गृह मंत्रालय (एमएचए) ने फरवरी में शंभू (अंबाला) और खनौरी (जींद) सीमाओं पर किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोकने में शामिल सभी पुलिस अधिकारियों के फायरिंग विवरण पर हरियाणा सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। ये वो पुलिस अधिकारी हैं, जिनकी वीरता के लिए मेडल की सिफारिश की गई है। पूछा गया है कि इन आईपीएस और एचपीसएस अफसरों ने कितनी गोलियां चलाईं।
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गृह मंत्रालय की पूछताछ से हरियाणा सरकार मुश्किल में है क्योंकि उसने कभी भी आधिकारिक तौर पर यह नहीं कहा है कि उसके बलों ने प्रदर्शनकारी किसानों पर गोलियां चलाईं। राज्य सरकार ने हमेशा कहा कि उसके बलों ने प्रदर्शनकारियों पर सिर्फ आंसू गैस के गोले और रबर छर्रों का इस्तेमाल किया है।
किसान यूनियनों ने फरवरी 2024 में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के लिए कानूनी गारंटी की मांग को लेकर दिल्ली तक मार्च करने का फैसला किया था। हालांकि, हरियाणा पुलिस ने उन्हें पंजाब से लगती शंभू और खनौरी सीमा पर रोक दिया। किसान आंदोलन का आह्वान संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने किया था।
हरियाणा के गृह सचिव को 15 जुलाई को लिखे एक पत्र में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने कहा कि रैपिड एक्शन फोर्स, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी और सशस्त्र सीमा बल के जवान भी उस कार्रवाई में शामिल थे। लेकिन उनके लिए मेडल की कोई सिफारिश नहीं की गई। इसमें सुरक्षा बलों के "संयुक्त संचालन" का जिक्र नहीं है।
हरियाणा के डीजीपी ने जिन नामों की सिफारिश की है, उनमें आईजीपी सिबाश कबिराज, एसपी जशनदीप सिंह रंधावा, डीसीपी नरेंद्र सिंह और डीएसपी राम कुमार 13 फरवरी को शंभू बॉर्डर तैनात थे। इसी तरह एसपी सुमित कुमार और डीएसपी अमित भाटिया 13 फरवरी और 14 फरवरी को जींद में खनौरी बॉर्डर पर तैनात थे। विरोध प्रदर्शन के आसपास इन पुलिस अधिकारियों को तैनात किया गया था। कुल मिलाकर 6 पुलिस अधिकारियों के लिए मेडल की सिफारिश की गई है।
केद्रीय गृह मंत्रालय के अवर सचिव डीके घोष ने इन पुलिस अधिकारियों के बारे में सारा विवरण मांगा है। जिसमें पूछा गया है कि एक ही प्रस्ताव संयुक्त रूप से भेजा जाए, जिन नामों की सिफारिश की गई है, उन्होंने कितनी गोलियां चलाईं, इसका भी विवरण दिया जाए। संयुक्त अभियान की सही सूचना और आंदोलनकारियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की स्थिति क्या है, इसके बारे में बताया जाए। भविष्य में समान कार्रवाई के लिए दो या दो से अधिक नामों की सिफारिश को शामिल करते हुए सिंगल प्रस्ताव पेश किया जाए।
किसान आंदोलन के दौरान किसान संगठनों ने हरियाणा पुलिस पर अत्याचार का आरोप लगाया था। किसान नेताओं का कहना है कि हरियाणा पुलिस ने किसानों पर पैलेट गन से गोलियां चलाईं। इनमें एक युवा किसान शुभकरण सिंह के सिर में गोली लगी थी। जिनकी इलाज के दौरान मौत हो गई। यहां बताना जरूरी है कि पैलेट गन की सप्लाई इजराइल करता है। इजराइल ने सबसे पहले फिलिस्तीनियों के खिलाफ पैलेट गन का इस्तेमाल किया था। भारत में सबसे पहले पैलेट गन का इस्तेमाल कश्मीर घाटी में हुआ और उसके बाद किसानों पर हुआ। पैलेट गन से शरीर पर गोलियों के निशान पड़ जाते हैं लेकिन मौत नहीं होती। लेकिन सिर में गोली लगने पर घातक असर होता है।
गृह मंत्रालय ने यह जानकारी तब मांगी, जब पंजाब विधानसभा अध्यक्ष कुलतार सिंह संधवान ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर हरियाणा की सिफारिश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया, जिसमें कहा गया था कि किसानों के खिलाफ ऐसी कार्रवाई में शामिल अधिकारियों को वीरता पदक देना जले पर नमक छिड़कने के समान है।