केंद्रीय गृह मंत्रालय ने किसानों के विरोध प्रदर्शन को रोकने के लिए फरवरी में शंभू और खनौरी बॉर्डर पर तैनात पुलिसकर्मियों को वीरता पदक (जीएम) पुरस्कार देने की हरियाणा सरकार की सिफारिश को मंजूरी नहीं दी। वीरता पुरस्कार या पुलिस मेडल की घोषणा हर साल केंद्रीय गृह मंत्रालय स्वतंत्रता दिवस के मौके पर करता है। लेकिन ये पुरस्कार उन्हीं पुलिस अधिकारियों को मिलता है, जिनकी सिफारिश राज्यों से आती है।
हरियाणा से आईजीपी सिबाश कबिराज, एसपी जशनदीप सिंह रंधावा, डीसीपी नरेंद्र सिंह और डीएसपी राम कुमार को 13 फरवरी को शंभू बॉर्डर पर कथित बहादुरी दिखाने के लिए सिफारिश की गई थी। इसी तरह खनौरी बॉर्डर पर एसपी सुमित कुमार और डीएसपी अमित भाटिया को 13 फरवरी और 14 फरवरी को कथित बहादुरी दिखाने के लिए पुलिस मेडल की सिफारिश की गई थी। जीन्द जिले का खनौरी बॉर्डर पंजाब से लगा हुआ है।
फरवरी में किसान यूनियनों ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली तक मार्च करने का फैसला किया था। हालाँकि, हरियाणा पुलिस के जवानों ने उन्हें पंजाब के साथ शंभू (अंबाला) और खनौरी (जींद) सीमा पर रोक दिया था। संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा 'दिल्ली चलो' आंदोलन का नेतृत्व कर रहे थे।
हरियाणा सरकार की सिफारिश के बाद, केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने हरियाणा के गृह विभाग से इनके बारे में पूरी जानकारी मांगी। जिसमें पुलिस अफसरों का फायरिंग विवरण, मामले को निपटाने का तरीका आदि पूछा गया था। आंदोलनकारियों के खिलाफ आपराधिक मामलों का विवरण भी 8 जुलाई तक मांगा गया था। सूत्रों ने बताया कि उसके बाद, हरियाणा सरकार ने एमएचए को कोई स्पष्टीकरण नहीं भेजा।
इस घटनाक्रम के बाद गृह मंत्रालय ने अपने प्रस्ताव में हरियाणा के दावे पर भी सवाल उठाया कि किसानों को रोकने के लिए सिर्फ हरियाणा पुलिस ही नहीं, बल्कि रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल ( बीएसएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी), और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) भी शामिल था।
यहां यह बताना जरूरी है कि शंभू बॉर्डर पर एक किसान शुभकरण सिंह की मौत हरियाणा पुलिस द्वारा चलाई गई पैलेट गन से चलाई गई रबर की गोलियों से हुई थी। कई किसान घायल हो गए थे। लेकिन हरियाणा पुलिस ने आंदोलनकारी किसानों पर पैलेट गन या रबर की गोली चलाने से साफ इनकार किया था। हरियाणा सरकार को डर था कि अगर वो पुलिस अफसरों के बारे में ऐसी सूचनाएं देगी तो पुरस्कार की घोषणा के समय सार्वजनिक हो जाएंगी और उसका रबर की गोलियां न चलाने का दावा भी झूठा पड़ जाएगा।
इससे पहले, 'लॉयर्स फॉर ह्यूमैनिटी' ने हरियाणा के छह पुलिसकर्मियों को वीरता पुरस्कार देने की हरियाणा सरकार की सिफारिश को चुनौती देते हुए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया था। केंद्र ने जब हाईकोर्ट को बताया कि हरियाणा की सिफारिश को "आगे की राय प्राप्त करने के लिए वापस भेजा गया है", तो याचिकाकर्ताओं ने 9 अगस्त को याचिका वापस ले ली।
शंभू बॉर्डर पर 13 फरवरी को क्या हुआ था
13 फरवरी को, पंजाब के किसान शंभू और खनौरी बॉर्डर पर हरियाणा पुलिस के साथ भिड़ गए थे, उन्हें आंसू गैस और पानी की बौछारों का सामना करना पड़ा था क्योंकि उन्होंने दिल्ली की ओर मार्च करने से रोकने वाले बैरिकेड्स को तोड़ने का प्रयास किया था। अधिकारियों ने दावा किया था कि प्रदर्शनकारियों ने पथराव किया, जबकि किसानों ने उन पर पैलेट गन से रबर की गोलियां चलाए जाने की शिकायत की। शंभू बॉर्डर पर, प्रदर्शनकारियों ने सीमेंट बाधाओं को हटाने की कोशिश करने के लिए ट्रैक्टरों का इस्तेमाल किया। कुछ लोग सड़क अवरोध से बचने के लिए राजमार्ग से सटे खेतों में तितर-बितर हो गए थे। शंभू बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों पर एक ड्रोन को गोले गिराते हुए भी देखा गया। पुलिस अधिकारियों और किसानों दोनों के घायल होने की सूचना उस समय आई थी। बाद में एक किसान शुभकरण की पटियाला अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। उसकी पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया था कि गोलियां उसके सिर में लगी थीं, ज्यादा खून बहने के कारण उसकी मौत हुई थी।
इस चूक को हरियाणा सरकार के लिए एक झटके के रूप में देखा जा रहा है, जो प्रदर्शनकारी किसानों के खिलाफ बल के विवादास्पद इस्तेमाल के बावजूद पुरस्कारों के लिए पुलिस अधिकारियों को नामित करने के लिए आलोचना का शिकार हुई थी। जुलाई में, पंजाब विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवान ने पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर छह पुलिस अधिकारियों के लिए वीरता पदक की सिफारिश करने के हरियाणा सरकार के फैसले पर आपत्ति जताई, जिसमें 'दिल्ली चलो' आंदोलन के दौरान "किसानों को दिल्ली तक मार्च करने से रोकने" में उनकी भूमिका का हवाला दिया गया था।