेजेपी)।
जेजेपी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन कर ताल ठोकी। इस चुनाव में जेजेपी ने अपने दम पर 4.9% वोट हासिल किये जबकि इनेलो को कुल 1.9% वोट मिले। इनेलो परिवार में हुई इस टूट का जबरदस्त फायदा बीजेपी को मिला।
24% बढ़ा वोट शेयर, लोग हैरान
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी का वोट शेयर पिछले विधानसभा चुनाव के मुक़ाबले 24% तक बढ़ गया और उसे 58% वोट मिले। बीजेपी को मिले वोटों को देखकर सियासी जानकार और आम लोग भी हैरान थे क्योंकि इतनी बड़ी जीत का अंदाजा किसी को भी नहीं था। पार्टी को लोकसभा की सभी 10 सीटों पर जीत मिली और रोहतक सीट को छोड़कर बाक़ी सीटों पर उसे बंपर वोटों से जीत मिली थी। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में उसे 7 सीटों पर जीत मिली थी। इस जीत में इनेलो में हुए दो-फाड़ और कांग्रेस के अंदरुनी घमासान का उसे बहुत फ़ायदा मिला। विधानसभा सीटों के लिहाज से देखें तो बीजेपी राज्य की 90 में से 79 सीटों पर आगे रही थी और इसलिए उसने इस बार 'मिशन 75 प्लस' का नारा दिया है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 28.42% वोट लेकर दूसरे नंबर पर रही थी लेकिन उसे एक भी सीट नहीं मिली थी। यहां तक कि उसके पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा जाट वोटरों वाली सीट सोनीपत से चुनाव हार गए थे। इसके अलावा तब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहे अशोक तंवर सिरसा सीट से 3 लाख से ज़्यादा वोटों से चुनाव हार गए थे।
हुड्डा-तंवर में टकराव
लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद कांग्रेस में घमासान बढ़ गया और भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने उनकी शर्त न माने जाने पर पार्टी छोड़ने की चेतावनी दे दी। हुड्डा की मांगों के आगे झुकते हुए पार्टी आलाकमान ने अशोक तंवर को अध्यक्ष पद से हटा दिया। लेकिन तंवर ने विधानसभा चुनाव में टिकटों के बंटवारे में धांधली का आरोप लगाते हुए पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया।
लोकसभा चुनाव 2019 में बीजेपी और कांग्रेस के वोट शेयर में 30 फ़ीसदी का अंतर था और पार्टी में इतने जबरदस्त घमासान के बाद क्या कांग्रेस इतने बड़े अंतर को पाटने में कामयाब हो पायेगी?
हरियाणा में पिछले दो दशक के लोकसभा और विधानसभा चुनाव नतीजों के विश्लेषण के मुताबिक, जिस दल ने लोकसभा चुनाव में सबसे अच्छा प्रदर्शन किया, उस दल को विधानसभा चुनाव में भी फायदा हुआ है।
हरियाणा ऐसा राज्य है जहां से बड़ी संख्या में जवान सीमा पर तैनात हैं और बीजेपी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने को एक बड़ी उपलब्धि के रूप में पेश किया है जबकि कांग्रेस के नेताओं का इस मुद्दे पर स्टैंड अलग-अलग रहा है। अनुच्छेद 370 को हटाने को बीजेपी ने राष्ट्रवाद से जोड़ा है और ऐसा लगता है कि अर्थव्यवस्था की ख़राब हालत, गिरती जीडीपी और ख़त्म होते रोज़गार को विपक्ष मुद्दा नहीं बना पाया है। इसलिए बिखरा हुआ विपक्ष और 2019 के लोकसभा चुनाव के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं कि बीजेपी को इस विधानसभा चुनाव में बड़ी सियासी जीत मिल सकती है।